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Mahavir Jayanti 2020: जानें कितने साल की साधना के बाद जैन धर्म के तीर्थंकर बने थे भगवान महावीर

Mahavir Jayanti 2020 date, History, Mahavir Swami, Jani dharm: भगवान महावीर द्वारा गृह त्याग कर मुनि दीक्षा लेने से लेकर भगवान महावीर के कैवल्य ज्ञान तक की अवधि के बीच का समय साधना काल के नाम से जाना जाता है. यह काल साढे 12 वर्ष का था. भगवान महावीर का जन्म 599 इसवी पूर्व बिहार राज्य में वैशाली के एक गांव मे लिच्छिवी वंश के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर में हुआ था. बचपन में इन्हे वर्धमान नाम से जाना जाता था. ऐसी मान्यता है कि जब महावीर भगवान ने जन्म लिया था तब उसके बाद उनके राज्य में काफी तरक्की और संपन्नता आ गई थी. राजपरिवार में जन्मे महावीर ने तमाम सम्पन्नता के बाद भी युवावस्था में सांसारिक मोह माया त्याग सन्यासी बन गए.

भगवान महावीर द्वारा गृह त्याग कर मुनि दीक्षा लेने से लेकर भगवान महावीर के कैवल्य ज्ञान तक की अवधि के बीच का समय साधना काल के नाम से जाना जाता है. यह काल साढे 12 वर्ष का था. भगवान महावीर का जन्म 599 इसवी पूर्व बिहार राज्य में वैशाली के एक गांव मे लिच्छिवी वंश के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर में हुआ था. बचपन में इन्हे वर्धमान नाम से जाना जाता था. ऐसी मान्यता है कि जब महावीर भगवान ने जन्म लिया था तब उसके बाद उनके राज्य में काफी तरक्की और संपन्नता आ गई थी. राजपरिवार में जन्मे महावीर ने तमाम सम्पन्नता के बाद भी युवावस्था में सांसारिक मोह माया त्याग सन्यासी बन गए.मान्यताओं के अनुसार जैन धर्म के भगवान महावीर ने वर्धमान से महावीर की यात्रा 12 वर्षों की कठिन तपस्या से अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करके कर ली थी. जिस कारण से उनका नाम महावीर पडा . कठोर तप और दीक्षा ग्रहण के बाद भगवान महावीर ने दिगंबर को स्वीकार्य किया और निर्वस्त्र रहकर मौन साधना की. इस अवधि के दौरान स्वामी महावीर ने अनेक कष्टों को सहन किया और वह वर्धमान से महावीर कहलाए. महावीर के साधना काल का जैन आगमो में विस्तार से वर्णन है, साथ ही जैन आगम कल्पसूत्र में भी इसका वर्णन है.

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महावीर की दीक्षा :

महावीर ने कुंडनगर में अशोक वृक्ष के नीचे जब दीक्षा ग्रहण की तो उस समय भगवान महावीर के पास एकमात्र देवदुष्य वस्त्र ही था. महावीर चंद्रप्रभा नाम की पालकी पर बैठकर लोगों के समूह के साथ दीक्षा लेने आए थे.13 महीनों तक देवदुष्य वस्त्र को धारण करने के बाद प्रभु महावीर निर्वस्त्र हो गए, उन्होंने अपना देवदुष्य वस्त्र सोम नामक गरीब ब्राह्मण को दे दिया.

12 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के पश्चात भगवान महावीर को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई, भगवान महावीर ने 12 वर्षों में अनेकों कष्ट सहे, वे कारागार भेजे गए, उन्हें आदिवासियों द्वारा प्रताड़ित किया गया,भूख को सहन किया, प्यास सहन की तो ऋतुों के तपिश व ठंड को भी सहन किया. एक राजा के घर में जन्मा राजकुमार होकर भी उन्होंने हंसकर तमाम कष्टों को सहन किया. इन 12 वर्षों की साधना काल के पश्चात वह वर्धमान से महावीर बन गए,और कैवल्य ज्ञान को पा गए.उसके पश्चात उन्होंने साधु ,साध्वी, श्रावक ,श्राविका नामक चार तीर्थों की स्थापना की और तीर्थंकर कहलाए, स्वामी महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर बने.वैशाख शुक्ल दशमी के दिन ऋजुबालिका नदी के तट पर गौदुहा आसन करते हुए उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह अरिहंत बन गए.भगवान महावीर के कैवल्य ज्ञान प्राप्त करते ही उनके साधना काल की अवधि पूरी हो गई, वह परम तत्व कैवल्य ज्ञान को पा गए.

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