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चीन में 36 साल पहले हजारों युवाओं का हुआ था नरसंहार, टैंक के नीचे रौंदा गया और बरसाईं गई थीं गोलियां

Tiananmen Square Massacre : चीन एक ऐसा देश है जो दूसरे देशों को मानवाधिकार के मुद्दे पर लताड़ता रहता है, लेकिन खुद चीन ने अपने देश में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई हैं. लोकतंत्र की मांग कर रहे हजारों युवाओं पर चीनी सरकार ने गोलियां बरसाईं और उन्हें मौत के घाट उतार दिया था. यह वाक्या था 3-4 जून 1989 की रात का.

Tiananmen Square Massacre : चीन के बीजिंग शहर में 36 साल पहले एक ऐसी घटना हुई थी, जिसने मानवता को हिलाकर रख दिया था और पूरे विश्व में चीन की छवि को धूमिल किया था. बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर पर हजारों युवाओं को टैंकों से रौंदा गया था और उन निहत्थे लोगों पर गोली चलाई गई थी. इस बर्बर नरसंहार में कितने लोग मारे गए थे इसकी सटीक जानकारी आजतक उपलब्ध नहीं हो पाई है. बीजिंग के तियानमेन चौक पर यह बर्बरता 3-4 जून की रात को हुई थी.

बीजिंग के तियानमेन चौक पर क्या हुआ था?

बीजिंग के तियामेन चौक पर लोकतंत्र के समर्थन में छात्रों ने प्रदर्शन किया था. यह प्रदर्शन राजनीतिक सुधारों के लिए हो रहा था. इसका उद्देश्य देश में लोकतंत्र की स्थापना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग करना था. लेकिन चीन की सरकार ने इस मांग और प्रदर्शन को देश विरोधी और राजनीतिक अस्थिरता फैलाने वाला करार दिया था, जिसकी वजह से सरकार ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया था और प्रदर्शन करने रहे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई थी. 3-4 जून की आधी रात को चीनी सेना ने तियामेन चौक में प्रवेश किया और युवाओं को टैंक से रौंदा और उनपर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिसकी वजह से हजारों युवा मारे गए. यह चीन का लोकतंत्र के समर्थन में किया गया सबसे सशक्त आंदोलन था जिसे बहुत ही बेरहमी के साथ दबा दिया गया था. चीन में आज भी इस आंदोलन के बारे में कोई बात नहीं करता है और बात करने पर गिरफ्तारी की आशंका बनी रहती है. चीनी सरकार इस घटना को नरसंहार मानने से आज भी इनकार करती है.

तियानमेन चौक पर आंदोलन क्यों शुरू हुआ था

Tiananmen-Square-Massacre
युवाओं को टैंक से रौंदा गया

15 अप्रैल 1989 को चीन के एक सुधारवादी नेता हू याओबांग का निधन हुआ था. वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव थे. उनके निधन से सुधार के समर्थकों को गहरी निराशा हुई और उन्होंने अपना शोक प्रकट करने के प्रदर्शन की शुरुआत की. यह प्रदर्शन धीरे-धीरे उनके राजनीतिक मांगों की ओर मुड़ गया और छात्रों ने लोकतंत्र की मांग शुरू कर दी. उनकी इस मांग को सरकार को जरा भी पसंद नहीं किया और उनके विद्रोह को पूरी तरह से दबाया गया. छात्रों की मांग राजनीति के सुधार से जुड़ी थी. वे यह चाहते थे कि देश में भ्रष्टाचार का अंत हो. आम लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी मिले और प्रेस की स्वतंत्रता कायम हो. लोकतांत्रिक सुधार को अपनाया जाए और नौकरशाही में पारदर्शिता हो. चीन ने इस आंदोलन से जुड़ी साम्रगियों को इंटरनेट से हटा दिया था. हालांकि चीन की इस बर्बर कार्रवाई की पूरे विश्व में निंदा हुई, लेकिन चीन की सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उसने अपने देश के हजारों युवाओं की बलि लेने के बाद भी कोई अफसोस प्रकट नहीं किया.

चीन में कभी नहीं रहा लोकतंत्र

चीन एक ऐसा देश है जहां कभी भी लोकतंत्र नहीं रहा. चीन के राजनीतिक इतिहास के साथ राजाओं और सम्राटों का नाम जुड़ा है. यहां के राजवंशों में शिया राजवंश को सबसे प्राचीन माना जाता है जो लगभग 2100-1600 ईपू के बीच रहा था. छिंग वंश को अंतिम राजवंश माना जाता है, जो 1912 में समाप्त हो गया. उसके बाद चीन में चीनी गणराज्य की स्थापना हुई और एकदलीय शासन व्यवस्था की स्थापना हुई. चीन में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है और वहां स्वतंत्र मीडिया और न्यायपालिका जैसी संस्थाएं नहीं हैं. वहां सबकुछ सरकार के नियंत्रण में होता है. सरकार का प्रमुख वहां का राष्ट्रपति होता है और वहां विपक्षी पार्टी जैसी कोई व्यवस्था नहीं है.

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