यूनिटी व कला संस्कृति और युवा विभाग के सहयोग से हाइ स्कूल एकौनी में मैदान में चल रहा था चार दिवसीय आयोजन
प्रतिनिधि, दाउदनगर.यूनिटी व कला संस्कृति और युवा विभाग बिहार सरकार के सहयोग से चार दिवसीय यूनिटी रंग महोत्सव के अंतिम दिन उच्च विद्यालय एकौनी के खेल मैदान में आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकारों के लिए संघर्ष पर आधारित नाटक बिरसा का जंगल का मंचन किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन काराकाट के सांसद राजाराम सिंह, पटना के प्रख्यात रंगकर्मी परवेज अख्तर, राजद नेता व पूर्व मुखिया सोनम कुशवाहा, दाउदनगर उत्तरी के जिला पार्षद अमरेंद्र उर्फ अरविंद यादव, जनवादी लेखक संघ के जिला सचिव अलखदेव प्रसाद अचल, रामाकांत सिंह द्वारा दीप प्रज्वलित कर दिया गया. सांसद ने कहा कि यूनिटी का यह कार्य देश में विविधता के एकता में संकट के दौर में गहरा संदेश दे रहा है. नाटक और रंगमंच के माध्यम से सभी वर्ग के लोगों को जोड़ने का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है. खुली जगह और खुला आसमान बचाने की जरूरत है.
परवेज अख्तर को मिला यूनिटी सम्मान
यूनिटी रंग उत्सव सम्मान- 2025 पटना के प्रसिद्ध रंगकर्मी परवेज अख्तर को प्रदान किया गया. यह सम्मान यूनिटी सचिव रविकांत व रामाकांत सिंह द्वारा प्रदान किया गया. 2015 में संगीत नाटक अकादमी से तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा पुरस्कृत परवेज अख्तर 1975 से रंगमंच में लगातार सक्रिय हैं. उनका मूल निवास छपरा में है और वे बिहार संग्रहालय के निदेशक पद से सेवानिवृत हुए हैं. वर्तमान समय में अपनी नाट्य मंडली नट मंडप के निर्देशक के रूप में देश के अनेक शहरों में लगातार रंगमंच में सक्रिय हैं. उनके द्वारा निर्देशित नाटकों में मोहित चट्टोपाध्याय के गिनीपिग, भीष्म साहनी के हानूश, मन्नू भंडारी के महाभोज, भारतेंदु हरिश्चंद्र के सत्यहरिश्चंद्र,जावेद अख्तर के द्वारेश की कथा, अविनाश चंद्र मिश्रा की मुक्ति पर्व शामिल हैं. 2017 में गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह के सौ वर्ष होने के उपलक्ष्य में नंद किशोर आचार्य लिखित नाटक बापू का लगातार मंचन कर रहे हैं. जनवादी लेखक संघ की जिला इकाई द्वारा भी परवेज अख्तर को सम्मानित किया गया. यह सम्मान अलखदेव प्रसाद अचल और शंभू शरण सत्यार्थी ने दिया. यूनिटी के प्रबंधक शर्मिला देवी कनौजिया, सुधीर कुमार, आलोक कुमार, नवीन कुमार, विजय कुमार,मुन्ना कुमार, दीपक कुमार, दीपक कुमार आदि उपस्थित थे.
किये गये संघर्षो को जनता तक लाने का उद्देश्य
नाटक बिरसा का जंगल एक कथा वाचन से शुरू होता है. यह नाटक पश्चिम बंगाल के घासिवारा के आदिवासी गांव के बच्चों और युवाओं द्वारा खेला गया है. इसका उद्देश्य पूर्वजों द्वारा जंगलों की रक्षा के लिए किये गये संघर्ष को आम जनता तक लाना है. नाटक में निर्देशक गौरव दास सूत्रधार के रूप में कथा वाचन से कहानी की शुरुआत करते हैं. यह चक्रधरपुर के एक गांव की कहानी है. जंगल में रहने वाले सांप, बाघ, हाथी, मोर, हिरण से दर्शकों को परिचय कराकर उनसे अपनी आत्मीयता प्रदर्शित करते हैं.सभी मिलकर शिकारियों को जंगल से खदेड़ देते हैं. अंबुज कुमार ने समीक्षा में बताया कि कथा दो भागों में चलती है, पहला भाग आजादी के पूर्व 1895 के समय में आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा के संघर्ष, त्याग, एकता,बलिदान को चित्रित करता है,वहीं दूसरी तरफ 2013 के भारत में आदिवासियों पर बढ़ते कॉरपोरेट प्रभाव और उनके जमीन पर लगने वाले फैक्ट्री के बाद उनके विस्थापन के फलस्वरूप होने वाले संघर्ष को इंगित करता है. नाटक आदिवासियों के प्रमुख संघर्ष उलगुलान से आम दर्शकों को भलीभांति परिचय कराने में सक्षम साबित होता है. नाटक में रंजीत राय की भूमिका की सराहना की गयी. इसके अलावा नयन साधक, समर सुधा, विप्लव नसर, जीत नया, कृष्णा मंडल, पर्थ घोष, अर्घ्य मंडल आदि का अभिनय भी सराहनीय रहा.छोटे-छोटे बच्चों से इतने गंभीर विषय में स्वाभाविक तरीके से नाटक कर लेना सहज नहीं था, लेकिन डॉ गौरव दास के निर्देशन में नाटक ने अपनी छाप छोड़ दी है.लाइट में राहुल सरदार, सेट डिजाइन आदर्श कुमार राय, प्रोजेक्शन राहुल सरदार, बांसुरी पर सोमैया दास, ताल अनिर्बन दास, वेशभूषा और श्रृंगार नयन साधक और कोरियोग्राफी मलय कुमार साहू के कार्यो ने नाटक में सौंदर्य वृद्धि किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

