Brave Indian Queens: राजपूत राजाओं की तरह ही उनकी रानियों में भी शौर्य और बहादुरी कूट-कूटकर भरी थी. मुगलों के आक्रमण के समय राजपूत राजाओं को लगातार चुनौतियां मिली. इन चुनौतियों का राजाओं के साथ ही उनकी रानियों ने भी सामना किया और कभी अपने राणा का सिर झुकने नहीं दिया. भले ही उन्हें जौहर करना पड़ा.
महारानी पद्मावती
महारानी पद्मावती का विवाह चित्तौड़ के राजा रतन सिंह के साथ हुआ था. राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की पुत्री पद्मावती बहुत सुंदर थी. जिसकी चर्चा दूर-दूर के राज्यों तक थी. उनकी सुंदरता के बारे में जानकारी मिलने पर ही दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था. राजा रतन सिंह ने खिलजी की सेना का मुकाबला किया. जब खिलजी किला जीत नहीं पाया तो उसने किले की घेराबंदी कर दी और छह महीने से वहीं बैठा रहा. जब किले में खाने-पीने की कमी हो गई तो राजा रतन सिंह ने अलाउद्दीन की सेना पर हमला बोल दिया. लेकिन धोखे से वार के कारण उनकी मौत हो गई. इसके बाद खिलजी चित्तौड़ के किले में पहुंचा. लेकिन खिलजी के चित्तौड़ किले में घुसने से पहले रानी पद्मावती ने सैकड़ों महिलाओं के साथ जौहर कर लिया था. इतिहास के पन्नों में वो तारीख सन् 1303 के रूप में दर्ज है.
महारानी कर्णावती
महारानी कर्णावती राणा सांगा की पत्नी थी. वहीं राणा सांगा जिन्होंने बयाना के युद्ध में बाबर हरा दिया था. खानवा के युद्ध में राणा सांगा की मौत के बाद उनके बेटे विक्रमादित्य को सिंहासन मिला था. रानी कर्णावती ने बेटे को सिंहासन पर बैठाकर मेवाड़ को संभालने में मदद की. कर्नल जेम्स टाड ने Annals and Antiquities of Rajasthan में रानी कर्णावती के बारे में लिखा है. रानी कर्णावती की एक कहानी इतिहास में काफी चर्चा में है, जिसमें उन्होंने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह जफर से रक्षा के लिए बाबर के बेटे हुमायूं को राखी भेजी थी. इतिहास के पन्ने बताते हैं कि रानी कर्णावती बहादुर शाह जफर से मेवाड़ की रक्षा के लिए स्वयं युद्ध में कूद गई. लेकिन हुमायूं समय पर पहुंच नहीं पाए और वो युद्ध हार गई. इसके बाद हुमायूं ने मेवाड़ जीतकर उन्हें वापसकर दिया. महारानी कर्णावर्ती महाराणा प्रताप की दादी थी.
हाड़ी रानी
हाड़ी रानी हाड़ा चौहान राजपूत की बेटी थी. उनका विवाह रतन सिंह चूड़ावत से हुआ था. हाड़ी रानी का बलिदान इतिहास में एक अलग ही स्थान रखता है. उनके पति रतन सिंह को शादी के कुछ दिनों बाद ही औरंगजेब से युद्ध के लिए जाना पड़ता है. उन्हें शादी के कुछ दिन बाद ही युद्ध में जाना अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन राजा मान सिंह ने किशनगढ़ से औरंगजेब को दूर रखने के लिए रतन सिंह को जाने के लिए कहा. रतन सिंह ने युद्ध में जाने से पहले हाड़ी रानी से कोई निशानी मांगी, जिससे वो उन्हें युद्ध में याद कर सकें. रानी को समझ में आ गया कि वो पत्नी प्रेम में युद्ध में जाने से हिचक रहे हैं. इस पर हाड़ी रानी ने रतन सिंह को एक पत्र लिखा और तलवार से अपना सिर काटकर सैनिक के हाथों पति को भेज दिया. रतन सिंह ने जब पत्नी का कटा सिर देखा तो वह हतप्रभ रह गया. हाड़ी रानी का जब उन्होंने पत्र पढ़ा तो उसमें पति को युद्ध में जाने के लिए उत्साहवर्द्धन किया गया था. रतन सिंह ने हाड़ी रानी का सिर अपनी पीठ पर बांधा और युद्ध के लिए निकल गए. उन्होंने इस युद्ध में औरंगजेब को किशनगढ़ तक पहुंचने नहीं दिया और उसे हराकर वापस भेज दिया. अपनी इस कुर्बानी से हाड़ी रानी ने राजपूत धर्म को निभाने में रतन सिंह की मदद की थी. आज भी मेवाड़ में हाड़ी रानी का महल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
