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लाल गलियारे में मशरूम की महक

औरंगाबाद (ग्रामीण) : लाल गलियारे के नाम से प्रसिद्ध नक्सलग्रस्त मदनपुर प्रखंड कभी गोलियों की तड़तड़ाहट व निर्दोष लोगों की हत्याओं के कारण प्रसिद्ध था. लेकिन, अब यह मदनपुर इलाके में बारूदों की गंध नहीं, मशरूम की खेती लहलहा रही है. पहले इस क्षेत्र की महिलाएं घर की चौखठ लांघने से पहले पुरुषों से इजाजत […]

औरंगाबाद (ग्रामीण) : लाल गलियारे के नाम से प्रसिद्ध नक्सलग्रस्त मदनपुर प्रखंड कभी गोलियों की तड़तड़ाहट व निर्दोष लोगों की हत्याओं के कारण प्रसिद्ध था. लेकिन, अब यह मदनपुर इलाके में बारूदों की गंध नहीं, मशरूम की खेती लहलहा रही है. पहले इस क्षेत्र की महिलाएं घर की चौखठ लांघने से पहले पुरुषों से इजाजत लेती थी, लेकिन, आज महिलाएं लोक-लज्जा को त्याग कर अपना व अपने परिवार की किस्मत बदलने में लगी हैं.

स्वयं सहायता समूहों के जरिये मदनपुर की महिलाएं अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद का बैंक चला रही हैं. इस बैंक की सहायता से महिलाएं सिलाई-कटाई व मशरूम की खेती के अलावा जैविक खाद, पापड़, अदौरी, चरौरी, आचार, सत्तू, बेसन, अगरबत्ती व मोमबत्ती का निर्माण कर रही हैं. स्वरोजगार के लिए महिलाओं को इस बैंक से मामूली ब्याज पर लोन (ऋण) मिल रहा है, जिससे सूदखोरी पर काफी हद तक लगाम लगा है.मदनपुर प्रखंड क्षेत्र में आज 700 से अधिक स्वयं सहायता समूह काम रहे हैं. हर समूह में अधिकतम 15 महिलाएं हैं.

स्वरोजगार के जरिये इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने का का बीड़ा उठाया है प्रियंका स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान ने. 1996 में गठित यह संस्थान स्वरोजगार के लिए उत्सुक महिलाओं को प्रशिक्षण देता है. शुरू में संस्था के सदस्यों द्वारा काफी संख्या में समझाने-बुझाने के बाद नक्सलग्रस्त मदनपुर इलाके की 10 से 20 महिलाएं इस संस्था से जुड़ी थी. संस्थान के अध्यक्ष विमला देवी व सचिव भरत ठाकुर ने एक-एक महिलाओं को जोड़ कर आज सदस्यों की संख्या पांच हजार तक पहुंचा दी है. ये महिलाएं अब स्वरोजगार कर कमाये पैसों से अपने परिवार का अच्छी तरह भरण-पोषण कर रही है. समूह से महिलाओं के जुड़ने का सिलसिला जारी है. कुछ साल पहले जिन गांवों में नक्सलियों के डर से लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे, आज उस गांव की महिलाएं स्वयं सहायता समूहों में जुड़ कर स्वावलंबी बन रही हैं.

मुंशी बिगहा की शकुंती देवी, सहजपुर की रेणु देवी व निर्मला देवी, महुआइन के विमली देवी व गुरमीडीह की अनीता देवी जैसी सैकड़ों महिलाएं अपने बल पर परिवार की गाड़ी खींच रही हैं. मशरूम से 20 हजार रुपये तक की आमदनीस्वयं सहायता समूहों की महिलाएं मशरूम की खेती से 20 हजार रुपये तक कमा रही हैं. पलकिया में गीता देवी, विभा देवी, अनिता देवी, अमीरबिगहा में जमीरा खातून, ओरडीहा में सुनीता कुमारी व अनिता देवी जैसी कई महिलाएं मशरूम की खेती से हर महीने पांच से 15 हजार रुपये की बामदनी कर लेती हैं. हालांकि, मशरूम की फसल बाेने व सुखाने में देरी होने पर कई बार इनकी आमदनी कम भी हो जाती है. महिलाएं खुद ही सब्जी मंडी से लेकर होटलों में मशरूम की सप्लाई करती हैं. हालांकि, बाजार में मशरूम की मांग को देखते हुए इसकी सप्लाई कम है, लेकिन इन महिलाओं को भरोसा है कि वह बाजार की मांग के अनुसार मशरूम की सप्लाई सुनिश्चित कर लेंगी. महिलाओं ने बताया कि मशरूम की फसल को तैयार होने में 25 से 30 दिन लगते हैं.

