बैलों से खेती कर परंपरा को जीवित रखा है जगदीशपुर के किसान जयराम
अंबा/कुटुंबा. आधुनिकता के दौर में बैलों की महत्ता काफी कम हो गयी और किसान खेतों की जुताई करने के लिए ट्रैक्टर पर आश्रित हो गये हैं. वे कृषि कार्य के लिए कई तरह के आधुनिक यंत्र का प्रयोग करने लगे हैं. इसका असर हुआ कि किसानों के दरवाजे से लकड़ी का हल व जुआठ आदि उपकरण के साथ-साथ बैलों की जोड़ी समाप्त हो गयी. बुजुर्ग किसान रामपुर गांव के रामचंद्र सिंह व रसलपुर के शिवनाथ पांडेय बताते हैं कि पहले के जमाने में बैलों से खेत की जुताई व बैलगाड़ी से फसलों व अनाज की ढुलाई की जाती थी. खेत से खलिहान तक, खलिहान से घर तक व फिर घर से बाजार तक बैल गाड़ी से अनाज की ढुलाई करते थे. यहां तक कि जब सुदूर ग्रामीण इलाके में सड़क नहीं थी, तब छोटे व्यापारी सिंगल बैलों पर अनाज लादकर मंडी में ले जाते थे. यही नहीं शादी विवाह व दुल्हन को लाने के सवारी के रूप में बैल गाड़ी का उपयोग किया जाता था. प्रखंड क्षेत्र में अब हल बैल की जगह ट्रैक्टर से खेती होने लगी है. खेत व बैल के बीच किसान का पारंपरिक रिश्ता टूट गया है. यह बदलाव महज चंद वर्षों में तेजी से देखने को मिला है. कुटुंबा के जगदीशपुर गांव के किसान जयराम साव हल बैल से खेती कर अपनी पुरानी परंपरा को जीवित रखें हुए हैं. उन्होंने बताया कि हल बैल से खेती करने पर भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है. बीज सही ढंग से अंकुरित होता है, जिससे किसान को उत्पादन का भरपूर लाभ मिलता हैं. उन्होंने बताया कि कम खर्च में खेती हो जाती है. किसी को खुशामद नहीं करना पड़ रहा है. इससे पशुपालन का शौक पूरा हो रहा है. गोबर के जैविक खाद व जलावन घर से हीं उपलब्ध हो जाते हैं. बुमरू गांव के किसान संजय सिंह व सुही के सुदर्शन पांडेय ने बताया कि खासकर ईख की रोपाई करने में आज भी बैलों की जरूरत होती है. ढुंडा गांव के किसान रामस्वरूप पांडेय व मुड़िला के अरुण कुमार पांडेय ने बताया कि ट्रैक्टर से जुताई की खेत उबर-खाबड़ होती जा रही है. वहीं हल बैल से जुताई कर पाटा चलाने पर खेत लेबल में रहता है. विदित हो कि ईंधन की महंगाई के वजह से बैलों की वापसी के लिए किसान व मजदूर फिर से मना बना रहे है.दोनों का है अपना-अपना महत्व : डीएओ
जिला कृषि पदाधिकारी संदीप राज ने बताया कि हल बैल व ट्रैक्टर की खेती का अपना-अपना अलग महत्व है. ट्रैक्टर से जुताई करने में समय की बचत होती है व ससमय खेती हो जाती है. बड़े किसानो के लिए ट्रैक्टर जरूरी है. वहीं हल व बैल की खेती छोट जोत वाले किसानों के लिए अति आवश्यक है. पशु के गोबर व मूत्र से आर्गेनिक कार्बन की समस्या दूर हो जाती है. गोबर से बने जैविक खाद खेतों में प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती हैं.खेती को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा कृषि रोड मैप लागू की गयी है. आये दिन किसानों को नई तकनीक से खेती करने की जरूरत है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

