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शिक्षा की विसंगति

Union Ministry of Education : ऐसे स्कूल देश के ग्रामीण इलाकों में ही ज्यादा हैं. शिक्षा मंत्रालय के शैक्षणिक वर्ष 2024-25 का आंकड़ा बताता है कि 2022 में इस तरह के स्कूल 1,18,190 थे, जबकि 2023 में ऐसे स्कूलों की संख्या 1,10, 971 थी.

Union Ministry of Education : केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का यह आंकड़ा चौंकाने वाला है कि देश में 1,04,125 स्कूल ऐसे हैं, जहां पढ़ाने वाले एक ही शिक्षक हैं. इन स्कूलों में 33,76,769 बच्चे पढ़ रहे हैं. यानी ऐसे हर स्कूल में औसतन 34 छात्र-छात्राएं हैं. जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत प्राथमिक स्कूलों में हर 30 बच्चों पर एक शिक्षक और उच्च प्राथमिक स्तर पर हर 35 बच्चों पर कम से कम एक शिक्षक का होना अनिवार्य है. एक शिक्षक वाले इन स्कूलों की संख्या आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 12,912 है. जबकि ऐसे 9,508 स्कूलों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर और 9,172 स्कूलों के साथ झारखंड तीसरे स्थान पर है. इन स्कूलों में नामांकन के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. वहां 6.2 लाख बच्चे ऐसे स्कूलों में पढ़ते हैं. दूसरे स्थान पर झारखंड है, जहां एक शिक्षक वाले स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 4.36 लाख है.

ऐसे स्कूल देश के ग्रामीण इलाकों में ही ज्यादा हैं. शिक्षा मंत्रालय के शैक्षणिक वर्ष 2024-25 का आंकड़ा बताता है कि 2022 में इस तरह के स्कूल 1,18,190 थे, जबकि 2023 में ऐसे स्कूलों की संख्या 1,10, 971 थी. यानी पिछले दो वर्षों में इन स्कूलों की संख्या में छह प्रतिशत की गिरावट आयी है, पर शिक्षक-छात्र अनुपात अब भी अधिक बना हुआ है. हालांकि चीजें बेहतर भी हो रही हैं. जैसे, माध्यमिक स्तर पर 10 साल पहले 26 छात्रों पर एक शिक्षक थे, जबकि अब 17 छात्रों पर एक शिक्षक हैं. ड्रॉपआउट रेट भी घटा है. माध्यमिक स्तर पर 2023-24 में यह 10.9 प्रतिशत था, जो 2024-25 में घटकर 8.2 फीसदी रह गया है.

ऐसे ही, माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट रेट 5.2 प्रतिशत से घटकर 3.5 प्रतिशत और प्राथमिक स्तर पर यह 3.7 प्रतिशत से घटकर 2.3 प्रतिशत रह गया है. हालांकि राज्य स्तर पर असमानता बनी हुई है. जैसे, हायर सेकेंडरी स्तर पर झारखंड के स्कूलों में एक शिक्षक को औसतन 47 छात्रों को पढ़ाना पड़ता है, जबकि सिक्किम में यह आंकड़ा सात है. शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने की सरकार की कोशिशों के बावजूद एक शिक्षक वाले स्कूलों का अब भी इतनी बड़ी संख्या में होना हर बच्चे की शिक्षा तक पहुंच में बाधक तो है ही, यह शिक्षा की गुणवत्ता में गहरी असमानता को भी उजागर करता है. अच्छी बात यह है कि इस विसंगति को दूर करने के लिए सरकार उन स्कूलों का एकीकरण कर रही है, जिनमें नामांकन बहुत कम हैं, ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके.

Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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