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12 दिन से एक इंजेक्शन के इंतजार में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है एक बच्चा, पढ़ें

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच में बीते आठ माह से हिमोफीलिया में लगनेवाला इंजेक्शन (फैक्टर आठ) नहीं है. 12 दिन से मायागंज में भरती मासूम इस इंजेक्शन के लिए तरस रहा है. यहां के चिकित्सक खून चढ़ा कर उसकी जिंदगी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. खगड़िया जिले के परबत्ता थाना क्षेत्र के सलारपुर निवासी राजकिशोर […]

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच में बीते आठ माह से हिमोफीलिया में लगनेवाला इंजेक्शन (फैक्टर आठ) नहीं है. 12 दिन से मायागंज में भरती मासूम इस इंजेक्शन के लिए तरस रहा है. यहां के चिकित्सक खून चढ़ा कर उसकी जिंदगी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. खगड़िया जिले के परबत्ता थाना क्षेत्र के सलारपुर निवासी राजकिशोर पोद्दार का 13 साल का बेटा प्रियांशु कुमार को हिमोफीलिया है. बीते दिन उसे पेशाब के साथ खून आने की शिकायत के बाद

मायागंज हॉस्पिटल के पीजी शिशु रोग विभाग में 23 दिसंबर को बेड नंबर 40 (डॉ आरके सिन्हा की यूनिट में) पर भरती कराया गया. प्राथमिक इलाज में प्रो (डॉ) आरके सिन्हा ने उसे हिमोफिलिया होने की पुष्टि करते हुए फैक्टर आठ का इंजेक्शन मुहैय्या कराने के लिए हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉ आरसी मंडल को पत्र लिखा. इसे ओके करते हुए अधीक्षक ने आर्डर भी कर दिया. बावजूद अभी तक 12 दिन हो गये हैं और इस मासूम को अभी तक इंजेक्शन नहीं लग सका.

ये है हिमोफीलिया की बीमारी
हिमोफीलिया आनुवंशिक रोग है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है. इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है, इसमें रक्त का बहना जल्दी बंद नहीं होता है. विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे ‘क्लॉटिंग फैक्टर’ कहा जाता है. इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है. इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या भारत में कम है. इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है.इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है. इस बीमारी का लक्षण, शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आँख के अंदर खून का निकलना तथा जोड़ों (ज्वाइंट्स) में सूजन आदि है.
मायागंज में भरती 13 वर्षीय मरीज के लिए किया गया है इंजेक्शन का आर्डर
फैक्टर आठ का इंजेक्शन है इसका इलाज चिकित्सकों के अनुसार, हिमोफीलिया के मरीजों का कोई स्थायी इलाज नहीं होता है. इसके मरीजों को जिंदगी भर फैक्टर आठ का इंजेक्शन लगता है. एक मरीज को साल में हर तीन से चार माह में एक बार इसका इंजेक्शन लगता है. जबकि मायागंज हॉस्पिटल में ये इंजेक्शन बीते आठ माह से नहीं है.
फैक्टर आठ का इंजेक्शन है इसका इलाज
चिकित्सकों के अनुसार, हिमोफीलिया के मरीजों का कोई स्थायी इलाज नहीं होता है. इसके मरीजों को जिंदगी भर फैक्टर आठ का इंजेक्शन लगता है. एक मरीज को साल में हर तीन से चार माह में एक बार इसका इंजेक्शन लगता है. जबकि मायागंज हॉस्पिटल में ये इंजेक्शन बीते आठ माह से नहीं है.
हर माह मिल रहे तीन से चार हिमोफीलिया के मामले
भागलपुर जिले में हिमोफीलिया के मामले आये दिन देखने को मिल रहे हैं. औसतन हर माह तीन से चार मामले हिमोफीलिया के यहां के अस्पतालों में देखने को मिल रहे हैं. पीजी शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो (डॉ) आरके सिन्हा के मुताबिक, एक साल में उनके नर्सिंग होम से लेकर मायागंज अस्पताल में हिमोफीलिया के करीब 40 से 50 मरीज इलाज के लिए आते हैं. बाजार में फैक्टर आठ का इंजेक्शन आठ से दस हजार रुपये में आता है. यहां पर इसका इंजेक्शन आने में एक सप्ताह और लगेगा. तब तक मरीज की लगातार मानीटरिंग रखते हुए इलाज चल रहा है.
प्रो (डॉ) आरके सिन्हा, विभागाध्यक्ष पीजी शिशु रोग विभाग, जेएलएनएमसीएच भागलपुर

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