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ट्रंप की नीतियों से एकजुट होता ब्रिक्स

BRICS : ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के इस समूह का उद्देश्य वैश्विक व्यवस्था में ग्लोबल साउथ की आवाज मजबूत करना था, पर चीन और भारत के बीच सीमा विवाद इसकी प्रभावशीलता को सीमित करते रहे.

BRICS : डोनाल्ड ट्रंप जब दूसरे कार्यकाल में व्हाइट हाउस लौटे, तो यह उम्मीद थी कि भारत–अमेरिका संबंध और प्रगाढ़ होंगे, पर ट्रंप की अस्थिर व्यापार नीतियों और टकरावपूर्ण बयानबाजी ने इन उम्मीदों को झटका दिया. उनके द्वारा शुल्क को भू-राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल ने न केवल पारंपरिक साझेदारों को असहज किया, बल्कि अनपेक्षित नतीजे भी दिये. जिस ब्रिक्स को कमजोर माना जाता था, वह पहले से अधिक एकजुट दिख रहा है.

ब्रिक्स को शुरू में एक अजीब गठबंधन माना जाता था, जिसमें लोकतांत्रिक और अलोकतांत्रिक, दोनों प्रकार की व्यवस्थाएं शामिल थीं. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के इस समूह का उद्देश्य वैश्विक व्यवस्था में ग्लोबल साउथ की आवाज मजबूत करना था, पर चीन और भारत के बीच सीमा विवाद इसकी प्रभावशीलता को सीमित करते रहे. वर्ष 2024-25 में सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, इथियोपिया, इंडोनेशिया और ईरान के जुड़ने से इसका आर्थिक वजन बढ़ा, पर आलोचकों ने कहा कि इससे समूह और बिखर सकता है, पर ट्रंप की ताजा शुल्क वृद्धि ने वह कर दिखाया, जो वर्षों के शिखर सम्मेलनों से भी नहीं हो पाया- यानी ब्रिक्स के देश साझा रणनीति पर साथ दिख रहे हैं.


बीते दिनों ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ में 25 फीसदी की अतिरिक्त वृद्धि की. इसके पीछे कारण बताया गया कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है. भारत अकेला निशाने पर नहीं है. चीन, ब्राजील और रूस पर भी भारी शुल्क लगाये गये. चीन के साथ यह आर्थिक प्रतिस्पर्धा का हिस्सा था, ब्राजील पर उनके राजनीतिक निर्णयों के लिए और रूस पर यूक्रेन युद्ध को लेकर. ट्रंप ने भारत और रूस को ‘मृत अर्थव्यवस्थाएं’ कहा तथा ब्रिक्स को ‘अमेरिका विरोधी गठबंधन’ करार दिया. उन्होंने ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त 10 फीसदी सार्वभौमिक शुल्क लगाने की धमकी दी, जिसे वह अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए जरूरी बताते हैं, हालांकि अधिकांश इसे संरक्षणवादी आक्रामकता मानते हैं.

ब्रिक्स देशों की प्रतिक्रिया तेज और सामूहिक थी. नेताओं ने इसे बहुपक्षवाद पर हमला और स्वतंत्र देशों की आर्थिक संप्रभुता को कमजोर करने का प्रयास बताया. ब्राजील के राष्ट्रपति ने, जो अभी ब्रिक्स के अध्यक्ष हैं, ट्रंप की एकतरफा नीति की आलोचना की और प्रधानमंत्री मोदी से लंबी बातचीत की. यह औपचारिक संवाद नहीं था, ब्रिक्स की संयुक्त रणनीति की नींव रखने वाला कदम था. लूला ने स्पष्ट किया कि मौजूदा हालात में अमेरिका के साथ व्यापार रियायतों पर बातचीत की कोई इच्छा नहीं है. भारत में चीन के राजदूत ने भारत का समर्थन करते हुए कहा कि शुल्क को आर्थिक हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. चीनी सरकारी मीडिया ने भी संकेत दिये हैं कि अमेरिकी रवैये के चलते चीन-भारत के ठंडे पड़े रिश्तों में गर्माहट आ सकती है.


कुछ वर्ष पहले तक चीन और भारत सीमा विवादों में उलझे थे तथा आपसी अविश्वास गहरा था. अब अमेरिकी शुल्कों के खिलाफ साझा प्रतिरोध ने संवाद का नया अवसर पैदा किया है. मोदी सात वर्ष बाद शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जायेंगे, जो उच्च स्तरीय जुड़ाव की इच्छा को दर्शाता है. वहीं पुतिन ने मोदी से सीधे बात कर रणनीतिक और ऊर्जा सहयोग को मजबूत करने की सहमति दी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रूस यात्रा भी इस दिशा में गंभीरता को रेखांकित करती है.

