Women’s Day 2025 : रेलवे में पॉइंट्समैन (Pointsman) का काम ट्रेन के संचालन से जुड़ा है. पॉइंट्समैन का काम बहुत ही जिम्मेदारी वाला होता क्योंकि वह रेलवे ट्रैक पर पॉइंट्स (ट्रैक चेंजिंग मैकेनिज्म) को नियंत्रित करना और यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेन सही ट्रैक पर चले. आमतौर पर इस काम को पुरुष कर्मचारी ही करते थे,लेकिन मनीषा ने इस क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा है.
टूटा पुरुषों का वर्चस्व
जैसा कि पद के नाम से ही प्रतीत होता है कि इस पद पर पुरुष ही ज्यादातर काम करते थे, लेकिन अब महिलाएं भी इस चुनौतीपूर्ण करियर में हाथ आजमा रही हैं. मनीषा हटिया रेलवे स्टेशन में पॉइंट्समैन के पद पर कार्यरत हैं और बखूबी वे अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं. रेलवे की सेवा 365 दिन चलती है और मनीषा बतौर पॉइंट्समैन हटिया के रेल यार्ड में गाड़ियों को जोड़ने, शंटिंग करवाने, वाशिंग लाइन में गाड़ी का पावर काटना, हैंड ब्रेक लगाना, स्कीट लगाना आदि काम पूरी शिद्दत के साथ करती नजर आती हैं. उनके काम में ट्रैक जंक्शनों पर रेलवे पटरियों की स्थिति को जांचना और किसी भी खराबी की रिपोर्ट देना भी शामिल है.
मनीषा सिग्नल देखकर पैनल से बात कर ड्राइवर को स्टार्टिंग देती हैं,तब गाड़ी स्टार्ट होती है. ट्रेन समय से चले इसमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. मनीषा बताती हैं कि अकसर काम करते वक्त कपड़ों पर ग्रीस लग जाता है, पर अपनी वर्दी पहनकर बहुत गर्व महसूस होता. अफसर और सहकर्मी मुझे सहयोग करते हैं.
बिहारशरीफ की रहनेवाली हैं मनीषा

मनीषा मूलत: बिहार के बिहारशरीफ जिले की रहनेवाली हैं. एक सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली मनीषा अपने परिवार की पहली महिला हैं, जो नौकरी कर रही हैं. मनीषा को बचपन से ही नौकरी करने की इच्छा थी,लेकिन उनकी पढ़ाई में बहुत सी कठिनाइयां आईं. पढ़ाई बीच- बीच में छूटती रही,अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से उन्होंने तमाम कठिनाइयों के बाद भी आस जगाए रखी. बहुत कम उम्र में ही उनका विवाह हो गया. शादी के बाद उन्होंने मैट्रिक पास किया. फिर इंटर . परिवार में कई तरह की परेशानियां भी थीं, लेकिन मनीषा ने धैर्य नहीं खोया और प्रतियोगी परीक्षाएं देतीं रहीं.
2013 में अंतत: रेलवे की नौकरी पाने में उन्हें सफलता मिली. एक बेटी और एक बेटे की मां मनीषा बताती हैं- पति बहुत सहयोग करते थे. वे प्राइवेट नौकरी करते थे अक्तूबर 2018 में एक रोड एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई. अब वे दोनों बच्चों की परवरिश एकल अभिभवाक के तौर पर कर रही हैं. मनोबल बार बार टूटा, लेकिन उन्होंने हिम्मत बनाए रखा और उठकर चलती रहीं. वो मानती हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती और लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती.
(रिपोर्ट कलावंती सिंह की)