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छठी मां की महिमा : अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी ने देव में की थी छठ, पांडवों को विपदा से मिली थी मुक्ति
सुजीत कुमार सिंह औरंगाबाद : जब कभी छठ का जिक्र होता है, तो औरंगाबाद के देव सूर्य मंदिर की चर्चा जरूर होती है. इस मंदिर को लेकर कई तरह की कथाएं व्याप्त हैं. इन्हीं में से एक कथा द्रौपदी से जुड़ी है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों के साथ उनकी पत्नी द्रौपदी […]
सुजीत कुमार सिंह
औरंगाबाद : जब कभी छठ का जिक्र होता है, तो औरंगाबाद के देव सूर्य मंदिर की चर्चा जरूर होती है. इस मंदिर को लेकर कई तरह की कथाएं व्याप्त हैं. इन्हीं में से एक कथा द्रौपदी से जुड़ी है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों के साथ उनकी पत्नी द्रौपदी (पांचाली) औरंगाबाद के विराटनगर (अब विराटपुर) में पहुंची थीं. उस वक्त पांडव विपदा से ग्रसित थे.
अपने पतियों की विपत्ति देख द्रौपदी ने महर्षि धौम्य से उपाय पूछा. उन्होंने देव में सूर्योपासना की सलाह दी. तब द्रौपदी ने छठ व्रत कर पांडवों को विपदा से मुक्त कराया. कहते हैं कि इसके बाद ही पांडवों को पुन: हस्तिनापुर की गद्दी मिली. इस मंदिर को लेकर और कई कथाएं प्रचलित हैं. लोगों का मानना है कि त्रेता युग के राजा ऐल ने सूर्य मंदिर का निर्माण करा पवित्र सूर्य कुंड तालाब की स्थापना की थी. कथाओं के अनुसार, राजा ऐल कुष्ठ से पीड़ित थे और उस वक्त शिकार खेलते हुए देव के वन्य प्रांत में पहुंचे व राह भटक गये.
भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखा, जैसे ही उसका पानी पिया उन्हें रोग से मुक्ति मिल गयी. इसके बाद स्वप्न में उन्हें भगवान ने दर्शन दिया और मंदिर का निर्माण करा सरोवर में दबी पड़ी भगवान भास्कर की प्रतिमा को स्थापित करने को कहा. सुबह-सुबह राजा ने वही किया. मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ करा दिया और फिर सूर्य कुंड तालाब की नींव रखी. मंदिर के निर्माण के संबंध में अलग-अलग कथाएं हैं और अलग-अलग मत भी हैं.
साहित्यकारों के अनुसार, नौ लाख 49 हजार 121 वर्ष पहले मंदिर का निर्माण हुए हो गया है. साहित्यकार व अधिवक्ता रहे कृष्ण वल्लभ प्रसाद सिंह नीलम ने अपने लेख में उल्लेख किया था कि त्रेता युग 12 लाख 96 हजार वर्ष का होता है. यह भी कथा प्रचलित है कि भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से मंदिर का निर्माण किया था.
ऐसे पहुंचें देव
औरंगाबाद जिला मुख्यालय से सूर्य नगरी देव की दूरी महज 15 किलोमीटर है. जिला मुख्यालय से देव जाने के कई रास्ते हैं. जिला मुख्यालय से देव मोड़ पहुंचें और फिर वहां से सात किलोमीटर की दूरी तय करें. देव मोड़ के पहले करहारा मोड़ से देव की दूरी नौ किलोमीटर है. जिला मुख्यालय के पिपरडीह मोड़ से बहुआरा होते देव पहुंचा जा सकता है, जो महज आठ किलोमीटर के करीब है. देव जाने के लिए ऑटो व बस का भी सहारा ले सकते हैं.
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