कुटुंबा : ‘का बरखा, जब कृषि सुखाने, समय चुके फिर का पछताने’ तुलसी की पंक्तियां आज भी चरितार्थ हो रही है. कमजोर पड़े मॉनसून और वर्षा की कमी से पूरे क्षेत्र में इस समय हाहाकार मचा है. इंद्र अभी भी रूठे हुए हैं. कहीं भी धान की रोपनी नहीं हुई है. सिंचाई के अभाव में बिचड़े जल-भून रहे हैं. प्रकृति की बेरूखी देखकर पूरा तंत्र चिंतित है. किसानों के माथे पर चिंता की गहरी रेखाएं उभर आयी है.
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पहले कृषि थी सहारा, अब उससे हो नहीं रहा गुजारा
कुटुंबा : ‘का बरखा, जब कृषि सुखाने, समय चुके फिर का पछताने’ तुलसी की पंक्तियां आज भी चरितार्थ हो रही है. कमजोर पड़े मॉनसून और वर्षा की कमी से पूरे क्षेत्र में इस समय हाहाकार मचा है. इंद्र अभी भी रूठे हुए हैं. कहीं भी धान की रोपनी नहीं हुई है. सिंचाई के अभाव में […]
धान के फसल लगाये जाने वाला मुख्य नक्षत्र पुनर्वस बीत चुका है व प्रकृति में पुष्य प्रवेश कर गया है. उत्तर कोयल नहर फेल कर गया है. किसान आसमां की ओर टकटकी लगाए हुए हैं. किसानों को अब तक जो नुकसान हो चुका है उसकी भरपाई संभव नहीं है. दिन के चिल्लाती धूप व रात के अनगिनत तारें यह बंया कर रहा है कि वर्षा अभी होने कोसो दूर है.
अगर एक सप्ताह और यही स्थिति रही तो किसान भूखमरी के कगार पर चले जायेंगे. सिंचाई के बगैर कृषि की परिकल्पना मुश्किल है. पहले खेती किसानों के आय का जरिया था, पर अब उससे गुजारा नहीं हो रहा है. इसका मुख्य वजह सिंचाई श्रोतों की कमी व सरकार की उदासीनता है.
फिलहाल खेती से जुड़े लोग उपज से परिजनों के भरण पोषण कर बच्चों को पढ़ा लिखा नहीं पा रहे हैं. किसानों के उत्थान के लिए सरकार द्वारा तैयार किया गया कृषि रोड मैप कारगर नहीं साबित हो रहा है. खेतों तक बिजली पहुंचाने की बात अब तक हवा-हवाई साबित हो रही है.
डेढ़ लाख हेक्टेयर में की जानी थी धान की खेती
जिले में एक लाख 55 हजार हेक्टेयर भूमि में धान का फसल लगाने का लक्ष्य निर्धारित था. अब तक 11 हजार 810 हेक्टेयर भूमि में ही धान की रोपनी की गयी है. सदर प्रखंड में 14 हजार हेक्टेयर जमीन में धान की खेती की जानी थी, जिसमें मात्र एक हजार 130 हेक्टेयर में धान की खेती हुई है.
इसी तरह से बारुण में 17 हजार हेक्टेयर के बजाय दो हजार 40 हेक्टेयर, ओबरा में 19 हजार हेक्टेयर में दो हजार 850 हेक्टेयर, दाउदनगर में 12 हजार में एक हजार 680 हेक्टेयर, हसपुरा में नौ हजार में 720 हेक्टेयर, गोह में 15 हजार में 750 हेक्टेयर, रफीगंज में 13 हजार में 650 हेक्टेयर, मदनपुर व देव ब्लॉक में नौ हजार में क्रमशः 540 व 220 हेक्टेयर में, कुटुंबा में 15 हजार मेंव 420 हेक्टेयर तथा नवीनगर में 23 हजार में 810 हेक्टेयर जमीन में हीं धान की खेती की गई है.
खरीफ की फसल में आयी है कमी
वर्षाभाव में जिले में खरीफ फसलों की खेती काफी कम हुई है. इससे किसानों को काफी नुकसान हुआ है. खरीफ मक्का की खेती एक हजार हेक्टेयर भूमि में की जानी थी जिसमें 893 हेक्टेयर में ही हुई है. अरहर की खेती ढाई हजार में 1700 हेक्टेयर, उरद के खेती 550 में 300 मूंग की खेती 345 में 170 हेक्टेयर में तथा अन्य दलहनी की खेती 55 प्रतिशत के लगभग हुई है.
मूगंफली, तिल, सूर्यमुखी आदि तेलहन एक लाख 60 हजार 475 हेक्टेयर जमीन में करने का लक्ष्य था जिसमें में मात्र 15 हजार 432 हेक्टेयर में की गयी है. मड़ुआ फसल की खेती 75 हेक्टेयर भूमि में की जानी थी पर अभी तक बिल्कुल नहीं हुई है.
राजेश प्रताप सिंह, डीएओ, औरंगाबाद
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