राजकुमारी रत्नावती
राजकुमारी रत्नावती जैसलमेर के राजा महारावल रत्न सिंह की बेटी थी. जैसलमेर के किले की रक्षा की जिम्मेदारी महारवल ने अपनी बेटी रत्नावती को सौंपी थी. एक बार अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने अपनी सेना लेकर जैसलमेर पर हमला बोल दिया. सेना ने किले को चारों तरफ से घेर लिया. रत्नावती ने बिना डरे अपनी सेना का संचालन किया और किले की रक्षा की. इस यु्द्ध में रत्नावती ने मलिक काफूर और उसके सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया था. अलाउद्दीन को जब मलिक काफूर के गिरफ्तार होने का पता चला तो उसने अतिरिक्त सैनिकों को भेजकर जैसलमेर के किले की घेराबंदी मजबूत कर दी. इससे किले में खाने-पीने की दिक्कत हो गई. इसके बावजूद रत्नावती ने हार नहीं मानी. अंतिम में अलाउद्दीन खिलजी को रत्नावती से संधि करनी पड़ी. खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने रिहा होते समय कहा कि रत्नावती वीरांगना भी और देवी समान भी हैं. किले में अन्न न होने के बावजूद दुश्मन सैनिकों को भूखा नहीं रहने दिया.
रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्तूबर 1524 को गोंडवाना में हुआ था. वो कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल की इकलौती बेटी थीं. राजा संग्राम शाह के बेटे दलपत शाह से उनकी शादी हुई थी. लेकिन विवाह के चार साल बाद ही दलपत शाह की मौत हो गई. उस समय दुर्गावती का बेटा नारायण मात्र तीन साल का था. इस पर रानी ने स्वयं ही राज्य की बागडोर संभाल ली. रानी दुर्गावती के राज्य पर मुगल शासकों ने कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा. इतिहास में दर्ज है कि बाज बहादुर ने भी उनके राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की थी. लेकिन दुर्गावती ने उसे भी बुरी तरह परास्त कर दिया था.
अकबर ने 1562 में बाज बहादुर को हराकर मालवा पर कब्जा किया. इसके बाद मालवा पर मुगलों का राज्य हो गया. अकबर ने रानी दुर्गावती के बारे में पहले ही सुन रखा था. मालवा पर कब्जा करने के बाद उसने सेनापति अब्दुल मजीद आसिफ खां को रानी दुर्गावती पर आक्रमण करने का निर्देश दिया. लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा. 1564 में एक बार फिर अकबर ने दुर्गावती के राज्य पर हमला बोला. पूरी तैयारी से आई अकबर की सेना के सामने दुर्गावती को इस बार भारी नुकसान उठाना पड़ा. अकबर के सेनापति के हाथों कैद होने से पहले रानी दुर्गावती ने अपनी तलवार से खुद की जान ले ली.
रानी रूपमती
रानी रूपमती मालवा के सुल्तान बाज बहादुर की पत्नी थी. 15वीं शताब्दी की रूपमती और बाज बहादुर की प्रेमकहानी इतिहास में चर्चित है. एक सामान्य परिवार में जन्मी रूपमती की सुंदरता से मोहित होकर बाज बहादुर ने उससे शादी की थी और मालवा की रानी का दर्जा दिया था. दिल्ली के सुल्तान अकबर को जब रूपमती की सुंदरता का पता चला, वो उसे देखने के लिए व्याकुल हो उठा. उसने अपने सेनापति आदम खां को भेजकर बाज बहादुर रूपमति को दिल्ली भेजने के लिए कहा. लेकिन बाज बहादुर ने अकबर के संदेश को ठुकरा दिया. इस पर आदम खां और बाज बहादुर के बीच युद्ध हुआ. जिसमें बाज बहादुर की हार हो गई. आदम खां जीत के बाद रूपमती को लेने मांडू के किले में पहुंचा. वहां उसे पता चला कि रूपमती ने पति की हार की सूचना मिलने के बाद जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद रूपमती के शव को सारंगपुर लाया गया. बाज बहादुर को भी सारंगपुर लाया गया. रूपमती की मौत की खबर सुनकर बाज बहादुर ने भी वहीं सिर पटक-पटककर जान दे दी. आज भी सारंगपुर में रूपमती और बाज बहादुर का मकबरा बना हुआ है.