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ऋण वितरण में तेजी से विकास को मिलेगी गति

Loan Disbursement : पिछले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में कुल ऋण में वृद्धि दर घटकर विगत 30 मई को खत्म हुए पखवाड़े में 8.97 फीसदी रह गयी. इस क्षेत्र में सकल एनपीए चालू वित्त वर्ष के अंत तक बढ़कर 16 फीसदी होने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष के 8.8 फीसदी से लगभग दोगुना है.

Loan Disbursement : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के अनुसार 20 सितंबर से तीन अक्तूबर के दौरान बैंकों की ऋण वृद्धि दर पिछले साल की तुलना में 11.4 फीसदी के स्तर पर पहुंच गयी, जबकि जमा वृद्धि दर 9.9 प्रतिशत के स्तर पर. इस दौरान 3.63 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि के ऋण वितरित किये गये, जबकि इससे पिछले पखवाड़े में ऋण के रूप में वितरित की गयी राशि 1.02 लाख करोड़ रुपये थी. वहीं, इस अवधि में बैंकों में जमा वृद्धि राशि 5.51 लाख करोड़ रुपये थी.

गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही में ऋण वृद्धि दर 9.5 फीसदी रही थी, जो दूसरी तिमाही तक बढ़कर लगभग 11.4 फीसदी के स्तर तक पहुंच चुकी है. घरेलू क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार बैंकों की ऋण वृद्धि दर में मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के अंत तक 12 फीसदी के स्तर पर पहुंच जायेगी. माना जा रहा है कि त्योहारी सीजन, सरकारी और नियामकीय उपायों और कॉरपोरेट कर्जदारों के बॉन्ड बाजार से बैंक उधारी को पंख लगेंगे.


हालांकि, निजी पूंजीगत व्यय की वृद्धि में थोड़ा वक्त लगेगा, क्योंकि निजी कंपनियों का विस्तार वैश्विक अनिश्चितताओं की वजह से अपेक्षित गति से नहीं हो पा रहा. आम लोगों का बैंक जमा में योगदान भी विगत पांच वर्षों में 64 फीसदी से घटकर 60 फीसदी रह गया है, जिससे बैंकों की डिपॉजिट में कमी आई है. पिछले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में कुल ऋण में वृद्धि दर घटकर विगत 30 मई को खत्म हुए पखवाड़े में 8.97 फीसदी रह गयी. इस क्षेत्र में सकल एनपीए चालू वित्त वर्ष के अंत तक बढ़कर 16 फीसदी होने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष के 8.8 फीसदी से लगभग दोगुना है. इसलिए बैंक परिसंपत्ति की गुणवत्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं.

साथ ही, वे अंडरराइटिंग मानकों को लगातार सख्त बना रहे हैं, ताकि एनपीए में वृद्धि न हो. कुल उधारी में वृद्धि की धीमी गति से बकाया ऋण भुगतान अनुपात (एलडीआर) घटकर 78.9 फीसदी रह गया. इंक्रीमेंटल एलडीआर भी एक साल पहले के 98.9 फीसदी से घटकर 72.7 फीसदी रह गया. यह किसी बैंक के कुल ऋणों और उसकी कुल जमा राशि के बीच का अनुपात होता है, जो बैंक की तरलता और वित्तीय सेहत को मापने का महत्वपूर्ण संकेतक है. पिछले साल की समान अवधि में जमा वृद्धि की तुलना में ऋण वृद्धि काफी अधिक रही और इसमें 700 आधार अंकों का अंतर रहा, जिस कारण बैंकिंग प्रणाली में एलडीआर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.


पिछले साल जुलाई से ऋण वृद्धि में नरमी आयी, जिसका प्रमुख कारण उधारी दर का अधिक होना था. स्थिति पर काबू पाने के लिए इस साल फरवरी से अब तक रेपो दर में कुल 100 आधार अंकों की कटौती की गयी है. फिर भी, फरवरी तक ऊंची ब्याज दर के कारण कई कॉरपोरेट्स ने विदेशों के ऋण पूंजी बाजार की तरफ रुख किया. इस साल दीपावली में कारोबार पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी के उछाल के साथ 5.40 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया, जबकि सेवाओं में 65,000 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई. यह आंकड़ा दर्शाता है कि इस साल भी हमने चीनी उत्पादों की जगह मेड इन इंडिया को तरजीह दी है. पिछले वर्ष दीपावली में 4.25 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था. फिलहाल, मामले में बैंक ऋण के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पर इतना कहा जा सकता है कि दीपावली में हुई बिक्री में बैंक उधारी का बड़ा योगदान रहा है. केंद्र सरकार की सकारात्मक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर नीतियों से कर प्रणाली सरल, पारदर्शी और व्यापार-अनुकूल हुई है. जीएसटी और प्रत्यक्ष करों में सुधार से उपभोक्ता खर्च, निवेश, और आर्थिक गतिविधियों और विकास को बढ़ावा मिल रहा है. कर दरों को तर्कसंगत बनाने, अनुपालन को सरल करने और एक स्थिर कर नीति को लागू करने से भारत वैश्विक व्यापार और निवेश के लिए एक मजबूत केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.


जीएसटी की नयी दरें लागू होने से भी निरंतर बचत और व्यय को बढ़ावा मिल रहा है. आयकर के तहत भी नयी कर व्यवस्था से मध्यवर्ग को राहत मिली है. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति से महंगाई काबू में आई है और रेपो दर में इस साल 100 आधार अंकों की कटौती से बैंकों ने खुदरा और कॉरपोरेट उधारकर्ताओं के लिए ऋण को सस्ता किया है, जिससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने में मदद मिल रही है. केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह को बढ़ावा देने और बैंकिंग लागत को कम करने के लिए हाल में कई सुधारों को भी अमली जामा पहनाया है, जिनमें बैंकों को गैर-वित्तीय क्षेत्र की भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण के लिए रकम मुहैया कराना, प्रतिभूतियों के एवज में ऋण एवं आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आइपीओ) के वित्तपोषण की अधिकतम सीमा बढ़ाना और गृह ऋण और अन्य ऋणों पर जोखिम भार में बदलाव शामिल हैं. त्योहारी सीजन, करों को युक्तिसंगत बनाने की पहल, राजकोषीय और मौद्रिक मोर्चों पर लिये गये नीतिगत निर्णयों से चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में बैंकों के ऋण वितरण के साथ आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने के आसार हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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