कुर्साकांटा : शिक्षक दिवस का नाम जेहन में आते ही अंतर्मन में अपने शैक्षणिक गुरु, आध्यात्मिक गुरु की याद अनायास ही मानस पटल में एक रेखा खींच जाती है. इसके साथ ही गुरु को लेकर प्रचलित सारगर्भित श्लोक गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः, गुरु साक्षात परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवै नमः अनायास ही जुबान पर आ जाता है.
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ढिबरी की रोशनी व नीचे बैठकर मिले ज्ञान व संस्कार के आगे आज की पढ़ाई सिर्फ कागजी
कुर्साकांटा : शिक्षक दिवस का नाम जेहन में आते ही अंतर्मन में अपने शैक्षणिक गुरु, आध्यात्मिक गुरु की याद अनायास ही मानस पटल में एक रेखा खींच जाती है. इसके साथ ही गुरु को लेकर प्रचलित सारगर्भित श्लोक गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः, गुरु साक्षात परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवै नमः अनायास ही […]
गुरु उस दीपक की तरह होते हैं जो खुद अंधेरे में रहकर भी अपने शिष्यों को उज्ज्वल भविष्य की कामना लिये उन्हें हर वो जरूरी शिक्षा देते हैं जो उन्हें एक कुशल इंसान के साथ-साथ चरित्रवान, निष्ठावान, देशभक्त बना सके.
गुरु की स्मरण मात्र से हमारी आत्मा शुद्ध व ज्ञान परिमल हो जाता है. गुरु किसी भी क्षेत्र में हो सकता है. गुरु वही है जो उनके अंदर बुराई, निरक्षरता, रूढ़िवादिता को दूर कर एकनिष्ठ बना दे. सम्मान से लिया जाता है शिक्षक लक्ष्मीनारायण सिंह का नाम, जिन्होंने सेवाभाव कर जलायी शिक्षा की अलख
प्रखंड क्षेत्र में इसी तरह के शैक्षणिक गुरु में कुआड़ी निवासी लक्ष्मीनारायण सिंह का नाम भी सम्मान से लिया जाता है. उन्होंने बताया कि 12 वर्ष की उम्र से ही आर्थिक विपन्नता के कारण खुद पढ़ता थे व पढ़ाते भी थे.
उन्होंने बताया कि गुरु कुछ करता नहीं सीखते छात्र हैं. अपनी जिज्ञासा से, अंदर की ललक से गुरु तो केवल एक माध्यम है. जो शिष्य को एक सुगम मार्ग दिखाता है. जिसपर चलकर छात्र अपनी मंजिल को पाकर अपनी, परिजनों व समाज का नाम रौशन करते हैं. शिक्षक दिवस को लेकर स्थानीय भानु चंद्र गुप्ता ने बताया कि जीवन को सफल बनाने में गुरु का उत्कृष्ट स्थान होता है. जिस पर चलकर हमलोग अपने अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं.
गुरु की गुरुता में भी अब कुछ आयी है कमी
शिक्षक नारायण यादव ने बताया कि बचपन में ढिबरी की रोशनी में घास फूस के बने घर में या किसी पेड़ के नीचे जमीन में बैठकर गुरु द्वारा पढ़ाई सिखायी गयी बातें आज भी उतना ही तरोताजा है. जितना उस समय था. उन्होंने बताया कि लेकिन गुरु की गुरुता में भी अब कुछ कमी आयी है. कमी का कारण शिक्षा का व्यवसायीकरण होना भी है. शिक्षा दान की वस्तु है यदि इसे दान स्वरूप दिया जाये तो शायद अधिक लाभप्रद हो.
उन्होंने बताया कि छात्र भी पहले की तुलना में अनुशासन, आज्ञाकारिता में कमी आयी है. छात्र के मन मस्तिष्क में एक बात घर कर गया है कि शिक्षक को रुपया देते हैं तो पढ़ाते हैं. जरूरत आ गयी है कि शिक्षक को शिक्षक की गरिमा का मूल्य समझना पड़ेगा. उन्हें प्राचीनकाल की गुरु शिष्य परंपरा को फिर से कायम करना होगा.
वहीं उत्क्रमित मध्य सह माध्यमिक विद्यालय कपरफोड़ा के प्रधानाध्यापक फुलेश्वर पांडेय ने बताया कि हमारे गुरु तो नहीं रहे लेकिन उनकी सिखायी हर वो बातें आज उनके जीवन में सहयोग प्रदान करता प्रतीत होता है. गुरु द्वारा पढ़ने के क्रम में की गयी पिटायी आज भी कुछ अच्छा करने की ओर प्रेरित करता है. उन्होंने गुरु के संदर्भ में संत कबीर की उक्ति के माध्यम से बताया कि कबीरा खड़े बाजार में काको लागूं पांव बलिहारी गुरु अपनो दियो बताये.
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