औरंगाबाद ग्रामीण. जिस वाहन का इस्तेमाल शवों को भी घरों तक पहुंचाने में होता है उसका हाल देखकर सरकारी व्यवस्था पर तरस आता है. शव वाहन की स्थिति देख कोई भी व्यक्ति सोच सकता है कि अगर उसे कहीं इसकी जरूरत पड़ जाये, तो उसका हाल क्या होगा. यह यह तस्वीर जिले के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल यानी सदर अस्पताल की है. सदर अस्पताल में एकमात्र शव वाहन है. घटना-दुर्घटना या स्वभाविक मौत की स्थिति में शवों को घर पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी वाहन की होती है. लेकिन इसका हाल खराब है. इसकी जर्जर हालत सोशल मीडिया पर चर्चा में है. एक शव को ले जाने के लिए जब संबंधित परिजनों को जरूरत पड़ी, तो उन्हें उपलब्ध भी कराया गया. 102 नंबर की शव वाहन जरूरत के समय स्टार्ट नहीं हुआ. अंतत: इसे धक्का देकर स्टार्ट कराया गया. दरअसल शव वाहन के अंदर एक महिला का शव भी पड़ा हुआ था. एंबुलेंस को धक्का देकर स्टार्ट करने का यह वीडियो सामने आने के बाद अस्पताल प्रशासन की फजीहत होने लगी है. एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग पर सवाल खड़ा हो रहा हैं. ज्ञात हो कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा एंबुलेंस और अन्य संसाधनों पर हर साल सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं. इसके बाद भी इसका लाभ लोगों को सही तरीके से नहीं मिल पाता है.
क्या है मामला
सोमवार की रात सड़क दुर्घटना में बायपास के समीप अरवल जिले के एक महिला की मौत हो गयी थी. महिला की मौत के बाद नगर थाने की पुलिस द्वारा पोस्टमार्टम कराया गया. इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए शव को एंबुलेंस में लाद दिया गया. चालक ने शव वाहन को स्टार्ट किया, लेकिन स्टार्ट नहीं हुआ. दो-तीन बार प्रयास करने के बाद भी शव वाहन खड़-खड़ाकर बंद हो गया. इसके बाद एक एंबुलेंस कर्मी द्वारा ही उसे धक्का दिया गया. धक्का देने के बाद वाहन चालू हो गया. इसी दौरान मौजूद कुछ लोगों ने इसका वीडियो अपने मोबाइल फोन में कैद कर लिया. स्थानीय लोगों का कहना था कि काफी रात हो चुकी थी, लेकिन शव वाहन स्टार्ट करने के दौरान स्टार्ट ही नहीं हुआ. इधर, कुछ एंबुलेंस कर्मियों ने कहा कि सदर अस्पताल में एंबुलेंस की स्थिति ठीक-ठाक नहीं है. पूरे जिले में मात्र एक ही शव वाहन है, उसकी भी स्थिति खराब है. शव वाहन समय पर चालू नहीं होता है. कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि मरीज को ले जाने के दौरान बीच रास्ते में ही गाड़ी खराब हो जाता है. इसके बाद परिजनों की भी अनकही बातें सुननी पड़ती है. कई बार शव को छोड़कर वापस सदर अस्पताल लौटने के दौरान बीच रास्ते में ही गाड़ी खड़-खड़ाकर बंद हो जाती है. काफी प्रयास के बाद भी चालू नहीं होने पर रात के समय में कोई सुविधा न मिलने के कारण सुनसान जगह पर रात बितानी पड़ती है. खतरे का भी डर रहता है, लेकिन कर भी क्या सकते हैं. विभाग को इस पर पहल करनी चाहिए और शव वाहन में हो रहे खराबी को सुधार करना चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है