– दरवाजे पर ही आकर तीन हजार क्विंटल की दर से उपज वाले पपीते को खरीद ले जा रहे खुदरा विक्रेता, – हर तीसरे दिन तोड़ी जाती पके और तैयार हाइब्रिड किस्म के इस ताइवानी पपीते की स्वादिष्ट फसल बेतिया . योगापट्टी अंचल क्षेत्र के मच्छरगांवा नगर पंचायत अंतर्गत मटकोटा में ताइवानी प्रजाति ‘रेड लेडी 786’का पपीता की खेती करने वाले युवा किसान सह भाजपा नेता आज आसपास के क्षेत्र में किसानों के बीच आधुनिक और लाभकारी खेती के चर्चित और प्रेरक उदाहरण बन बैठे हैं. लौरिया के भाजपा विधायक विनय बिहारी भी मानते हैं कि उनके निकट सहयोगी और भाजपा कार्यकता सह युवा किसान दीपक कुमार सिंह नगदी फसल के रूप में कम लागत में पपीता उत्पादन का एक चर्चित रॉल मॉडल बन गए हैं, जो न केवल क्षेत्र में चर्चित है बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरक उदाहरण बन चुके हैं. दीपक कुमार सिंह बताते हैं कि अब से तीन वर्ष पहले उन्होंने अपने परिवार की मात्र तीन कट्ठा जमीन पर पपीता की खेती शुरू की थी. गुणवत्तापूर्ण बीज,जज्बे और आधुनिक जैविक कृषि तकनीक के साथ उन्होंने समाजसेवा और राजनीति के साथ इस स्वरोजगार को क्रमवार विस्तार दिया है. वर्तमान में वे महज 11 कट्ठा (लगभग पौन एकड़) में ‘रेड लेडी 786’ पपीते की पूरी तरह जैविक खेती कर रहे हैं. आश्चर्यजनक रूप से, इस सीमित जमीन से वे प्रतिमाह लगभग 1.20 लाख रुपये की आय अर्जित कर रहे हैं, जबकि मासिक लागत मात्र 18 से 22 हजार रुपये के आसपास आती है.उन्होंने बताया कि फल आने से पहले पौधों को सुरक्षित रखने हेतु एक-दो बार ही कीटनाशक घोल का छिड़काव किया गया, इसके आगे संपूर्ण उत्पादन जैविक खाद पर आधारित है. कम लागत, बेहतर गुणवत्ता और भारी मांग ने इस खेती को उनके लिए अत्यंत लाभकारी बना दिया है.स्थानीय बाजार के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में भी उनके उत्पादित पपीते की अच्छी खपत है. उन्होंने बताया कि अपने कृषि उत्पाद को बाजार में पहुंचाने के लिए दरवाजे पर से ही खुदरा विक्रेता दुकानदार तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर से उपज वाले पपीते को खरीद ले जा रहे हैं.उन्होंने बताया कि प्रायः हर तीसरे दिन तोड़ी जाती पके और तैयार हाइब्रिड किस्म के इस ताइवानी पपीते की स्वादिष्ट फसल तोड़ी जाती है और पहले आओ और पहले पाओ की तर्ज पर बिक जाती है.दीपक कुमार सिंह का दावा है कि यदि किसान भाई वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर नगदी फसलों पर ध्यान दें,तो कम जमीन में भी बेहतर आय संभव है.उनकी सफलता से प्रभावित होकर अब कई किसान इस ताइवानी हाइब्रिड पपीता प्रजाति की खेती का रुख कर रहे हैं. मटकोटा का यह ‘ग्रीन मॉडल’आज पूरे क्षेत्र के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुका है.
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