पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला देते हुए कहा कि मां बनना किसी भी महिला का अपना अधिकार है. दरअसल, हुआ यूं कि तमिलनाडु के धर्मपुरी जिला में एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय है. इस विद्यालय में एक अंग्रेजी की शिक्षिका हैं. उनके पहले विवाह से दो बच्चे हैं. लेकिन किन्हीं कारणों से पति से तलाक हो गया. यह 2017 की बात है. पर बच्चे पिता के संरक्षण में ही रहे. फिर इस अध्यापिका ने 2018 में दोबारा विवाह कर लिया. वर्ष 2021 में वह गर्भवती हुई. इस कारण उसने 17 अगस्त, 2021 से 13 मई, 2022 तक के मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया. लेकिन अधिकारियों ने मातृत्व अवकाश के इस आवेदन को नियमों का हवाला देते हुए यह कहकर अस्वीकृत कर दिया कि उसके पहले से ही दो बच्चे हैं. एफआर 101 (ए) के बारे में बताते हुए कहा गया कि इस अवकाश का लाभ उन्हीं महिलाओं को मिल सकता है, जिनके दो से कम बच्चे हों.
शिक्षिका ने इस नियम को मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी. न्यायालय की एकल पीठ ने महिला के पक्ष में फैसला दिया. शिक्षा विभाग को आदेश भी दिया कि महिला को मातृत्व अवकाश दिया जाए. लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को नहीं माना. तब यह महिला अपनी परेशानी लेकर उच्चतम न्यायालय पहुंची. उच्चतम न्यायालय ने मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए कहा कि बेशक महिला के दो बच्चे हैं, पर इसके बावजूद महिला को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए. विश्वभर में स्त्री के मां बनने के अधिकार को स्वीकार किया गया है. इसलिए मातृत्व अवकाश मां बनने के दौरान दिये जाने वाले लाभ का एक हिस्सा है. न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान का 21वां अनुच्छेद जीवन के अधिकार की गारंटी देता है. अदालत ने 2017 में किये गये मातृत्व लाभ संशोधन कानून पर भी ध्यान देते हुए कहा कि इसमें यदि किसी महिला के पहले से दो बच्चे हैं, और वह तीसरे बच्चे को जन्म देने वाली है, तब भी मातृत्व अवकाश लेने पर कोई रोक नहीं है. हां, जहां दूसरे बच्चे तक यह छब्बीस हफ्ते का होता है, वहीं दो से अधिक बच्चे के लिए इसकी समय सीमा बारह हफ्ते है.
कुछ दशक पहले तक जो महिला कर्मचारी इएसआइ के अंतर्गत आती थीं, उन्हें चौरासी दिन का अवकाश मिलता था. सरकारी संस्थानों में भी तीन महीने या बारह हफ्ते का अवकाश था. बाद में सरकारी संस्थानों में महिलाओं की सुविधा के लिए बच्चे के अठारह वर्ष के होने तक महिलाएं दो वर्ष की सवैतनिक छुट्टी ले सकती हैं, की सुविधा भी प्रदान की गयी. इसे ‘चाइल्ड केयर लीव’ का नाम दिया गया था. मोदी सरकार ने 2017 में मातृत्व अवकाश को तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने का कर दिया. जो एक अच्छी पहल है. इन दिनों परिवार छोटे हैं. बच्चे के पालने की जिम्मेदारी मां पर ही ज्यादा पड़ती है, इसलिए इतनी लंबी छुट्टी की व्यवस्था ठीक है. ऐसा भी समय रहा है जब महिलाएं चाहे जितनी भी योग्य और प्रतिभाशाली क्यों न हों, उन्हें इसलिए नौकरी नहीं दी जाती थी कि कल इनका विवाह होगा. फिर बच्चे होंगे और इन्हें छुट्टी देनी पड़ेगी. इस कारण काम में नुकसान होगा. मोदी सरकार ने जब मातृत्व अवकाश छह महीने का किया, तो बहुत सी ऐसी आवाजें सुनाई दीं कि महिलाओं को इतनी लंबी छुट्टी दें, तो उनकी जगह काम के लिए कोई अस्थायी कर्मचारी रखें. ऐसे में महिला को भी वेतन दें और इस अस्थायी कर्मचारी को भी. इस तरह पैसे की दोहरी मार झेलें, या फिर काम का नुकसान होने दें. तो महिलाओं को नौकरी पर रखें ही क्यों. फिर हर समय उनकी सुरक्षा की भी चिंता करें कि वे अपने घर ठीक से पहुंची या नहीं. सुरक्षा की गारंटी के लिए भी पैसे खर्च करें.
अमेरिका के बहुत से राज्यों में भी सरकारी महिला कर्मचारियों को पेरेंटल लीव के तहत बारह हफ्ते की सवैतनिक छुट्टी मिलती है. परंतु निजी क्षेत्रों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के लिए नियम अलग हैं. अमेरिका, ओइसीडी (ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉरपोरेशन एंड डेवलपमेंट) के 38 देशों में इकलौता ऐसा देश है, जहां आज तक ऐसा नियम नहीं बनाया जा सका है कि निजी कंपनियों में काम करने वाली कर्मचारियों को सवैतनिक मातृत्व अवकाश दिलवा सकें. यह भी विचित्र ही है कि जिन कंपनियों में सवैतनिक पेरेंटल लीव नहीं है, लेकिन यदि वहां महिला ऐसी छुट्टी पर जाए, तो उसकी नौकरी पर कोई खतरा नहीं होता. परंतु जिन कुछ संस्थानों में महिलाओं को सवैतनिक छुट्टी मिल सकती हैं, वहां उनकी नौकरी बचे रहने की कोई गारंटी नहीं होती. कहने को तो अमेरिका और बहुत से यूरोपीय देश अपनी घटती आबादी को लेकर चिंतित हैं. यही नहीं वे महिलाओं और बच्चों के बड़े भारी हितैषी भी कहलाते हैं. इससे अच्छा तो अपना देश ही है, जहां महिलाएं सरकारी क्षेत्रों में काम करें या निजी में, मातृत्व अवकाश सबके लिए एक जैसा है. हां, संगठित क्षेत्र की महिलाओं को जो सुविधाएं मिलती हैं, वे असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली स्त्रियों को भी जरूर मिलनी चाहिए. इस बारे में भी सरकार को नियम बनाना चाहिए. यदि मां बनना महिला का कानूनी अधिकार है, तो वह हर स्त्री को मिले.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)