बिहारशरीफ (नालंदा).
मॉनसून की बेवफाई से जिले के किसानों का कलेजा फटता जा रहा है. ‘आज नहीं तो कल, बारिश होगी’ इस आस में किसानों ने जैसे-तैसे धान की रोपनी की है. धान की रोपनी वाले खेतों की दरारें धीरे-धीरे बढ़ती जा रही हैं. फसल वाले खेत की बढ़ती दरारें देख किसानों की बेचैनी बढ़ती जा रही है. किसान अपने सामथ्र्य एवं राज्य सरकार के डीजल अनुदान की मदद से फसल को अब तक बचाये हुए हैं. लेकिन धीरे-धीरे किसानों की हिम्मत जवाब देने लगी है. डीजल अनुदान के सहारे सभी खेतों की फसल को बचाया नहीं जा सकता. दूर-दराज के खेतों की पटवन की व्यवस्था भी नहीं है. काफी दूर स्थित बोरिंग से प्लास्टिक के पाइप के सहारे किसान अब तक पटवन कर धान की फसल को बचाये हुए थे. जैसे-जैसे धान की फसल बढ़ती जा रही है, फसल को पानी की जरूरत बढ़ती जा रही है. किसानों को हर तीन-चार दिन में धान की फसल को पटवन करना पड़ रहा है.
किसान इस आस में धान की फसल को जी-जान से बचाने में जुटे हैं कि शायद अब बारिश होगी. जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है और बारिश होने की कोई संभावना नहीं देख किसानों की मायूसी बढ़ती जा रही है.
बढ़ रही पानी की जरूरत
भीषण गरमी के कारण धान की फसल को पानी की जरूरत बढ़ती जा रही है. किसानों को हर दो-तीन पर धान की फसल की सिंचाई करनी पड़ रही है. सरकार द्वारा डीजल अनुदान की व्यवस्था धान की फसल को तीन बार पटवन के लिए है. ऐसी स्थिति में किसानों के लिए डीजल अनुदान नाकाफी साबित हो रही है. किसानों की जमा-पूंजी पहले ही डीजल के धुएं में उड़ चुकी है. ऐसी स्थिति में किसानों की परेशानी काफी बढ़ गयी है. बारिश न होने की वजह से पइन, पोखर, तालाब सूखे पड़े हैं. बिजली की व्यवस्था है, लेकिन एक फेज ही है. इससे मोटर नहीं चलाया जा सकता. ऐसी स्थिति में धान की फसल को बचाने के लिए किसानों के पास एक ही रास्ता है. डीजल इंजन से पटवन करना. लेकिन इसमें खर्च अधिक है. सभी किसानों के पास स्वयं के पटवन की व्यवस्था नहीं है. अधिकांश किसानों को भाड़े पर पटवन करना पड़ता है. भाड़े के पटवन में एक घंटा में एक लीटर डीजल एवं ऊपर से 25 रुपये का भुगतान करना पड़ता है.
