ब्रजेश
भागलपुर : विक्रशिला सेतु में आयी दरार को बेहतर तरीके से भरने के बाद इसकी सेहत 15 साल तक के लिए सुधर जायेगी. इसके उलट यदि दरार को भरने में जिन दो तरह के केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसे मिलाने में जरा सी भी भूल हुई तो पूरी मेहनत पर पानी फिर सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह की केमिकल बाउंडिंग में हुई गड़बड़ी से इसमें कार्बन प्लेट नहीं चिपकेगा. यदि कार्बन प्लेट चिपक भी गया तो कुछ दिनों बाद ही इसका असर दिखने लगेगा और इसकी मरम्मती पर आने वाली करोड़ों की राशि बेकार चली जायेगी. यही वजह है कि दोनों केमिकल मिलाने के दौरान इनकी मात्रा बराबर रखी जा रही है. एक्सपर्ट के अनुसार केमिकल की मात्रा में 10 ग्राम की कमी-ज्यादा से यह अप्रभावी हो जायेगा.
15 साल में दोबारा मरम्मत न होने पर होगी पहले जैसी हालत: पुल मरम्मत की दरकार 15 साल में दोबारा आयेगी. लेकिन यदि इसे नजरअंदाज किया गया तो, इसकी हालत पहले जैसी हो जायेगी. मुंबई की कार्य एजेंसी रोहरा रीबिल्ड एसोसिएट के एक्सपर्ट के अनुसार बॉल-बेयरिंग की आयु 15 सालों तक की होती है. इसके बाद इसे मरम्मत की जरूरत पड़ती है. मरम्मत नहीं होने पर इसका स्ट्रेंग्थ कम हो जाता है. सेतु की उम्र जब 15 साल पूरी हो गयी थी, तभी इसके बॉल-बियरिंग की रिपेयरिंग करायी जाती, तो दरार आने जैसी नौबत नहीं आती.
तब पुल बनने में ही लग गये थे 11 साल
विक्रमशिला सेतु का उद्घाटन 23 जुलाई 2001 को पूर्व मुख्य मंत्री राबड़ी देवी ने किया था और इसका शिलान्यास 15 नवंबर 1990 में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने किया. पुल बनकर तैयार होने में ही 11 साल लग गये. क्योंकि शिलान्यास के छह माह बाद से पुल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. यह जब 14 साल का हुआ, तभी वर्तमान वरीय प्रोजेक्ट इंजीनियर भगवान राम ने मरम्मत का प्रपोजल हेडक्वार्टर को भेजा था. लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया.
विक्रमशिला सेतु पर दूसरे दिन शनिवार को भी मरम्मत का कार्य पूर्ववत चलता रहा. कार्य में व्यवधान न हो, इसके लिए पहले की व्यवस्था अंतर्गत बैरियर पर पुलिस जवानों की तैनाती रही. ऐसे में सेतु के दोनों ओर जाने वाले दोपहिया वाहनों की संख्या भी कम ही रही. क्योंकि, सेतु बंद रहने की खबर उत्तर और दक्षिण बिहार के जिलों तक पहुंच चुकी है. इधर, दिनभर पुल पर को पैदल आने-जाने वाले लोगों का तांता लगा रहा.