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Azadi ka Amrit Mahotsav: रांची के स्वतंत्रता सेनानी गोवर्धन राम की अंग्रेजों ने की थी कोड़े से पिटाई

वर्तमान का रेडियम रोड वर्ष 1900 के करीब लाल बाबू रोड के नाम से चर्चित था. जहां आज होटल महाराजा है, वहां कभी सिर्फ झोपड़ियां हुआ करती थीं. इसी झोपड़ी में जन्मे थे 'गोवर्धन राम'. आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर आइए जानते हैं इनकी कहानी..

Azadi ka Amrit Mahotsav: वर्तमान का रेडियम रोड वर्ष 1900 के करीब लाल बाबू रोड के नाम से चर्चित था. जहां आज होटल महाराजा है, वहां कभी सिर्फ झोपड़ियां हुआ करती थीं. इसी झोपड़ी में जन्मे थे ‘गोवर्धन राम’. वर्ष 1904 में जन्मे गोवर्धन राम स्वतंत्रता आंदोलन को देखते हुए बड़े हुए. जिला स्कूल रांची जाना शुरू किया. उस वक्त स्कूल के विद्यार्थी स्वदेशी जागरण के लिए नियमित प्रभात फेरी निकालते, जिसमें गोवर्धन राम भी शामिल हो जाते़ स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों और अपर बाजार की गलियों में क्रांतिकारियों की बैठक में शामिल होते.

असहयोग आंदोलन में कूदे थे गोवर्धन राम

1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई. श्रद्धानंद रोड स्थित कांग्रेस भवन में नौजवानों की बैठक बुलायी गयी. उस समय एक जगह ज्यादा लोगों का इकट्ठा होना मना था, फिर भी गोवर्धन राम दोस्तों के साथ चले गये. सभा में नागरमल मोदी के छोटे भाई शिव नारायण मोदी भी शामिल थे. इनकी बातों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी तरह शामिल होने का मन बना लिया. 1928 में लाला लाजपत राय की मौत के बाद देशभर के युवाओं में आक्रोश फैल गया़ जगह-जगह युवाओं और अग्रेजों में झड़प होने लगी़ इस दौरान अंग्रेजों ने गोवर्धन राम को कई बार जिला स्कूल में बंधक बनाया़ जनवरी 1932 में कचहरी चौक (वर्तमान में गवर्नर हाउस) के पास अंग्रेज सैनिकों और युवा क्रांतिकारियों के बीच झड़प हुई. इसमें गोवर्धन राम भी शामिल थे. उन्होंने अंग्रेज सैनिकों को घायल कर दिया. जवाबी कार्रवाई में युवा क्रांतिकारियों को बंधक बना लिया गया़ जिला स्कूल में कोड़े से पिटाई की. क्रांतिकारियों को दो दिनों तक खाना नहीं दिया गया़ इसी दौरान गोवर्धन राम की अंगुलियां टूट गयीं, जो इलाज के बाद भी ठीक से नहीं जुड़ी.

1932 में हुई थी छह माह की सजा

29 जनवरी 1932 को छह माह की सजा हुई और उन्हें पटना कैंप जेल भेज दिया गया. जब जेल से छूट कर आये, तो स्वास्थ्य बेहतर नहीं था़ शरीर पर कई जख्म थे. कुछ दिनों के बाद दोबारा स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े़ 1934 में गांधी जी रांची पहुंचे थे. अपर बाजार स्थित बाजार टांड में सभा हुई. इस बैठक में शामिल होने के लिए गांधी जी ने पदयात्रा की थी, जिसमें गोवर्धन राम भी शामिल हुए थे़ 1946 में गोवर्धन राम क्रांतिकारी मित्रों के साथ सक्रिय भूमिका में थे. एक समय के बाद नजरबंद रहने लगे. उस दौरान करम टोली के समीप रंका कोठी थी, जिसके गैरेज में छीपकर रहते. स्वतंत्रता दिवस के 25वें वर्ष (1972) पर कांग्रेस भवन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से भेजे गये ताम्रपत्र से उन्हें सम्मानित किया गया. देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने भी पत्र लिखकर गोवर्धन राम को शुभकामनाएं दी थी.

– जैसा स्वतंत्रता सेनानी गोवर्धन राम की पुत्रवधू मीना देवी ने अभिषेक रॉय को बताया.

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