औरंगाबाद/कुटुंबा. रविवार यानी 30 मार्च चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से हिन्दी नववर्ष संवत्सर 2082 की शुरुआत होगी. सनातन धर्म परंपरा में इस दिन का खास महत्व है .इसी दिन से वासंतिक नवरात्रि प्रारंभ होता है. श्रद्धालुओं की ओर से कलश स्थापना कर नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है. जगह-जगह पर विधि विधान से नौ दिन पर्यन्त रामचरितमानस पाठ भी किये जाते हैं. भारतवर्ष ही नहीं, विदेशों में भी रहनेवाले सनातन धर्मावलंबी हिंदी नववर्ष को महोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाते हैं. पूरे वर्ष भर का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. ज्योतिर्विद डॉ हेरम्ब कुमार मिश्र ने बताया कि हिन्दू पंचांग के साथ-साथ वैदिक व लौकिक दृष्टि से संवत्सर का काफी महत्व है. इसी के अनुसार ग्रह, नक्षत्र, लगन, मुहूर्त व मांगलिक तिथियों की जानकारी मिलती है. इस वर्ष कालयुक्त नामक नव संवत्सर 2082 का आरंभ 30 मार्च रविवार को होगा. हृषिकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार 15 अप्रैल को सिद्धार्थ नामक वर्ष का आगमन होगा पर पूरे वर्ष संकल्पादि कृत्यों में कालयुक्त का ही नाम लिया जायेगा. इसके लिए दिन में 2:14 बजे के पूर्व कलश स्थापन किया जायेगा. श्रद्धालु नौ दिनों तक भक्तिपूर्वक मां दुर्गा का अनुष्ठान करेंगे. उन्होंने बताया कि ब्रह्म पुराण, अथर्ववेद और शतपथ ब्राह्मण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना शुरू की थी. संपूर्ण जीव-जगत का आरम्भ इसी दिन से हुआ था. सृष्टि निर्माण के लिए भगवान विष्णु ने इसी दिन मत्स्यावतार लिया था. सतयुग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था. द्वापरकाल में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था.
इस वर्ष के राजा व मंत्री दोनों हैं भगवान सूर्य
ज्योतिर्विद ने बताया कि पूरे वर्ष सृष्टि संचालन का दायित्व इसी दिन से समस्त देवताओं को दिया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष को संचालित करने के लिए ग्रह सभासदों की एक समिति बनायी जाती है, जिनकी देखरेख में पूरा वर्ष प्रभावित रहता है. इस वर्ष राजा और मंत्री दोनों के पद ग्रहराज भगवान सूर्य को प्राप्त हैं. आकाशीय मंत्री परिषद के कुल 10 विभागों में छह विभाग पापग्रहों के अधीन और चार विभाग शुभग्रहों के अधीन हैं. सूर्य के राजा होने के कारण फसलों का उत्पादन अपेक्षाकृत प्रभावित रहेगा. हालांकि, फसल का विभाग बुध के पास होने के कारण अन्नदाताओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी .रबी के अपेक्षा खरीफ की फसल अधिक अच्छी होगी. वर्षा का विभाग भी भगवान सूर्य के पास होने से वर्षा का अनुमान सामान्य कहा जा सकता है. पूर्ण वर्षा के अभाव में भूजल स्तर खिसक सकता है. सूर्य की किरणें प्रखर होंगी और प्रचंड गर्मी पड़ेगी. इसका असर जैव विविधताओं पर पड़ेगा. वर्षा ऋतु के दौरान आकाश में बादल तेजी से मंडरायेंगे पर छिटपुट बारिस होगी. कुछ स्थानों पर वर्षा की अधिकता भी हो सकती है.
विक्रमादित्य ने की थी संवत्सर की शुरूआत
ज्योतिर्विद डॉ मिश्र ने बताया कि हिन्दू संवत्सर का प्रारंभ महापराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने किया था जिसके कारण हिंदी वर्ष को विक्रम संवत भी कहा जाता है. हिंदी पंचांग में संवत्सर का बहुत अधिक महत्व है. इसी के अनुसार ग्रह, नक्षत्र, लग्न व मांगलिक तिथियों की जानकारी होती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने इस दिन को ही सृष्टि की रचना आरंभ की थी. आंध्र प्रदेश में इस तिथि को उगदिनाम पर्व के नाम से मनाया जाता है. इसका अर्थ होता है सृष्टि रचना का पहला दिन. वहीं महाराष्ट्र में यह दिन गुड़ीपड़वा के नाम से मनाया जाता है. अपने प्रदेश बिहार में भी हिन्दू नववर्ष व वासंतिक नवरात्र का खास महत्व है.
भगवान राम का हुआ था राज्याभिषेक
वैदिक मान्यताओं के अनुसार लंका विजय से लौटने के बाद भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक इसी दिन को हुआ था. धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुआ था. ज्योतिर्विद डॉक्टर हेरम्ब कुमार मिश्र ने बताया कि भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पहला मत्स्यावतार के रूप में इसी दिन भगवान धरती पर अवतरित हुए थे. उन्होंने प्रलय काल में अथाह जल राशि से मनु की नौका को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था. प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु के द्वारा ही सृष्टि की सरंचना शुरू की गई थी.सिंह लग्न में वर्ष का प्रवेश मंगल दायक
वर्ष का प्रवेश सिंह लग्न में हो रहा है जो मंगलकारक है.वर्ष का धनेश बुध होने के कारण अर्थव्यवस्था अच्छी रहेगी. नववर्ष के आगमन से प्रकृति में सरसता एवं सौंदर्य देखने को मिलने लगते हैं. वृक्ष लताएं पुष्पित व पल्लवित होने लगती हैं.एक अप्रैल से शुरू होगा चारदिवसीय छठ का अनुष्ठान
ज्योर्तिविद ने बताया कि एक अप्रैल मंगलवार से नहाय-खाए के साथ चार दिवसीय छठ व्रत का अनुष्ठान शुरू होगा. दो को खरना और तीन अप्रैल को चैती छठ का उपवास रखकर भगवान सूर्य को संध्याकालीन अर्घ दिया जायेगा. चार अप्रैल को प्रातःकालीन अर्घ पूर्ण कर व्रत का पारण किया जायेगा. छह अप्रैल को सर्वत्र धूमधाम से रामनवमी मनायी जायेगी. रामनवमी के दिन अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का अवतार हुआ था. नववर्ष का स्वागत करते हुए अपने घरों को आम या अशोक के पत्तों से सजाना चाहिए, घरों में रंगोली, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्नों को अंकित करना चाहिए. उन्होंने बताया कि इस दौरान घी के दीपक जलाने चाहिए. अपने आराध्यदेव का पूजन एवं बड़ों का चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए. साथ ही छोटों को स्नेहपूर्वक नये वर्ष की शुभकामनाएं देनी चाहिए. नववर्ष के दौरान नशापान व तामसी भोजन निषेध माना गया है. 13 अप्रैल की रात्रिशेष पांच बजे सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से खरमास की समाप्ति हो जायेगी जिसके बाद से विवाहादी मांगलिक कार्य सम्पन्न करने की छूट हो जायेगी. सत्तू संक्रांति या सतुआन का पुण्यकाल 14 अप्रैल सोमवार को होगा.
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