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आपातकाल : जिलाधिकारी के सामने पुलिस ने की थी पिटाई, 16 महीने रहा जेल में

आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन में औरंगाबाद के डॉ प्रो ज्ञानेश्वर प्रसाद सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया

औरंगाबाद कार्यालय. आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन में औरंगाबाद के डॉ प्रो ज्ञानेश्वर प्रसाद सिंह ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 16 माह तक जेल की सजा काटी. सड़क से लेकर जेल तक आंदोलन किया. उन्होंने कहा कि उस वक्त मैं इंटर का विद्यार्थी था और उम्र लगभग 20 वर्ष थी. मैं औरंगाबाद जिला छात्र संघर्ष समिति का संयोजक चुना गया था और मेरे नेतृत्व में छात्र आंदोलन संचालित हो रहा था. 10 जुलाई को बेलसारा गांव के संपत बाबू जो खादी ग्रामोद्योग के जिला अध्यक्ष थे, उन्होंने संपर्क किये और बताया कि जार्ज फर्नाडिस 15 जुलाई को आने वाले है. हम सभी से मिलना चाहते है. नियत समय पर प्रो बावन दास, रमेश बाबू, अधिवक्ता संपत बाबू के अलावा कुछ लोग रमेश बाबू के घर के दक्षिण भाग में आठ बजे रात में एक खेत में बैठक किये. नियत समय पर सरयू बाबू मुख्तार जार्ज साहेब को पैदल लेकर बैठक स्थल पर आ गये. जार्ज साहेब ने देश की स्थिति पर चर्चा की और मुझे गोह में पूर्व विधायक अवध सिंह के नाम एक चिट्ठी सौंपी और निर्देश दिया कि पुलिस से बचते हुए यह पत्र उन तक पहुंचनी चाहिए. साथी रविंद्र के साथ दो दिन बाद सुबह गोह के लिए पैदल यात्रा किया और शाम को पहुंच कर उन्हें चिट्ठी सौंपा. पुलिस को जार्ज साहेब के आगमन और मेरे गोह जाने की जानकारी हो गयी थी. गोह में पत्र समेत पकड़ने की भी कोशिश की गयी, लेकिन हम बच गये और दूसरे दिन औरंगाबाद आ गये. पुलिस पीछे पड़ी थी. 25 जुलाई 1975 को सिन्हा कॉलेज के हास्टल में छात्रों के साथ बैठक कर के वहां से निकला. अदरी नदी के पुल पर जैसे ही पहुंचा दोनों तरफ से पुलिस की जीप ने घेर लिया और वहीं पर पुलिस वाले उन्हें पिटाई भी की. पुलिस जीप पर बैठा कर जिलाधिकारी जीएस कंग के पास लेकर गये. वहां भी कलक्टर साहेब के सामने मेरी पिटाई हुई और रात में थाने पर लाया गया. दो दिनों तक सीआइडी वाले थाने पर रखे. जार्ज साहेब से संबंधित प्रश्न पूछते रहे. काउंटर की भी धमकी देते रहे लेकिन तत्कालीन थानाध्यक्ष ने हौसला बढ़ाया. 28 जुलाई को मुझे औरंगाबाद जेल भेजा जाने लगा. मुझे कमर में रस्सा हाथ में हथकड़ी लगाकर चार-पांच पुलिस वालों के साथ जेल भेजा गया. मैं पूरे रास्ते इंदिरा और आपातकाल के विरोध में नारे लगाता रहा. जेल में मुझे महिला वार्ड में अकेले रखा गया. किसी से मिलने की इजाजत नहीं थी. दो या तीन दिन के बाद संपत बाबू, रामविलास बाबू, जमुना बाबू नवीनगर सहित कुछ लोग आ गये. लेकिन उन लोगों से भी मुझे दूर रखा गया. संभवत: आठ या नौ अगस्त को हम सभी को केंद्रीय कारा गया एक साथ गाड़ी से भेज दिया गया. केंद्रीय कारा गया में और जगहों से काफी लोग आये थे. गया केंद्रीय कारा आंदोलनकारियों से भरा हुआ था. कई लोग भयभीत भी नजर आते थे. 1976 के नवंबर-दिसंबर में सरकार के आदेश पर मुझे केंद्रीय कारा गया से मुक्त किया गया. आपातकाल में लोकतंत्र को समाप्त कर दिया गया था. वातावरण इतना गंभीर था कि जो लोग जेपी आंदोलन और इंदिरा के विरोधी थी वे भी आपातकाल के दौरान उनके समर्थक हो गये थे. कांग्रेस सहित सीपीआई के लोग पकड़वाने का काम कर रहे थे. सत्ता के दलाल हो गये थे. सीपीआइ के लोग इस दौरान खेतों पर लाल झंडा गाड़ने और कब्जाने का आंदोलन भी प्रारंभ कर दिये थे. यह आंदोलन पूरे भारत में इतना जोर पकड़ा कि इसका अंदाजा शायद सत्ता पक्ष को भी नहीं था. छात्र नेताओं का नेतृत्व काफी शक्तिशाली था लेकिन आज भी इन्ही नेताओं के हाथों में बागडोर है. हम आंदोलन के लक्ष्यों को भूल चुके है. और सत्ता प्यारी हो गयी है. जेपी के सपने अधूरे रह गये हैं.

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ज्ञानेश्वर प्रसाद सिंह, रामनरेश शर्मा, अरुण कुमार सिंह, अरविंद पांडेय, कपिलदेव सिंह, कृष्णा कुमार स्वर्णकार, नवलेश भरथुआर व युगल किशोर सिंह शामिल है.

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