-19-प्रतिनिधि, अररिया जिला मुख्यालय स्थित सर्किट हाउस में एनडीए द्वारा प्रेस वार्ता कर देश के प्रधानमंत्री द्वारा 30 अप्रैल को कैबिनेट की बैठक कर जाति आधारित जनगणना को मंजूरी देने पर नेताओं द्वारा खुशी व्यक्त किया गया. बताया गया कि देश की मौजूदा सरकार देश की सर्वांगीण हितों व मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है. कांग्रेस की सरकार जाति जनगणना का विरोध करते आ रही है. एक बार भी जनगणना में उन्होंने जाति जनगणना को शामिल नहीं किया. यह उसका सबसे बड़ा प्रमाण है. आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना प्रॉपर तरीके से करने की मंजूरी सरकार द्वारा ली गयी है. इससे समाज के दबे कुचले लोगों के लिए अच्छे संकेत दिख रहे हैं. 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना के लिए कैबिनेट में विचार किया जायेगा. तब एक कैबिनेट समूह भी बनाया गया. लेकिन 2011 में कांग्रेस नेता पी चिदंबरम द्वारा इसका विरोध किया गया. इसके बाद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना नहीं करके एक सर्वे कराया. जिसका नाम एसईसीसी था. इसमें 4893 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आया व लगभग 08 करोड़ से ज्यादा गलतियां हुई. इस आंकड़े को प्रकाशित नहीं किया जा सका. इन सब के बावजूद कांग्रेस व विपक्ष के नेता सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों को भ्रम फैला रहे थे कि वे जाति जनगणना के पक्षधर हैं. जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1990 के दशक में ही इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाकर कई सरकारों के सामने जाति जनगणना को लागू करवाने का आग्रह करवाया था व पहली बार उन्होंने बिहार में सफल जाति जनगणना करके यह साबित किया की जाति जनगणना के वह कितने प्रबल पक्षधर हैं. मौके पर लोकसभा के सांसद प्रदीप कुमार सिंह, जदयू के प्रदेश महासचिव इरशाद अली आजाद, भाजपा के जिलाध्यक्ष आदित्य नारायण झा, जदयू के प्रदेश सचिव रमेश सिंह, जिला परिषद के अध्यक्ष आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम, मुखिया संघ के जिलाध्यक्ष शाद अहमद बबलू, राष्ट्रीय लोक मोर्चा के जिलाध्यक्ष विभास चंद्र मेहता, हम पार्टी के जिलाध्यक्ष विष्णु ऋषिदेव, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के जिलाध्यक्ष अरुण सिंह सहित एनडीए के वरिष्ठ कार्यकर्ता मौजूद थे.
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