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Lateral entry controversy in Jharkhand: झारखंड सरकार में भी लेटरल एंट्री, चार विशेष सचिव हो चुके हैं नियुक्त

जानिए झारखंड में कब से लेटरल इंट्री से नियुक्ति का प्रावधान..किसने पहनाया अमली जामा..क्यों नहीं रद्द कर रही वर्तमान सरकार

Lateral entry controversy in Jharkhand: भारत सरकार में लेटरल एंट्री के जरिये उच्च पदों पर नियुक्ति को लेकर सियासी घमासान चरम पर पहुंच चुका है. लेटरल एंट्री के जरिये नियुक्ति को बिना प्रतियोगिता परीक्षा और आरक्षण रोस्टर के सरकार के चहेतों को ऊंचे पदों पर बैठाने की साजिश के आरोप लगाए जा रहे हैं. झारखंड सरकार के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दलों ने भी भारत सरकार की इस कोशिश का कड़ा विरोध किया है. इस कारण केंद्र को अपने कदम वापस लेने पड़े हैं. 

लेटरल एंट्री के जरिये नियुक्ति को लेकर भारत सरकार के बैकफुट पर आने के बाद भी झारखंड में इससे पैदा हुई आशंका को लेकर सियासत जारी है. इन सबके बीच बहुत कम लोगों को यह पता है कि झारखंड सरकार में भी अर्से से लेटरल एंट्री के जरिये ऊंचे पदों पर नियुक्ति का प्रावधान लागू है. यानी प्राइवेट सेक्टर से किसी खास क्षेत्र की विशेषज्ञता वाले लोगों को विशेष सचिव, संयुक्त सचिव और उप सचिव जैसे पदों पर बैठाया जा सकता है. इसके लिए उन्हें झारखंड लोक सेवा आय़ोग की प्रतियोगिता परीक्षा में बैठने की जरूरत भी नहीं होगी.

Lateral entry controversy in Jharkhand: प्राइवेट कंपनियों से लाकर नियुक्त किए गए चार विशेष सचिव

झारखंड में लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्ति प्रक्रिया की शुरूआत 2015 में हुई. रघुवर दास उस समय मुख्यमंत्री थे. उस वक्त भारत सरकार में भी बड़े पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए बड़े सरकारी पदों को भरा जा रहा था. रघुवर दास ने केंद्र के मॉडल को ही झारखंड में लागू करने की ठानी. इसके लिए बकायदा राज्य मंत्रिपरिषद में प्रस्ताव लाया गया. वहां से पारित करा कर कैबिनेट का संकल्प जारी किया गया. कैबिनेट संकल्प के आधार पर कई विभागों में नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाले गए. चुने गए विभागों में प्राइवेट सेक्टर के विशेषज्ञों को विशेष सचिव का पद देने के लिए विशेषज्ञता की विशिष्टता तय की गई. 

साल 2016 में तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा की अध्यक्षता में विशेष सचिव नियुक्त करने के लिए भारी-भरकम पैनल का गठन किया गया. विशेषज्ञता की दावेदारी की जांच के लिए अलग से एक्सपर्ट पैनल बनाए गए. आवेदनों में से शॉर्ट लिस्ट किया गया. इनमें से अधिकतर विशेषज्ञ बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम कर चुके थे. भारतीय प्रशासनिक सेवा के समकक्ष पद पाने की लालसा में उन्होंने आवेदन दिया था. पर बाद में कई ने ज्वाइन करने की इच्छा नहीं दिखाई. आखिरकार पांच को नियुक्ति-पत्र देने का फैसला किया गया. 

Lateral entry controversy in Jharkhand: लालफीताशाही से तंग आकर छोड़ गए तीन 

नियुक्ति-पत्र देने के लिए चुने गए पांच विशेषज्ञों में से एक अपने अनुभव का सही सबूत नहीं दे सके. अंत में चार को अलग-अलग विभागों में विशेष सचिव के पद पर तैनाती का पत्र सौंपा गया. झारखंड सरकार में विशेष सचिव का पद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए होता है. मिस्टर होरो सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में विशेष सचिव के पद पर तैनात किए गए. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की फोटोग्राफी प्रतियोगिता भी यहां कराई, जिसकी काफी दिनों तक चर्चा होती रही. डेढ़-दो साल काम करने के बाद उनके वेतन को लेकर वितंडा खड़ा हो गया. तंग आकर उन्होंने झारखंड सरकार को अलविदा कह दिया. 

