33.1 C
Ranchi
Thursday, March 28, 2024

BREAKING NEWS

Trending Tags:

नयी किताब : सुन्दरदास की प्रभावी व्याख्या

लेखक ने अपनी बात अवधारणाओं, सामाजिक-सांस्कृतिक निर्मितियों के बीच से गुजरते हुए प्रस्तुत की है और स्रोत के रूप उत्तर भारत के विभिन्न मठों, मंदिरों और पोथीखानों से प्राप्त पांडुलिपियों की मदद ली है. लेखक कोई बात कह देने और उसे प्रमाणित करने की जल्दबाजी में नहीं है.

व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की जैसी समझ दुनिया जहान को लेकर होती है, वह उनकी ईश्वर संबंधी समझ में परिलक्षित होने लगती है. लेकिन यही एक नियम नहीं है. मनुष्य ईश्वर की कल्पना को उदात्त, करुणा से पूर्ण और समावेशी बनाने का प्रयास करता है. मध्यकालीन भक्त कवियों ने यही किया. उन्होंने अपने जीवन और रचनाकर्म के माध्यम से धर्म, समाज और पारलौकिक जीवन के बारे में विचार व्यक्त किये. उन्होंने अपनी कविताओं में एक ऐसे समाज की कल्पना की, जिसमें सबके लिए आत्मोत्थान का अवकाश मिले, ईश्वर को नितांत घरेलू दायरे में ले आया जा सके, धर्मों के बीच आपसी आवाजाही बनी रहे, श्रम की प्रतिष्ठा रहे और कोई भूखा पेट न सोये. सुन्दरदास (1596-1689) ऐसे ही संत कवि थे.

‘सुन्दर के स्वप्न: आरम्भिक आधुनिकता, दादूपंथ और सुन्दरदास की कविता’ में दलपत सिंह राजपुरोहित यह पड़ताल करते हैं कि कैसे एक दूसरे से हजारों किलोमीटर दूरी पर स्थित विभिन्न अभिजात, संत और विद्वान आपस में जुड़े हुए थे और वे व्यापारिक कस्बों, हाट-बाजारों के बीच विचरते हुए लोक और शास्त्र के बीच आवाजाही कर रहे थे. यह किताब उस परिदृश्य की भी पड़ताल करती है, जिसमें संत कवि अकबर जैसे शक्तिशाली शासकों, मानसिंह जैसे क्षेत्रीय राजाओं और सबसे बढ़कर समाज को विवेकसंपन्न बनाते हुए भारत की आरंभिक आधुनिकता की नींव रख रहे थे.

इस अध्ययन की खास बात यह है कि लेखक ने अपनी बात अवधारणाओं, सामाजिक-सांस्कृतिक निर्मितियों के बीच से गुजरते हुए प्रस्तुत की है और स्रोत के रूप उत्तर भारत के विभिन्न मठों, मंदिरों और पोथीखानों से प्राप्त पांडुलिपियों की मदद ली है. लेखक कोई बात कह देने और उसे प्रमाणित करने की जल्दबाजी में नहीं है, बल्कि उसने सबूतों को पाठकों के सामने रख दिया है और उन्हें अपने निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र रखा है. इस किताब की भूमिका में भक्ति साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान पुरुषोत्तम अग्रवाल लेखक दलपत सिंह राजपुरोहित से कुछ बिंदुओं पर मतवैभिन्य रखते हैं.

ऐसा बहुत कम होता है, जब कोई भूमिका लेखक पुस्तक के लेखक से खुली असहमति दिखाये. लेकिन भक्ति साहित्य असहमति का विवेक ही तो सिखाता है, इसलिए यह असहमति एक रचनात्मक बहस का रूप ले लेती है. किताब भारत में आरंभिक आधुनिकता, एक बौद्धिक समुदाय के रूप में दादूपंथ के उदय और विकास, दादूपंथी संतों के सामुदायिक जीवन और उनकी कविता, मुगलकालीन बनारस और भक्ति साहित्य के बहुभाषिक परिप्रेक्ष्य के बारे में बताती है. सुन्दरदास की चयनित काव्य पंक्तियां भी दी गयी हैं, जो उनके मानस और जीवन में झांकने के लिए पाठक को एक खिड़की उपलब्ध कराती हैं. भक्तिकालीन साहित्य के लिए उपयोगी किताब है.

सुन्दर के स्वप्न: आरम्भिक आधुनिकता, दादूपंथ और सुन्दरदास की कविता / दलपत सिंह राजपुरोहित / राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली.

– डॉ रमाशंकर सिंह

You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

अन्य खबरें