मार्केट में कच्चा मशरूम 250 रुपये प्रति किलो बिकता है, जबकि सूखे मशरूम की कीमत 1200 रुपये तक प्रतिकिलो है. समूह की महिलाएं सूखे मशरूम पर ही ज्यादा ध्यान दे रही हैं.बनाये गये सामान का खुद करती हैं मार्केटिंग स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं अपने बनाये गये सामान की खुद मार्केटिंग भी करती हैं. ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ये महिलाएं स्वयं व नाबार्ड की सहायता से खुद के बनाये गये सामान की प्रदर्शनी भी लगाती हैं. इन सामान की सप्लाई जिले के शहरी व ग्रामीण इलाकों के बाजारों में भी की जाती है. प्रियंका स्वरोजगार संस्थान के सचिव भरत ठाकुर बताते हैं कि स्वयं सहायता समूह की महिलाएं खुद मार्केटिंग भी करती है. इनकी बनायी सामग्री की बाजार में काफी मांग है. मदनपुर, खिरियांवा, कासमा, रफीगंज, शेरघाटी, आमस, देव व औरंगाबाद शहर की दुकानों में इन सामान को देखा जा सकता है. महिलाएं मांग के अनुसार सामान तैयार करती हैं.प्रशिक्षण के बाद समूह में मिलती है इंट्रीस्वयं सहायता समूहों में जुड़ने से पहले महिलाओं को प्रियंका स्वरोजगार संस्थान द्वारा सामग्री निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाता है.

यह संस्थान नाबार्ड के प्रोजेक्ट पर काम करती है. भारत सरकार संपोषित योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना व नाबार्ड योजना के तहत स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है. इस संस्थान को कई बार राज्य स्तर पर पुरस्कार भी मिले चुके हैं. संस्थान के अध्यक्ष विमला देवी व सचिव भरत ठाकुर ने बताया कि स्वयं सहायता समूहों को पूरे औरंगाबाद जिले में विस्तार किया जा रहा है.

खासकर, जिले के सुदूरवर्ती इलाकों में,जहां कि महिलाएं आत्मनिर्भर नहीं हैं. ऐसी ही महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ कर स्वावलंबी बनाया जायेगा.अपना बैंक खोल कर सूदखोरों पर लगाया लगामसहियार, कोइलवा, निमा आंजन, भेलीबांध, ताराडीह, उमगा, रूनिया, इटकोहिया, बादम व छालीदोहर आदि गांवों की महिलाएं स्वयं सहायता समूहों में जुड़ कर आपसी समन्वय से एक बैंक चला रही हैं और हर महीने का पैसा जमा कर रही हैं. प्रियंका स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के सचिव भरत ठाकुर ने बताया कि खुद के बनाये बैंक से समूह की महिलाओं को दो से तीन रुपये प्रति सैकड़ा की दर से ऋण दिया जाता है.

ऋण के पैसों से महिलाएं स्वरोजगार समेत अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व शादी-विवाह पर खर्च करती हैं. अनिता देवी, गीता देवी, लालसा देवी व मनोरमा कुमारी ने बताया कि जरूरत पड़ने पर साहूकारों से पांच से सात रुपये प्रति सैकड़ा तक ब्याज पर पैसे लेने पड़ते थे. ब्याज समेत रुपये भुगतान करने में काफी समस्या आती थी. लेकिन, अब स्वयं सहायता समूह के बैंक से दो से तीन रुपये ब्याज पर पैसा लेकर अपनी जरूरतों को पूरा कर लेती हूं.

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