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दीपावली के दिन ही हुआ था सृष्टि का पुनर्निर्माण व आरंभ, ऐसे करें मां लक्ष्‍मी को प्रसन्न, होगी धन वर्षा

हिंदू धर्म में दीपावली से बड़ा कोई त्योहार नहीं है. इस दिन लोग मां लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर का पूरे विधि-विधान के साथ आह्वान कर उनकी पूजन, अर्चन व स्तवन करते हैं और बुद्धि व समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं. मान्यता है कि जहां-जहां महालक्ष्मी प्रकाशमान घर-द्वार देखती हैं, वहीं उनका जाना निश्चित है. श्रीपति […]

हिंदू धर्म में दीपावली से बड़ा कोई त्योहार नहीं है. इस दिन लोग मां लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर का पूरे विधि-विधान के साथ आह्वान कर उनकी पूजन, अर्चन व स्तवन करते हैं और बुद्धि व समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं. मान्यता है कि जहां-जहां महालक्ष्मी प्रकाशमान घर-द्वार देखती हैं, वहीं उनका जाना निश्चित है.

श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य व धर्म शास्त्री

भारतवर्ष में खुशी एवं उमंग से मनाये जानेवाले पर्व दीपावली का खास आकर्षण दीपक ही है. मान्यता है कि जहां-जहां महालक्ष्मी प्रकाशमान घर-द्वार देखती हैं, वहीं उनका जाना निश्चित है, इसलिए इस दिन प्रत्येक जगह को दीपों से सजाया जाता है. श्वेताश्वतर उपनिषद् में कहा गया है- दीप ही अग्निदेव है, दीप ही सूर्य, दीप ही आयु, दीप ही चंद्रमा, दीप ही ब्रह्म का बीज है तथा दीप खुद ब्रह्मदेव है.

समस्त धर्म ग्रंथों में दीपक को सूर्य तथा अग्नि का परिचायक बताया गया है. इसका अनुमान इससे लगा सकते हैं कि जब किसी शिशु का जन्म होता है तब प्रसूति गृह में मिट्टी का दीपक जलाया जाता है. बाद के कई संस्कारों में भी दीपक प्रज्वलित किया जाता है. यही नहीं, जब व्यक्ति संस्कार में अपनी जीवन लीला समाप्त करता है तब अंतिम संस्कार भी दीप यानी अग्नि से संपन्न होता है. भारतीय कालगणना के अनुसार 14 मनुओं का समय बीतने और प्रलय होने के पश्चात् पुनर्निर्माण व सृष्टि का आरंभ दीपावली के दिन ही हुआ था.

मां को प्रिय चीजें

पूजा में मां लक्ष्मी की पसंद को ध्यान में रखें, तो शुभत्व की वृद्धि होती है. मां के पसंदीदा रंग लाल व गुलाबी हैं.

फूलों में कमल और गुलाब मां को प्रिय हैं. फलों में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े उन्हें प्रिय हैं.

अनाज में चावल रखें, वहीं मिठाई में मां की पसंद शुद्ध केसर से बनी मिठाई या हलवा, शीरा और नैवेद्य है.

माता के स्थान को केवड़ा, गुलाब या चंदन के इत्र से सुगंधित करें. दीये के लिए गाय का घी या तिल का तेल लें.

पूजा में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र मुख्य सामग्री.

लक्ष्मीपूजन मुहूर्त

27 अक्तूबर, रविवार प्रदोष अमावस्या में दीपावली का उत्सव मनाया जायेगा, जिसमें प्रदोषकाल तथा वृष लग्न की प्रधानता है. इस दिन महाकाली की पूजा भी होगी.

शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि प्रारंभ : 27 अक्तूबर, 2019 को दोपहर 11:51 से.

अमावस्या तिथि समाप्त : 28 अक्तूबर, 2019 को सुबह 09:43 तक.

धन-संपत्ति में स्थायित्व लाने के लिए स्थिर लग्न में पूजन करना शुभ रहता है.

वृष लग्न

सायं 06:46 से रात्रि 08:42 तक

सिंह लग्न

मध्य रात्रि 01:14 से 03:28 तक

तुला लग्न

प्रातः 05:41 से 07:57 तक

वृश्चिक लग्न

प्रातः 7:57 से दिन के 10:14 बजे तक

कुंभ लग्न

दिन के 02:07 से 03:38 तक

गणेशपूजन

किसी भी पूजन में सर्वप्रथम श्री गणेश

को पूजा जाता है. हाथ में पुष्प लेकर

गणेश जी का ध्यान करें. मंत्र पढ़ें –

गजाननम्भूतगणादिसेवितं

कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

लक्ष्मीपूजन

सर्वप्रथम निम्न मंत्र कहते हुए मां

लक्ष्मी का ध्यान करें –

ॐ या सा पद्मासनस्था,

विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।

गम्भीरावर्त-नाभिः,

स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।

लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः।

मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।

नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

मां लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें : हाथ में अक्षत लेकर मंत्र कहें –

ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,

एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।

आवाहन करें : ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।

इसके बाद पात्र में अक्षत छोड़ दें. इसके पश्चात गणेश जी को पंचामृत से स्नान करवाएं. पंचामृत स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं. अर्घा में जल लेकर बोलें-

एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।

सूर्य का होता है तुला राशि में प्रवेश
नवारंभ के कारण कार्तिक अमावस्या को ‘कालरात्रि’ कहते हैं. इस दिन सूर्य अपनी सातवीं यानी तुला राशि में प्रवेश करता है और उत्तरार्द्ध का आरंभ होता है. इसलिए कार्तिक की पहली अमावस्या नव-निर्माण का समय होता है. जीविद्यार्णव तंत्र में कालरात्रि को शक्ति रात्रि की संज्ञा दी गयी है. कालरात्रि को शत्रु विनाशक के साथ ही सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला भी माना गया है. धार्मिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था. इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में भी मनाते हैं.

अमावस्या तिथि महालक्ष्मीपूजन के लिए श्रेष्ठ

रावण से दस दिनों के युद्ध के बाद श्रीराम जब अयोध्या लौटे थे, वह तिथि कार्तिक माह की अमावस्या ही थी. उस दिन घर-घर में दीये जलाये गये थे. तब से इस पर्व को दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा. ब्रह्मपुराण के अनुसार, आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मीपूजन के लिए श्रेष्ठ है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि माननी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गये हैं. कहा जाता है कि धन की देवी मां लक्ष्मी इस दिन घर में प्रवेश करती हैं.

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