Janmashtami Vrat Katha: कृष्ण जन्माष्टमी की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन के अंधकार में भी प्रकाश की राह संभव है. संघर्षों के बीच उम्मीद बनाए रखना और अधर्म पर धर्म की विजय ही इसका मुख्य संदेश है. इस वर्ष जन्माष्टमी का पावन पर्व 16 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाएगा. इस विशेष अवसर पर हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं जन्माष्टमी की पौराणिक कथा, जो प्रेम, आशा और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक मानी जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के साथ व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है. आइए जानते हैं इस पावन कथा के बारे में…
कृष्ण जन्म की कथा
- द्वापर युग में मथुरा पर भोजवंशी राजा उग्रसेन का शासन था. लेकिन उसका पुत्र कंस अत्याचारी और क्रूर था. उसने अपने ही पिता को राजसिंहासन से हटाकर स्वयं सत्ता हथिया ली. कंस की एक बहन देवकी थी, जिनका विवाह यदुवंशी सरदार वसुदेव से हुआ था.
- एक बार जब कंस अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई—
- “हे कंस, जिस बहन को तू प्रेमपूर्वक विदा कर रहा है, उसी की आठवीं संतान तेरे विनाश का कारण बनेगी.”
- यह सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और तुरंत देवकी की हत्या करना चाहता था. तभी देवकी ने विनम्रता से कहा— “भाई, मेरे गर्भ से जो भी संतान होगी, मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूंगी. बहनोई की हत्या से तुम्हें क्या लाभ?”
- देवकी की बात मानकर कंस ने उन्हें जीवित छोड़ दिया, लेकिन सुरक्षा के लिए वसुदेव और देवकी को मथुरा की कारागार में कैद कर दिया.
- एक-एक करके देवकी के सात बच्चे हुए और निर्दयी कंस ने सभी का वध कर दिया. अब आठवें पुत्र का जन्म होना शेष था. उसी समय गोकुल में नंद की पत्नी यशोदा भी संतान की प्रतीक्षा कर रही थीं.
- जब देवकी ने आठवें पुत्र को जन्म दिया, तभी कारागार में दिव्य प्रकाश फैला. उनके सामने चतुर्भुज रूप में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए भगवान विष्णु प्रकट हुए. वसुदेव और देवकी ने उनके चरणों में प्रणाम किया. भगवान ने कहा—
- “अब मैं शिशु का रूप धारण करूंगा. तुम मुझे गोकुल में अपने मित्र नंद के घर पहुंचा दो और वहाँ जन्मी कन्या को यहाँ ले आना. भय मत करो—पहरेदार सो जाएंगे, कारागार के द्वार स्वयं खुल जाएंगे और यमुना तुम्हें मार्ग देगी.”
- जैसा भगवान ने कहा, वैसा ही हुआ. वसुदेव ने शिशु कृष्ण को टोकरी में रखा और अंधेरी रात में कारागार से निकल पड़े. उफनती यमुना ने उन्हें सुरक्षित पार कराया और वे गोकुल पहुंच गए. वहां उन्होंने नंद-यशोदा के यहां जन्मी कन्या को लिया और शिशु कृष्ण को उनके पास सुला दिया.
- सुबह जब कंस को खबर मिली कि देवकी के यहां संतान हुई है, तो वह तुरन्त कारागार पहुंचा और नवजात कन्या को उठाकर भूमि पर पटकना चाहा. लेकिन वह दिव्य कन्या आकाश में प्रकट हो गई और बोली—
- “अरे मूर्ख कंस! मुझे मारने से कुछ नहीं होगा. तेरा काल तो पहले ही गोकुल पहुँच चुका है. वही तेरे पापों का अंत करेगा.”
- यही है भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की अद्भुत कथा, जो धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्म के अंत का प्रतीक है.
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