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श्रावण पूर्णिमा : जगत कल्याण के लिए शिव के ये 12 संदेश

आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब धरती हिमयुग की चपेट में थे. उस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया. विष्णु ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी किनारे को अपना स्थान बनाया. […]

आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब धरती हिमयुग की चपेट में थे. उस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया. विष्णु ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी किनारे को अपना स्थान बनाया. पुराण में कहा गया है कि जहां परशिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है. शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्गलोक और फिर ब्रह्मा का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था. इन तीनों से सब कुछ हो गया.

वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था. फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया. भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों के मूल हैं. शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है. भगवान शिव के अनमोल वचनों को ‘आगम ग्रंथों’ में संग्रहीत किया गया है. आगम का अर्थ ज्ञान अर्जन. पारंपरिक रूप से शैव सिद्धांत में 28 आगम और 150 उप-आगम हैं. शिव पुराण, शिव संहिता, शिव सूत्र, महेश्वर सूत्र और विज्ञान भैरव तंत्र सहित अनेक ग्रंथों में अनमोल शिव संदेशों को संग्रहीत करके रखा गया है. प्रस्तुत है उनमें से कुछ कल्याणकारी शिव संदेश :

1. कल्पना ज्ञान से महत्वपूर्ण : भगवान शिव ज्ञान और कल्पना के विषय में कहते हैं-‘कल्पना’ ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है. हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं. सपना भी कल्पना है. शिव ने इस आधार पर ध्यान की 112 विधियों का विकास किया. अधिकतर लोग खुद के बारे में या दूसरों के बारे में बुरी कल्पनाएं या खयाल करते रहते हैं. दुनिया में आज जो दहशत और अपराध का माहौल है उसमें सामूहिक रूप से की गई कल्पना का ज्यादा योगदान है.

2. बदलाव के लिए जरूरी है ध्यान : आदमी को बदलाव की प्रामाणिक विधि के बिना नहीं बदल सकते. मात्र उपदेश से कुछ नहीं बदलता. भगवान शिव ने अमरनाथ गुफा में माता पार्वती को मोक्ष की शिक्षा दी थी. पार्वती और शिव के बीच जो संवाद होता है उसे ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ में संग्रहीत किया गया है. इसमें ध्यान की 112 विधियां संग्रहीत हैं.

3. शून्य में प्रवेश करो : विज्ञान भैरव तंत्र में शिव पार्वतीजी से कहते हैं, ‘आधारहीन,शाश्वत, निश्चल आकाश में प्रविष्ट होओ.’ वह तुम्हारे भीतर ही है.

4. भगवान शिव कहते हैं- ‘वामो मार्ग:परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्गअत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है. मेरुतंत्र भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं. इसी की एक शाखा हठयोग की है.

5. पशुता से मुक्ति : मनुष्य में जब तक राग, द्वेष, ईर्ष्या, वैमनस्य, अपमान तथा हिंसा जैसी अनेक पाशविक वृत्तियां रहती हैं, तब तक वह पशुओं का ही हिस्सा है. पशुता से मुक्ति के लिए भक्ति और ध्यान जरूरी है. भगवान शिव के कहने का मतलब यह है कि आदमी एक अजायबघर है. आदमी कुछ इस तरह का पशु है जिसमें सभी तरह के पशु और पक्षियों की प्रवृत्तियां विद्यमान हैं. आदमी ठीक तरह से आदमी जैसा नहीं है. आदमी में मन के ज्यादा सक्रिय होने के कारण ही उसे मनुष्य कहा जाता है, क्योंकि वह अपने मन के अधीन ही रहता है.

6. मरना सीखो : यदि जीवन में कुछ सीखना है तो मरना सीखो. जो मरना सीख जाता है, वही सुंदर ढंग से जीना जानता है. ‘गायत्री-मंजरी’ में ‘शिव-पार्वती संवाद’ आता है जिसमें भगवती पूछती हैं- ‘हे देव! आप किस योग की उपासना करते हैं जिससे आपको परम सिद्धि प्राप्त हुई है?’ उन्होंने उत्तर दिया- ‘गायत्री ही वेदमाता है और पृथ्वी सबसे पहली और सबसे बड़ी शक्ति है. वह संसार की माता है. गायत्री भूलोक की कामधेनु है. इससे सब कुछ प्राप्त होता है. ज्ञानियों ने योग की सभी क्रियाओं के लिए गायत्री को ही आधार माना है.’

7. जीवन को सुखमयी बनाने के लिए : भोजन और पान (पेय) से उत्पन्न उल्लास, रस और आनंद से पूर्णता की अवस्था की भावना भरें, उससे महान आनंद होगा। या अचानक किसी महान आनंद की प्राप्ति होने पर या लंबे समय बाद बंधु-बांधव के मिलन से उत्पन्न होने वाले आनंद का ध्यान कर तल्लीन और तन्मय हो जाएं.

8. प्रकृति का सम्मान करो : प्रकृति हमें जीवन देते हैं, इनका सम्मान करो. जो इसका अपमान करता है समझो मेरा अपमान करता है. दुनिया का हर काम प्रकृति के नियमों और तरीकों से ही होता है, लेकिन अहंकार से ग्रसित लोग ऐसा मानते हैं कि सब कुछ वही कर रहे हैं.

9. विस्मयो योगभूमिका :

स्वपदंशक्ति।

वितर्क आत्मज्ञानमू।

लोकानन्द: समाधिसुखम।

-शिवसूत्र

अर्थात : विस्मय योग की भूमिका है. स्वयं में स्थिति ही शक्ति है. वितर्क अर्थात विवेकआत्मज्ञान का साधन है. अस्तित्व का आनंद भोगना समाधि है.

10. आत्मालोकन : अपनी तरफ देखो न तो पीछे, न आगे. कोई तुम्हारा नहीं है. कोई बेटा तुम्हें नहीं भर सकेगा. कोई संबंध तुम्हारी आत्मा नहीं बन सकता. तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हारा कोई मित्र नहीं है. (शिवसूत्र)

11. आत्म-चित्त

आत्मा चित्तम।

कलादीनां तत्वानामविवेको माया।

मोहावरणात्सिद्धि:।

जाग्रद् द्वितीय कर:।

-शिवसूत्र

अर्थात आत्मा चित्त है. कला आदि तत्वों का अविवेक ही माया है. मोह आवरण से युक्त को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता है. स्थायी रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है. ऐसे जाग्रत योगी को, सारा जगत मेरी ही किरणों का प्रस्फुरण है, ऐसा बोध होता है.

12. आत्म-जागरूकता : अपनी जागरूकता का विस्तार करो. अन्य प्राणियों के शरीर में अपनी जागरूकता का विस्तार करके महसूस करो कि वे क्या सोचते हैं. अपने शरीर की जरूरतों को एक तरफ छोड़ दो.

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