Reciprocal Tariffs : आखिरकार ट्रंप प्रशासन ने भारतीय निर्यात पर 27 प्रतिशत जवाबी शुल्क थोप दिया. हालांकि आगामी नौ अप्रैल से लागू होने वाले जवाबी शुल्क का पूरा ब्योरा अभी उपलब्ध नहीं है. ट्रंप प्रशासन ने उन सभी देशों पर जवाबी शुल्क थोपे हैं, जो उसके निर्यातों पर भारी शुल्क लगाते हैं. अमेरिका द्वारा उठाये गये इस कदम के बाद भारत अब अमेरिका के साथ, जो उसका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने में तेजी दिखायेगा. लेकिन इसके लिए भारत चाहे जितनी भी तेजी दिखाये, ऐसा कोई समझौता आगामी सितंबर-अक्तूबर से पहले होना संभव नहीं दिखता.
ट्रंप प्रशासन ने अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग जवाबी या पारस्परिक टैरिफ का एलान तो किया ही है, इसके अलावा 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स भी लगाया है, जो सभी देशों पर समान रूप से लागू होगा. गौर करने की बात है कि कनाडा और मेक्सिको को जवाबी टैरिफ से बख्श दिया गया है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने पहले ही उन देशों पर 25 फीसदी टैरिफ थोप रखा है. रूस और उत्तर कोरिया भी ट्रंप प्रशासन के टैरिफ से बाहर हैं, और व्हाइट हाउस ने सफाई दी है कि क्यूबा और बेलारूस के साथ इन दो देशों पर भी इतने प्रतिबंध आयद हैं कि उनका अमेरिका के साथ व्यापार करना संभव ही नहीं दिखाई देता.
वाशिंगटन ने ज्यादातर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर भारी जवाबी शुल्क थोपे हैं. चीन पर 34 फीसदी का जवाबी शुल्क थोपा गया है, जबकि ताइवान पर 32 प्रतिशत और वियतनाम पर 46 फीसदी शुल्क लगाये गये हैं.
इस लिहाज से देखें, तो भारत पर लगाया गया 27 फीसदी जवाबी शुल्क तुलनात्मक रूप से दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से कम है. नयी अमेरिकी टैरिफ नीति के अनुसार, बांग्लादेश पर (ज्यादातर उसके गारमेंट्स पर) 37 फीसदी, पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत और श्रीलंका पर 44 फीसदी जवाबी शुल्क लगाया गया है. आश्चर्य की बात यह है कि अमेरिका के पुराने दोस्तों को भी नहीं बख्शा गया है. यूरोपीय संघ पर 20 फीसदी, ब्रिटेन पर 10 प्रतिशत, जापान पर 24 फीसदी और दक्षिण कोरिया पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है.
कनाडा और यूरोपीय संघ समेत कुछ दूसरे देश अमेरिका के खिलाफ ऐसा ही कदम उठाने के बारे में सोच रहे हैं. चीन ने तो शुरू में ही जवाबी तेवर दिखा दिये हैं. जहां तक भारत की बात है, तो वह इस मामले में हड़बड़ी नहीं दिखायेगा और कूटनीति से काम लेते हुए आपसी बातचीत के जरिये मसला सुलझाने की कोशिश करेगा. ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से अमेरिका में भारतीय निर्यात पर असर पड़ने की आशंका है. अमेरिका का जवाबी शुल्क भारत के लिए झटका है, जो इस स्थिति से बचने के लिए पहले से अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले उत्पादों पर रियायत देने के बारे में सोच रहा था. उदाहरण के लिए, द्विपक्षीय वार्ता से पहले फरवरी में भारत ने बॉर्बन व्हिस्की पर शुल्क 150 फीसदी से घटाकर 100 प्रतिशत कर दिया था. लेकिन ऐसा लगता है कि भारत के ये कदम ट्रंप प्रशासन को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाये.
