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प्रभात खबर संवाद में बोले DGP अजय कुमार सिंह, झारखंड में पहले नक्सल मुख्य चुनौती थी, अब कम्युनल विवाद

झारखंड के डीजीपी अजय कुमार सिंह 'प्रभात खबर संवाद’ कार्यक्रम में पहुंचे. इस दौरान उन्होंने यहां अपनी पुलिस करियर की सबसे रोमांचक क्षण को बताया. इसके अलावा उन्होंने कहा झारखंड में पहले नक्सल मुख्य चुनौती थी लेकिन अब कम्युनल विवाद है.

झारखंड के डीजीपी अजय कुमार सिंह ‘प्रभात खबर संवाद’ कार्यक्रम में पहुंचे. उन्होंने यहां अपनी पुलिस करियर की सबसे रोमांचक क्षण को बताया. डीजीपी अजय कुमार सिंह ने प्रभात खबर संवाद में कहा कि हम सब नागरिक है. क्योंकि सरकार का कोई विंग हो, सबका प्रयास यही है कि नागरिकों का भला हो. उनकी जागरूकता बढ़े. परेशानियों से इन्हें निजात दिलायी जाये.

बतौर आइपीएस अफसर आपने 33वां वर्ष पूरा किया है. आपके कैरियर का सबसे रोमांचक क्षण कब रहा?

पुलिस में लंबा कैरियर रहा है. इसमें इतनी जगह रहने के बाद एक्साइटमेंट तो रहता ही है, लेकिन किसी एक विशेष घटना के बारे में बताना मुश्किल है. धनबाद, देवघर, मुजफ्फरपुर, सारण, छपरा, लखीसराय, पूर्णिया आदि जगहों पर रहा. 1997 में मेरी पोस्टिंग लखीसराय जिले में हुई थी. वह समय चुनौतीपूर्ण था. उस समय जाति विवाद बहुत होता था. डकैतियां होती थी. अब नक्सलियों ने भी वहां जगह बना लिया है. कुछ-कुछ गैंग भी थे. हमारे एक इंस्पेक्टर को बदमाशों ने गोली मार दी थी. एक दिन क्राइम मीटिंग के दौरान सूचना मिली कि जिस गैंग ने इंस्पेक्टर को गोली मारी थी. वहां एक जगह छिपा हुआ है. हमनें सूचना के आधार पर तत्काल पुलिस अफसरों की टीम वहां भेजी. दो घंटे की मुठभेड़ में वह बदमाश मारा गया, जिसने इंस्पेक्टर को गोली मारी थी. वहां एक चानन थाना है. वहां भी दुर्दांत अपराधी थे. वे हत्या, डकैती व रेप की वारदात को अंजाम देते थे. एक दिन सूचना के बाद उन बदमाशों से पुलिस की मुठभेड़ हो गयी. उस समय के मुठभेड़ को लोग बड़ी संख्या में देखने आते थे.

इस लंबे काल खंड में सबसे चुनौती भरी पोस्टिंग आपकी कहां रही?

बिहार के समय 1990 के दौरान मध्य बिहार गया, औरंगाबाद, अरवल आदि जगहों पर रहा. उस समय वहां जाति आधारित अपराध बहुत थे. झारखंड बनने के बाद गिरिडीह जिले में जब आया, तब उस समय लगता था कि कहीं थाने पर नक्सली हमला न हो जाये. लेकिन 20-22 वर्षों के कार्यकाल में बहुत कुछ बदला है. पुलिस की भूमिका बदली है. संसाधन बढ़े हैं. मैनपावर भी बढ़ा है. ट्रेनिंग का स्तर भी बढ़ा है. पुलिस के जाॅब में चैलेंज, तो रहता ही है.

नक्सल के मोर्चे पर झारखंड पुलिस व केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों के संयुक्त प्रयास से अच्छी सफलता मिली. केंद्र ने भी सराहा है. इस उपलब्धि का श्रेय किसे देते हैं.

पुलिस का काम टीम वर्क होता है. थाना का मामला हो या नक्सलियों से जुड़ा हुआ. हर जगह राज्य पुलिस व केंद्रीय बलों ने मिल कर बेहतर को-ऑर्डिनेशन से काम हो रहा है. देश में सबसे बढ़िया झारखंड में है.

झारखंड में औसतन हर रोज सड़क हादसे में 10 लोगों की मौत होती है. इसके मद्देनजर मुख्य सचिव के निर्देश पर सड़क सुरक्षा उपकरणों की खरीद के लिए परिवहन विभाग ने पुलिस मुख्यालय को पैसे दिये थे, लेकिन वित्तीय वर्ष खत्म हो गया, टेंडर तक नहीं हुआ?

