Garud Puran on Bhabhi: भारतीय संस्कृति में पारिवारिक रिश्तों का विशेष महत्व है. यहां हर संबंध भावनाओं, आदर और मर्यादा पर आधारित होता है. इन्हीं रिश्तों में एक महत्वपूर्ण स्थान भाभी का है, जिन्हें अक्सर “मां के समान” माना जाता है. यह केवल सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
धार्मिक दृष्टिकोण
हिंदू धर्मशास्त्रों और पुराणों में संयुक्त परिवार की व्यवस्था को आदर्श बताया गया है. इस व्यवस्था में घर की बड़ी बहू, विशेषकर जेठानी, को कुलवधू और परंपराओं की रक्षक माना जाता है. मनुस्मृति और गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों में उल्लेख है कि बड़े भाई की पत्नी को भी मातृवत् यानी मां के समान सम्मान देना चाहिए. यह न केवल धार्मिक नियम है, बल्कि पारिवारिक संतुलन बनाए रखने का भी एक माध्यम है.
सांस्कृतिक पक्ष
भारतीय समाज में भाभी को परिवार की मर्यादा, परंपरा और संस्कृति की संवाहक माना जाता है. वह सिर्फ पत्नी नहीं, बल्कि पूरे परिवार की देखभाल करने वाली होती है. देवर और ननद के लिए वह एक मार्गदर्शक, सखा और माता के समान स्नेह देने वाली होती है. उसका आचरण, व्यवहार और स्नेहपूर्ण अनुशासन घर के वातावरण को सजीव और संतुलित बनाता है.
सामाजिक उदाहरण
त्योहारों और पारिवारिक अनुष्ठानों में भाभी की भूमिका विशेष होती है. भैया दूज, करवा चौथ और हरियाली तीज जैसे पर्वों में वह अपने स्नेह और कर्तव्य का परिचय देती है. अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत और पूजा करती है—जो उसे एक मां की तरह त्यागमयी और पूज्य बनाते हैं.
भाभी को मां के समान मानना केवल एक पारंपरिक सोच नहीं, बल्कि भारतीय पारिवारिक जीवन की आत्मा है. यह परंपरा आपसी स्नेह, सम्मान और जिम्मेदारी की भावना को प्रकट करती है. इस दृष्टिकोण से न केवल परिवार में सामंजस्य बना रहता है, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव भी गहराता है. इसलिए, भाभी एक साधारण रिश्ता नहीं, बल्कि घर की गरिमा और प्रेम की मूर्त छवि होती हैं.

