Shakambhari Navratri 2025: पौराणिक कथाओं में आदिशक्ति दुर्गा के अनेक स्वरूपों का वर्णन मिलता है, जिनमें से एक हैं मां शाकंभरी—जो अन्न, फल, सब्जियों और वनस्पतियों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं. दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य के अनुसार मां शाकंभरी का वर्ण नील है और उनके नेत्र नीलकमल की भांति मोहक बताए गए हैं. मां कमल के पुष्प पर विराजित होती हैं, उनकी एक मुट्ठी में कमल और दूसरी में बाण होने का वर्णन मिलता है. यह रूप शक्ति, समृद्धि और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है. पौष माह में मनाई जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि इसी दिव्य स्वरूप को समर्पित है.
शाकंभरी नवरात्रि 2025 की तिथि
इस वर्ष शाकंभरी नवरात्रि 28 दिसंबर 2025 से प्रारंभ होकर 3 जनवरी 2026 को पूर्णिमा तिथि के साथ समाप्त होगी. यह नवरात्रि कुल 8 दिनों तक चलती है और पौष शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक मनाई जाती है. पहला दिन बनादा अष्टमी के नाम से लोकप्रिय है, जबकि अंतिम दिन उल्लास के साथ शाकंभरी पूर्णिमा मनाई जाती है. राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में यह पर्व अत्यंत भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है.
कौन हैं मां शाकंभरी?
पौराणिक कथा बताती है कि जब पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ा, जल और अन्न का संकट गहराया और प्राणियों का जीवन कठिन हो गया, तब देवी भगवती ने शाकंभरी रूप धारण किया. कहा जाता है कि मां की दिव्य दृष्टि मात्र से धरती पर फल, सब्जियां, अनाज और हरी वनस्पतियां उग आईं, जिसने प्राणियों के जीवन को पुनः संजीवनी दी. इसीलिए उन्हें वनस्पति एवं अन्न की देवी कहा जाता है. माता की प्रतिमाओं में उन्हें फल, सब्जियों और हरी पत्तियों से आच्छादित रूप में दर्शाया जाता है, जो समृद्धि, पोषण और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है.
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शाकंभरी नवरात्रि कैसे अलग है शारदीय नवरात्रि से?
वर्ष में चार प्रमुख नवरात्रियां मानी गई हैं—शारदीय, चैत्र, माघ और आषाढ़. लेकिन शाकंभरी नवरात्रि विशेष रूप से तांत्रिक साधना और सिद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह नवरात्रि पौष शुक्ल पक्ष की अष्टमी से आरंभ होकर पौष पूर्णिमा पर समाप्त होती है. देवी के इस स्वरूप में प्रकृति, वनस्पति और अन्न की शक्ति को विशेष रूप से पूजित किया जाता है, जो इसे अन्य नवरात्रियों से अलग बनाता है.