इसमें हमलोगों ने समीक्षा की है. पैसा भी उपलब्ध है. बीते हुए समय में टेंडर प्रक्रिया क्यों नहीं हुई. हम इसमें जाना नहीं चाहेंगे. लेकिन अब प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. मीटिंग भी हुई है. टेंडर कर सामानों की खरीद के लिए निर्देश दिया गया है. दो-तीन माह में चीजें आपको दिखने लगेगी.

गैंग्स ऑफ वासेपुर का प्रिंस खान आराम से हैदर अली बन कर दुबई कैसे भाग गया. पासपोर्ट वेरिफिकेशन में बड़ी चूक सामने आयी?

इस मामले में समीक्षा के दौरान यह बात सामने आयी थी कि यह बड़ा अपराधी है. लोगों से रंगदारी मांगता है. जब इसके लोकेशन को लेकर दस्तावेजों की जांच की गयी, तब पता चला कि वह यहां से बाहर भाग गया है. जिस पुलिस अफसर ने पासपोर्ट वेरिफिकेशन में कोताही बरती थी, उसे निलंबित किया गया है. वहीं प्रिंस खान के पासपोर्ट को रद्द करने की प्रक्रिया की जा रही है.

साइबर अपराधियों ने देश में राज्य की छवि धूमिल की है, इससे निबटने की कोई ठोस योजना है?

साइबर अपराध जितना पहले होता था, अब कमी आयी है. पुलिसकर्मियों को राज्य के साथ ही बाहर के ट्रेनिंग सेंटरों पर भेज कर साइबर अपराधियों से लड़ने के लिए दक्ष बनाया जा रहा है. उन्हें नये उपकरणों से लैस किया जा रहा है. अगले पांच वर्षों को ध्यान में रख कर नये पुलिस अफसरों की टीम तैयार की जा रही है, जो साइबर अपराधियों पर नकेल कसने का काम करेंगे.

वर्तमान में झारखंड पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या देखते हैं?

अपराध की घटना तो चैलेंजिंग ही होती है. पहले झारखंड के परिप्रेक्ष्य में नक्सल मुख्य चुनौती थी. अब धीरे-धीरे वह समस्या कम होती जा रही है. लेकिन अब आर्थिक समस्याएं बढ़ेगी. खासतौर से कम्युनल विवाद. कोई त्योहार आता है, कोई बड़ा मौका आता है, तो वहां कम्युनल प्रॉब्लम तुरंत पैदा हो जाती है. वहां पर कम्युनल घटना होने के चांसेज बन जाते हैं. चाहे उसमें कोई बात हो अथवा न हो. हजारीबाग व चतरा आदि जिलों में जो नये क्षेत्र खुल रहे हैं, वहा आर्थिक अपराध बढ़ा है. साइबर क्राइम तो अपनी जगह है ही.

सरकारी अंगरक्षकों को लेकर विवाद होते हैं. आज तक राज्य में सरकारी अंगरक्षकों को लेकर कोई ठोस नियम नहीं बना. दुरुपयोग जारी है. अंगरक्षकों को समय पर फायरिंग की ट्रेनिंग भी नहीं दी जाती, क्या कहेंगे?

जिला स्तर पर सुरक्षा समिति है. डीसी उसको हेड करते हैं. एसपी उसके सदस्य होते हैं. खतरे का आकलन, विशेष शाखा की रिपोर्ट के आधार पर समिति सुरक्षा देती है. स्टेट स्तर पर विशेष शाखा के इनपुट के आधार पर सुरक्षा दी जाती है. समय-समय पर जिला स्तर पर भी अंगरक्षकों को ट्रेनिंग देने का प्रावधान है.

केंद्रीय बलों जैसे सीआरपीएफ और सीआइएसएफ का यहां अपना भवन है, लेकिन झारखंड पुलिस मुख्यालय का अपना भवन आज तक नहीं बना, क्यों ?

इसकी भी शुरुआत हो गयी है. मुख्यमंत्री से भी बात हुई है. करीब 18 एकड़ भूमि को लेकर पुलिस मुख्यालय ने एचइसी को पैसा पेमेंट कर दिया है. गृह विभाग व एचइसी के बीच जमीन को लेकर करार भी हो गया है. इसी तरह से सारी चीजें चलती रही, तो अगले दो-तीन सालों में झारखंड पुलिस मुख्यालय बन कर तैयार हो जायेगा.

राज्य की खुफिया विभाग, विशेष शाखा में एडीजी रैंक के अफसर की तैनाती लंबे समय से नहीं है. प्रभारी आइजी से कब तक चलेगा काम?

इसका प्रस्ताव सरकार को भी भेजा गया है. सरकार के लेबल पर भी सबको जानकारी है. निश्चित तौर पर एडीजी रैंक के अफसर की विशेष शाखा में जरूरत है.

आइपीएस अफसरों का प्रमोशन समय पर हो जाता है, लेकिन कनीय पुलिसकर्मियों के साथ ऐसा नहीं होता ?

