सरहद से सुनो हमारी पुकार,
बिन वर्दी के हैं हम पहरेदार!
ना हथियार, ना ओहदा कोई,
फिर भी जंग लड़ते हैं हम रोज नई।
जब चौकी गिरे, खबर बन जाती,
हमारी लाशें खामोश दफनाई जातीं।
कोई तो सुने हमारी चीत्कार,
सरहद से सुनो हमारी पुकार,
बिन वर्दी के हैं हम पहरेदार!
जब चूल्हा बुझता है रात के अंधेरे में,
कोई नहीं पूछता गांव के घेरे में।
हमारी लड़ाई, ना टीवी पर आती,
हमारी कुर्बानी, बस धूल में समाती।
हमारे जख्मों पर मरहम लगाने,
आज एक शख़्स आया था दिल से सहलाने।
जिसने देखा हमारी तबाही का मंजर और बर्बादी ,
वो और कोई नहीं, था देश का दूसरा गांधी।
फिर कहता हूं , सुनो ये पुकार,
बिन वर्दी के भी हैं हम पहरेदार!
-प्रदीप यादव-
(नेता, कांग्रेस विधायक दल, झारखंड)