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लखनपुर वाली मां पूरी करती हैं मन्नतें

लखनपुर वाली मां पूरी करती हैं मन्नतें तसवीर 5- लखनपुर दुर्गा मंदिरभगवानपुर. भगवानपुर प्रखंड क्षेत्र के लखनपुर गांव में बलान नदी के किनारे स्थापित सुप्रसिद्ध माता लखनपुर वाली की महिमा अपरंपरा है. जो भी इनके दरबार में सच्चे मन से अाराधना कर दुआ मांगता है. उसकी मन्नतें अवश्य पूरी होती हैं. मां की अपार शक्ति […]

लखनपुर वाली मां पूरी करती हैं मन्नतें तसवीर 5- लखनपुर दुर्गा मंदिरभगवानपुर. भगवानपुर प्रखंड क्षेत्र के लखनपुर गांव में बलान नदी के किनारे स्थापित सुप्रसिद्ध माता लखनपुर वाली की महिमा अपरंपरा है. जो भी इनके दरबार में सच्चे मन से अाराधना कर दुआ मांगता है. उसकी मन्नतें अवश्य पूरी होती हैं. मां की अपार शक्ति व महिम को देखते हुए बेगूसराय जिला सहित विभिन्न राज्यों के श्रद्धालु बलिदानी खस्सी कटाने के साथ-साथ मन्नतें मांगने आते हैं. : अपरंपार है माता की महिमा,मंदिर पुजारी 86 वर्षीय पुरूषोत्तम झा का कहना है कि मां की महिमा अपरंपार है. करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पहले बंगाल की नदिया जिले के शांतिपुर से मंडराज सिंह के पूर्वजों ने माता की प्रतिमा को लाया था.: मां से लगी थी शर्तवहां से लाने के क्रम में मां से यह शर्त थी कि प्रत्येक कोस पर एक खस्सी का बलिदान देना होगा. शर्त को पूरा करते यहां मां दुर्गा को लाया गया था. उस समय मिट्टी का मंदिर था. बाद में घोष परिवार, पुरूषोत्तम तथा पड़ोसी ग्रामीणों के सहयोग से पक्का मकान तैयार किया गया. बाद में घोष परि के सहयोग से मंदिर का सौंदर्यीकरण भी कराया गया. : जिउतिया से शुरू होती है पूजापुरूषोत्तम झा एवं बंगाली चक्रवती ने पूजा के विधि विधान की जानकारी देते हुए जिउतिया के पारण बुद्ध नवमी दिन से वार्षिक पूजा का संकल्प लिया जाता है. उस दिन एक खस्सी की बलि दी जाती है.: सप्तमी को चक्षूदान प्राण प्रतिष्ठामरं करे चक्षू दान करने वाले 55 वर्षीय सूर्यनारायण तिवारी बताते हैं कि सप्तमी की रात में मां की आंखों में चक्षू दान कराया जाता है. यह काम बहुत ही कठिन है. मां को चक्षूदान करते समय मां की प्रतिमा के सामने से नहीं पीछे मुड़ कर दिया जाता है. उसके बाद अंदर से शंख व घंटी बजायी जाती है् बाहर में लोग समझ जाते हैं कि चक्षूछान हो गया. उसके बाद प्राण प्रतिष्ठा दी जाती है. : नवमी की रात्रि दी जाती है बलिनवमी की रात्रि से जेनरल खस्सी, भेड़ा, भैंसा की बलि दी जाती है. उसके बाद यहां हजारों खस्सियों की बलि होती है. बताया जाता है कि छागर बलि के पहले माता का फुलहाल होता है. जब तक फुल्हास नहीं होगा तब तक बलि नहीं दी जाती है.: माता के हाथ में खिलता है फलमाता की महिमा इतनी निराली है कि उन्हें हाथ में ओरहुल फुल की कली दी जाती है. फूल स्वयं खिल कर जमीन पर गिर जाता है. उसके बाद अपराजिता पूजा के बाद दशमी को विसर्जन किया जाता है. विसर्जन किया जाता है कि विसर्जन के बाद भी एक बलि दी जाती है. : क्या है माता की महिमापूर्वजों के अनुसार मां की महिमा के बारे में पुरूषोत्तमझा ने बताया कि बंगाली परिवार की एक लड़की अपने मन में यह भावना लेकर मंदिर गयी की मां कैये खाती है. इसी क्रम में मां के भोग के समय सब लोगों को मंदिर से निकाल दिया गया. संयोगवश उक्त लड़की मंदिर के एक कोने में छिपी रह गयी. बाद में पट को बंद दिया गया. पुजारी द्वारा पट खोलने के बाद मां मुख में छोटा सा कपड़ा एवं उस लड़की को देखा पुजारी मामला समझ गया. फिर पुजारी ने मां को खूब मनाया . लेकिन मां नहीं मानी. इधर मेले को मंदिर को सजाया जा रहा है.

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