फोटो:-4- प्रतिनिधि, फारबिसगंज तेरापंथ समाज के वयोवृद्ध श्रावक संपतमल सेठिया ने 83 वर्ष की आयु में वर्षीतप का पारणा गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सन्निधि में डीसा गुजरात में सानंद संपन्न किया. वर्षीतप एक ऐसा तप है जो व्यक्ति 13 महीने तक लगातार एक दिन निराहार व एक दिन आहार ग्रहण करके संपन्न करता है. इसमें रात्रि भोजन, जमीकंद व सचित पानी का सर्वथा त्याग रहता है. इसमें कभी-कभी दो दिन का उपवास या तीन दिन का उपवास भी बीच में आ जाता है. यह वर्षीतप की परंपरा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ऋषभ प्रभु से शुरू हुई है. भगवान ऋषभ प्रभु ने जब दीक्षा ग्रहण की थी तो उन्हें 13 महीने तक खाने पीने के लिए कोई अचित वस्तु नहीं मिली. वे जहां भी भिक्षा लेने जाते वहां पर उन्हें हाथी घोड़े व अन्य पदार्थों की भिक्षा में लेने का आग्रह किया जाता था. जिसका जैन मुनियों के लिए आजीवन त्याग रहता है. 13 महीना के पश्चात ऋषभ प्रभु के परपोते श्रेयांश कुमार ने सहज रूप से उन्हे इक्षुरस को लेने का आग्रह किया. इस महादान से, तभी से वर्षीतप में इक्षुरस के द्वारा पारणा की परंपरा चल रही है. इसी परंपरा का वहन करते हुए आज भी तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य जहां भी अक्षय तृतीया के दिन रहते हैं. यह वर्षीतप अपने आप में एक अलग ही महत्व रखता है. इस वर्ष भी तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की सन्निधि में लगभग 500 व्यक्तियों ने वर्षीतप के पारणा संपन्न किया. छुआपट्टी निवासी संपतमल का 83 वर्ष की आयु में यह वर्षीतप अपने आप में एक अलग ही मायने रखता है. इस वर्षीतप में उनकी धर्म पत्नी के साथ बेटे सुनील कुमार बहू सरिता सेठिया व पौत्र-पौत्रवधू सभी का सहयोग रहा.
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