ऐसा तो नहीं है. कनीय पुलिसकर्मियों का प्रमोशन समय पर हो, इसको लेकर पुलिस मुख्यालय व सरकार के स्तर पर कार्रवाई की जाती है. राज्य में रिजर्वेशन पॉलिसी क्लीयर नहीं होने के कारण कुछ बाधा जरूर आयी है. आने वाले समय में इसको दूर कर लिया जायेगा.

झारखंड पुलिस हाउसिंग निगम में चेयरमैन व एमडी के तौर पर आपने विभाग व पुलिसकर्मियों के लिए कई कार्य करायें, आगे की कोई और योजना?

कार्य काफी हुए, पिछले दो वर्षों में पहले की तुलना में दो गुणा काम हुआ. राज्य सरकार को दो गुणा पैसा दिया गया. जबकि पहले काम के पैसे भी सही से खर्च नहीं होते थे. निगम पहले पुलिस से रिलेटेड ही काम करता था. लेकिन हमने इनिसिएटिव लेकर सरकार के स्तर से निगम को फायर सर्विसेज, होमगार्ड व जेल आदि के भवनों के निर्माण का काम भी किया. दूसरे राज्यों जैसे यूपी में पुलिस हाउसिंग निगम पुलिस के साथ ही सरकार के अन्य विभागों का काम कराती है.

पीपुल्स फ्रेंडली पुलिसिंग की बात अक्सर उच्चस्तर पर कही जाती है, लेकिन आज भी थाना पहुंचने पर आमलोगों को परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है. क्या कहेंगे?

यह बिल्कुल सही है. कम्युनिटी बेस पुलिसिंग हो या पीपुल्स फ्रेंडली पुलिसिंग यह सब चाहते हैं. केरल आदि राज्यों में इसमें काफी काम हुआ है. आप अगर पुलिस सर्विस में आते हैं, तो लोगों के साथ अफसरों का गलत व्यवहार सही नहीं है. जानकारी मिलने पर समय-समय पर इनके खिलाफ कार्रवाई होती है.

राजधानी के कुछ थानों के अलावा दूसरे जिलों में भी कई ऐसे थाने व बैरक हैं, जहां संसाधनों का अभाव है. कनीय पुलिसकर्मी कैसे करेंगे काम?

बात सही है. जितनी पुलिस होनी चाहिए, उतनी नहीं है. संसाधन भी कम है. लेकिन आपने देखा होगा कि 20 सालों में संसाधन व बैरक के अलावा पुलिसकर्मियों की संख्या में इजाफा हुआ है. राज्य सरकार के स्तर पर जो संसाधन दिये गये हैं, उस सीमित संसाधन में बेहतर काम करने की कोशिश जारी है.

पुलिस मुख्यालय के स्तर पर पूर्व में आदेश जारी हुआ था कि इंस्पेक्टर या इसके ऊपर रैंक के पदाधिकारी ही लोगों के वाहनों के कागजात की जांच करेंगे. पर कागजात के नाम पर ट्रैफिक पुलिसकर्मियों द्वारा आमलोगों का दोहन बदस्तूर जारी है?

इस तरह कि अगर कोई शिकायत आ रही है, तो बतायें. अब ट्रैफिक एसपी भी आ गये हैं. जो पीड़ित लोग हैं, वे संबंधित अधिकारी के पास शिकायत करें, निश्चित तौर पर कार्रवाई होगी.

बहुत दिनों से राज्य सरकार के पास झारखंड पुलिस का अपना मैनुअल नहीं बना है. राज्य सरकार के पास मामला लंबित है?

हां कभी कुछ, तो कभी किसी और बातों के कारण झारखंड पुलिस का अपना मैनुअल पर निर्णय बाकी है.

डीजीपी के बाद क्या, आपके ही पुराने साथी राजनीति में आये हैं ?

नहीं मेरी कोई ऐसी इच्छा नहीं है.

नशे की गिरफ्त में आ रहे युवा, मादक पदार्थ बेचनेवालों की सूचना दें, होगी कार्रवाई

मीडिया भी बैलेंस न्यूज दे. पुलिस अच्छा करती है, तो उसको जगह दी जाये. कहीं आपको गलत दिखता है, तो आप उसको सामने लायें. न्यूज में बैलेंस बना रहे. एक सवाल के जवाब में डीजीपी ने माना कि राज्य में तेजी से युवा नशे की गिरफ्त में आ रहे. बाहर से ड्रग व अन्य मादक पदार्थ रांची व दूसरे जिलों में पहुंच रहे, कई छोटे तस्कर भी पकड़े गये हैं. डीजीपी ने कहा कि पिछले 20-22 सालों में पुलिस की भूमिका भी बदली है. झारखंड के परिप्रेक्ष्य में पहले नक्सल की समस्या मुख्य चुनाैती थी, अब कम्युनल विवाद व आर्थिक अपराध चुनौती बनती जा रही है. कोई बड़ा मौका आता है, तो वहां कम्युनल प्रॉब्लम तुरंत पैदा हो जाती है.

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