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एनडीए के ‘गेम चेंजर’: चिराग पासवान ने कैसे बदला बिहार चुनाव का समीकरण?

Bihar elections : 2021 में चिराग को एक और राजनीतिक धक्का लगा जब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने पार्टी तोड़ दी. पांच में से पांच सांसद चिराग का साथ छोड़ गए. पार्टी का नाम, चिन्ह, संसदीय पद सब छिन गया. चिराग अकेले पड़ गए, जैसे राजनीतिक दुनिया में कोई सहारा न बचा हो. लेकिन यहीं से चिराग की असली ताकत सामने आई. उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि लड़ाई लड़ी.

एडवोकेट राकेश कुमार सिंह,चेयरमैन, भारत उत्थान संघ, खाना चाहिए फाउंडेशन, महाराणा प्रताप फाउंडेशन

Bihar elections : कल्पना कीजिए, एक युवा नेता जो अपने पिता की मौत के बाद सब कुछ खो देता है – पार्टी, साथी, यहां तक कि नाम और चुनाव चिह्न भी. लेकिन वह हार नही मानता बल्कि और मजबूत होकर वापस आता है. ये कहानी है चिराग पासवान की, जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को आसमान छूने वाली सफलता दिलाई. एनडीए ने कुल 202 सीटें जीतीं, जिसमें भाजपा को 89 और जेडीयू को 85 मिलीं. लेकिन सबसे ज्यादा तालियां चिराग की पार्टी को मिलीं. 2020 में सिर्फ एक सीट जीतने वाली पार्टी 2025 में 28 में से 19 सीटें जीतकर रिकार्ड बनाती है! स्ट्राइक रेट के मामले में तो चिराग ने सबको पछाड़ दिया. ये सिर्फ चुनावी जीत नहीं बल्कि एक इंसान के जज्बे, मेहनत और कभी ना झुकने वाली हिम्मत की जीत है. एक ऐसी कहानी जो हार से शुरू होकर कामयाबी के शिखर पर पहुंची.

पिता की विरासत: रामविलास पासवान का वो सपना जो आज भी है जिंदा

ये सब शुरू हुआ 28 नवंबर 2000 को, जब दलितों के मसीहा कहे जाने वाले रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई. वो दौर था जब बिहार में सामाजिक न्याय की आवाज को मजबूत हाथों की जरूरत थी. रामविलास पासवान ने न सिर्फ दलित समाज को एक मंच दिया, बल्कि हर तबके के लोगों को साथ लेकर चलने का रास्ता दिखाया. उनकी राजनीति सिर्फ जाति की नहीं थी – वो राष्ट्रहित, आपसी भाईचारा और संविधान की रक्षा पर टिकी थी. पांच दशकों में उन्होंने केंद्र में कई बार मंत्री पद संभाला, अलग-अलग गठबंधनों में रहे, लेकिन हमेशा गरीबों और वंचितों की आवाज बने रहे. उनकी छाप आज भी भारतीय राजनीति में अमिट है.

सबसे कठिन दौर: जब सब कुछ टूटता नजर आया

फिर आया 8 अक्टूबर 2020 का वो दुखद दिन जब रामविलास पासवान दुनिया छोड़कर चले गए. चिराग जो अभी तक पिता की छत्रछाया में राजनीति के गुर सीख रहे थे, अचानक सब कुछ संभालने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. उन्हें 20 साल पुरानी पार्टी की विरासत बचानी थी. 2020 के बिहार चुनाव में चिराग ने एक बड़ा रिस्क लिया – एनडीए से अलग होकर लड़ने का फैसला. राजनीतिक पंडितों ने इसे उनकी गलती कहा और नतीजा भी वही हुआ, पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली. लगा जैसे चिराग का राजनीतिक सफर यहीं थम जाएगा. लेकिन ये अंत नहीं था, बल्कि एक नई शुरुआत थी. 2021 में चिराग को एक और राजनीतिक धक्का लगा जब उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने पार्टी तोड़ दी. पांच में से पांच सांसद चिराग का साथ छोड़ गए. पार्टी का नाम, चिन्ह, संसदीय पद सब छिन गया. चिराग अकेले पड़ गए, जैसे राजनीतिक दुनिया में कोई सहारा न बचा हो. लेकिन यहीं से चिराग की असली ताकत सामने आई. उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि लड़ाई लड़ी.

नई शुरुआत: लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का जन्म

चुनाव आयोग से लड़कर चिराग पासवान ने अपनी पार्टी को “लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)” नाम से रजिस्टर कराया. नया चिन्ह मिला और उन्होंने पार्टी को फिर से खड़ा किया. ये वक्त उनके लिए खुद को जानने और दोबारा बनाने का था. उन्होंने जमीनी स्तर से संघर्ष करना शुरू किया कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद किया हर इलाके में घूमे और लोगों की दिक्कतें सुनीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग ने कमाल कर दिखाया. एनडीए के साथ मिलकर उनकी पार्टी ने 100% स्ट्राइक रेट हासिल किया – जितनी सीटों पर लड़े, उन सभी पर जीत हासिल की. बिहार की राजनीति में दुर्लभ था. चिराग खुद हाजीपुर से जीते जो उनके पिता की कर्मभूमि थी. इस जीत से एनडीए में उनका रुतबा बढ़ा और मोदी सरकार 3.0 में उन्हें केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाया गया.

चिराग की असली चमक और बिहार विधानसभा चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग ने इतिहास लिख दिया. एनडीए की 202 सीटों में उनकी पार्टी ने 19 सीटें जीतीं और गठबंधन की तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनी. इस चुनाव में एलजेपी का स्ट्राइक रेट लगभग 70 फीसदी रहा जो भाजपा और जेडीयू से भी बेहतर है.

चिराग की समझदारी: सफलता के राज

चिराग की कामयाबी कोई संयोग नहीं, उनकी समझ और दूरदृष्टि का नतीजा है. राजनीतिक परिपक्वता का उदाहरण पेश करते हुए चिराग ने तीन चीजों का खास ध्यान रखा.

  • 2020 की गलती से सीखकर उन्होंने एनडीए में रहकर पार्टी को मजबूत किया. समझा कि अकेले से बेहतर है मजबूत साथियों के साथ चलना.
  • चिराग ने कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित किया. उन्होंने हर इलाके का दौरा किया और लोगों के बीच जाकर उनकी परेशानियों को समझा.
  • पार्टी के नाम में “रामविलास” जोड़कर उन्होंने पिता की याद और मूल्यों को हमेशा जिंदा रखा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अभूतपूर्व सफलता के बाद, चिराग पासवान और लोजपा (RV) का अगला लक्ष्य इस जनादेश को जिम्मेदार शासन में बदलना होना चाहिए. जिला स्तर पर संगठनात्मक नेटवर्क को सशक्त करना, युवाओं एवं महिलाओं के केंद्रित विकास पर ध्यान देना तथा राष्ट्रीय राजनीति में एक निर्णायक आवाज के रूप में उभरना अब पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिए. यह जीत अंत नहीं, बल्कि समावेशी और प्रदर्शन-प्रधान नेतृत्व की एक लंबी यात्रा की शुरुआत है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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