लिहाजा ट्रंप प्रशासन के फैसले से टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स तथा रत्न और आभूषण का अमेरिका को निर्यात बुरी तरह प्रभावित होने वाला है. हालांकि बड़ी राहत यह है कि फार्मास्युटिकल क्षेत्र को, जो अमेरिका को किये जाने वाले निर्यात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जवाबी शुल्क से छूट मिली हुई है, क्योंकि अमेरिका की टैरिफ सूची में फार्मास्युटिकल क्षेत्र शामिल नहीं है.
इस्पात, एल्युमीनियम, ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स, तांबा, सेमीकंडक्टरों और काष्ठ उत्पादों को दूसरी श्रेणी में रखा गया है. ऊर्जा तथा अमेरिका में नहीं पाये जाने वाले खनिजों को भी ट्रंप प्रशासन के जवाबी शुल्क से छूट मिली है. अलबत्ता भविष्य में जब भी भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक वार्ता होगी, उसमें कृषि उत्पादों के निर्यात पर बातचीत सबसे महत्वपूर्ण होगी. अमेरिका जिन कृषि उत्पादों का निर्यात करता है, उनमें गेहूं, सोयाबीन, कॉर्न, बादाम, फल, सब्जियां, पशु उत्पाद आदि प्रमुख हैं. भारत में भी सोयाबीन खूब पैदा होता है, और यह दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक है.
पहले चीन अमेरिकी सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक था. लेकिन आपसी शुल्क युद्ध छिड़ने के बाद चीन अमेरिका से सोयाबीन का आयात कतई नहीं करना चाहेगा. ऐसे में, आने वाले दिनों में अगर भारत अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क घटाने की कवायद करता है, तो बड़ी मात्रा में सस्ते अमेरिकी सोयाबीन भारत आ सकते हैं. इससे भारतीय किसानों के लिए सोयाबीन की खेती दीर्घावधि में घाटे का सौदा बन सकती है. अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत के बाद ताजा अमेरिकी सेबों पर शुल्क 50 फीसदी से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है.
स्किम्ड मिल्क पाउडर का आयात इस पर लगे 60 फीसदी शुल्क के कारण अब मुश्किल लगता है. अमेरिका डेयरी और पशु उत्पादों का बड़ा निर्यातक है, और वह भारत के दूध और डेयरी उत्पादों के क्षेत्र में घुसने के लिए लंबे समय से कोशिश कर रहा है, जबकि भारत खुद डेयरी क्षेत्र में एक वैश्विक ताकत है.भारतीय मछली तथा दूसरे समुद्री उत्पादों का अमेरिका में बड़े पैमाने पर निर्यात होता है. हालांकि इन उत्पादों का निर्यात 2020-21 के 2.7 अरब डॉलर से घटकर 2023-24 में घटकर 1.9 अरब डॉलर रह गया. मौजूदा स्थिति में भारतीय मछली और समुद्री उत्पादों का अमेरिका को निर्यात दांव पर लगा है.
अमेरिका में कॉफी, चाय और मसालों के निर्यात पर भी असर पड़ सकता है.
अगर भारतीय कृषि को वैश्विक आयातों के सामने खुला छोड़ दिया जाता, तब वैश्विक खाद्य उत्पादों की कीमत में उतार-चढ़ाव तथा घरेलू उत्पादन की कमी-बेसी के कारण कीमतों में बदलाव से भारतीय किसानों का जीवन दूभर हो जाता. कुल मिलाकर, इस शुल्क युद्ध के बाद भारतीय बाजार पहले से अधिक अमेरिकी कृषि उत्पादों से भर जायेगा, जबकि अमेरिकी बाजार में भारतीय कृषि उत्पाद कम जायेंगे, नतीजतन कृषि निर्यात में भारत को जो बढ़त हासिल थी, उसमें कमी आयेगी या वह पूरी तरह खत्म हो जायेगी. जाहिर है, अमेरिका के सामने इन तमाम मुद्दों को उठाने में समय लगेगा. जिस तेजी और आक्रामकता के साथ जवाबी शुल्क थोपे गये हैं, उसे देखते हुए फिलहाल भारत के पास बातचीत की गुंजाइश कम है. सरकार पर दबाव बढ़ गया है. उसे वैश्विक व्यापार माहौल पर नजर रखने के साथ अपनी अर्थव्यवस्था के विकास पर भी ध्यान रखना होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)