ट्रंप की नीतियों के कारण जटिल हैं, पर ब्रिक्स पर उनका ध्यान डॉलर वर्चस्व की चिंता से भी जुड़ा है. ब्रिक्स के भीतर वैकल्पिक भुगतान तंत्र, साझा मुद्रा या ‘ब्रिक्स पे’ पर चर्चा हो रही है, जो अमेरिकी वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है. रूस पर लगे प्रतिबंध और स्विफ्ट से उसकी निकासी ने इस सोच को बल दिया है. भारत साझा ब्रिक्स मुद्रा की योजना से इनकार करता है, पर डॉलर पर निर्भरता घटाने का समर्थन करता है. विडंबना यह है कि ब्रिक्स की संभावित मुद्रा को लेकर डर ने ट्रंप को क्रिप्टोकरेंसी पर अपना रुख पलटने पर मजबूर कर दिया है.

पहले वह बिटकॉइन और डिजिटल संपत्तियों के आलोचक थे, पर अब वह अमेरिका को वैश्विक क्रिप्टो केंद्र बनाने की बात कर रहे हैं. उनकी सरकार ने क्रिप्टो को प्रोत्साहित करने के आदेश जारी किये हैं, जैसे रिटायरमेंट खातों में डिजिटल संपत्तियों की अनुमति और ‘स्ट्रेटेजिक बिटकॉइन रिजर्व’ का गठन. यह कदम न केवल भविष्य की आर्थिक रणनीति के तौर पर, बल्कि उनके परिवार के निजी व्यावसायिक हितों से भी मेल खाता है. इसे ब्रिक्स की वित्तीय नवाचार योजनाओं का जवाब माना जा रहा है.


भारत के लिए यह स्थिति संतुलन साधने वाली है. नयी दिल्ली ने अमेरिकी शुल्कों को ‘अनुचित’ बताया है और वाशिंगटन से आग्रह किया है कि वह भारत के ऊर्जा एवं व्यापारिक फैसलों का सम्मान करे, पर नीति-निर्माताओं के बीच यह भावना बढ़ रही है कि ब्रिक्स के साथ मिल कर आर्थिक लचीलापन बढ़ाना और पश्चिमी दबाव का सामना करना जरूरी है, तब जब ग्लोबल साउथ बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा में बढ़ रहा है. आज ब्रिक्स विश्व की 46 फीसदी आबादी और 35.6 फीसदी वैश्विक जीडीपी का प्रतिनिधित्व करता है. इसका विस्तारित स्वरूप ऊर्जा उत्पादकों, विनिर्माण केंद्रों और उभरते बाजारों का मिश्रण है.

लूला और मोदी पहले ही 2024 के 12 अरब डॉलर के भारत-ब्राजील द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 20 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कर चुके हैं. यह लक्ष्य ब्रिक्स की उस व्यापक महत्वाकांक्षा का हिस्सा है, जिसमें आत्मनिर्भरता और एकतरफा पश्चिमी प्रतिबंधों या शुल्कों से बचाव की रणनीति शामिल है. ट्रंप की शुल्क हथियार नीति से उत्पन्न यह एकजुटता वैश्विक राजनीति के परिदृश्य को बदल रही है. जो भारत-अमेरिका संबंध कभी 21वीं सदी की निर्णायक साझेदारी माने जाते थे, वे अब तनावपूर्ण दौर में हैं.

वहीं ब्रिक्स के भीतर संवाद और सहयोग का स्तर वर्षों में सबसे अधिक है. मोदी की लूला और पुतिन से बातचीत, चीन के साथ संभावित कूटनीतिक नरमी, सब भारत की विदेश नीति में पुनर्संतुलन का संकेत है. ब्राजील, रूस और चीन के लिए एक अधिक संगठित ब्रिक्स न केवल आर्थिक, बल्कि वैश्विक शासन संस्थाओं में भी अधिक प्रभाव का साधन है. ट्रंप ब्रिक्स से घृणा करते हैं, पर उनकी ही कार्रवाइयां इसे मजबूत कर रही हैं. जो कभी एक संक्षिप्त नाम मात्र था, वह अब वैश्विक राजनीति में वास्तविक शक्ति गुट बनने की ओर अग्रसर है. एकता अब भी प्रारंभिक और नाजुक है, पुराने मतभेद कायम हैं, लेकिन दिशा स्पष्ट है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

आनंद कुमार
आनंद कुमार
डॉ. आनंद कुमार नई दिल्ली स्थित मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (MP-IDSA) में एसोसिएट फेलो हैं। डॉ. कुमार अब तक चार पुस्तकें लिख चुके हैं और दो संपादित ग्रंथों का संपादन कर चुके हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक Strategic Rebalancing: China and US Engagement with South Asia है।

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