स्वास्थ्य विभाग में लेटरल एंट्री से विशेष सचिव के पद पर ब्रजेश दास नियुक्त किए गए. उन्होंने लगभग चार साल तक काम किया. बाद में दूसरी जगह अच्छा अवसर मिल जाने के बाद उन्होंने भी स्वास्थ्य विभाग में विशेष सचिव की कुर्सी को बाय कह दिया. श्रम विभाग में भारत भूषण प्राइवेट सेक्टर से लाकर विशेष सचिव बनाए गए. लेबर पॉलिसी के मामले में उन्हें महारथ हासिल थी. उन्होंने कुछ ही महीनों में पदत्याग कर दिया. 

Lateral entry controversy in Jharkhand: कृषि विभाग में विशेष सचिव संविदा पर कर रहे काम

झारखंड सरकार की ओर से प्रदीप हजारी को फरवरी, 2017 में कृषि विभाग के  विशेष सचिव के पद पर तैनात किया गया. शुरू में उन्हें तीन साल की संविदा पर रखा गया. बाद में विशेषज्ञता को देखते हुए दो साल की संविदा बढ़ाई. उसके बाद दूसरी बार दो साल का संविदा विस्तार दिया गया. प्रदीप हजारी का काम कृषि विभाग में नीतिगत मामलों को अमली जामा पहनाने के लिए मैकेनिज्म तैयार करना है. इसके अलावा अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाने के लिए नीतियां बनाने में सहयोग करना है. 

झारखंड सरकार की ओर से प्राइवेट सेक्टर के विशेषज्ञों के अनुभव का लाभ सरकारी सेवाओं में लेने के लिए लेटरल एंट्री के जरिये नियुक्ति के लाए गए संकल्प के आउटपुट के तौर पर केवल एक विशेष सचिव आज भी कार्यरत है. हालांकि सरकार संविदा पर कई विभागों में विशेषज्ञों की सेवा ले रही है, लेकिन उन्हें या तो कंसल्टेंट कहा जाता है या आउटसोर्सिंग कंपनी का स्टाफ. लेटरल एंट्री के जरिये नियुक्ति नहीं कही जा सकती है. क्योंकि लेटरल एंट्री से नियुक्ति का सीधा संबंध झारखंड लोकसेवा आयोग से होने वाली नियुक्ति से संबंधित पदों पर तैनाती को लेकर है. 

Lateral entry controversy in Jharkhand: झारखंड में आज भी लागू है लेटरल एंट्री से नियुक्ति का प्रावधान

रघुवर दास ने मुख्यमंत्री रहते लेटरल एंट्री से नियुक्ति के प्रावधान का कैबिनेट संकल्प जारी कराया था. उस समय 2016 में  नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई. 2017 की फरवरी में चार को विशेष सचिव के पद पर ज्वाइन कराया गया. उसके बाद फिर कोई नियुक्ति प्रक्रिया लेटरल एंट्री को लेकर नहीं शुरू हुई. 2019 के दिसंबर में रघुवर दास की सरकार चली गई. हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने. 

हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद लेटरल एंट्री के जरिये कोई नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं हुई. परंतु रघुवर दास के समय इसके लिए जारी किया गया कैबिनेट संकल्प आज भी अस्तित्व में है. इसे वापस नहीं लिया गया है. इसके तहत कभी भी नियुक्ति की जा सकती है. हालांकि, इस पर किसी का ध्यान नहीं है. इसके बारे में कोई चर्चा भी नहीं होती है. वैचारिक एजेंडे के कारण हेमंत सरकार इस दिशा में पहल भी नहीं कर सकती है. पर लेटरल एंट्री के जरिये बड़े पदों पर नियुक्ति के प्रावधान रद्द नहीं किए गए हैं.

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