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भारत में व्यापक प्रशासनिक सुधार जरूरी, पढ़ें प्रभु चावला का खास आलेख

PM Modi and Elon Musk : पिछले सप्ताह दोनों वाशिंगटन में मिले. कुल 11 बच्चों के पिता मस्क प्रधानमंत्री से बातचीत के समय तीन बच्चों को साथ ले आये थे. फिर भी मोदी शायद मस्क के इस संदेश की अनदेखी न कर पाये कि भारत में सरकारी अधिकारियों की संख्या में कटौती जरूरी है.

PM Modi and Elon Musk : मस्क और मोदी के बीच कोई समानता नहीं है. विश्व के सबसे धनी उद्यमी इलन मस्क ने जहां भारी डोनेशन देकर पिछले दरवाजे से सत्ता प्रतिष्ठान में प्रवेश किया, वहीं नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार जनादेश हासिल किया. पर दोनों में एक चीज समान है : वह है कम लागत में कम से कम और अधिक से अधिक गवर्नेंस. वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने पर मोदी ने जवाबदेह सरकार बनाने का वादा किया था. पर जल्द ही उन्होंने पाया कि नौकरशाही को कतरने के बजाय देश को मजबूत आर्थिक विकास के रास्ते पर ले चलना अच्छी रणनीति है.


पिछले सप्ताह दोनों वाशिंगटन में मिले. कुल 11 बच्चों के पिता मस्क प्रधानमंत्री से बातचीत के समय तीन बच्चों को साथ ले आये थे. फिर भी मोदी शायद मस्क के इस संदेश की अनदेखी न कर पाये कि भारत में सरकारी अधिकारियों की संख्या में कटौती जरूरी है. अगर मोदी ट्रंप के ‘मेक अमेरिका ग्रेट एगेन’ (एमएजीए) की तरह ‘मेक इंडिया ग्रेट एगेन’ (एमआइजीए) का नारा गढ़ सकते हैं, तो वह मस्क की कार्यप्रणाली पर आंशिक रूप से ही, अमल क्यों नहीं कर सकते? राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप ने मस्क के नेतृत्व में सरकारी कुशलता से जुड़े एक विभाग की घोषणा की थी, जिसका लक्ष्य ‘सरकारी नौकरशाही को खत्म करना, विनियमन में कमी लाना, फिजूलखर्ची घटाना और संघीय एजेंसियों को पुनर्गठित करना’ बताया गया था.

अब मस्क अमेरिकी नौकरशाही को कतरने में लगे हैं. उनका लक्ष्य सालाना दो ट्रिलियन डॉलर की बचत करना है, जो अमेरिकी प्रशासन के कुल खर्च का 28 फीसदी है. दो ट्रिलियन डॉलर भारत की जीडीपी का लगभग आधा है. सात दशक से भी अधिक समय में निर्मित नौकरशाही के विशाल ढांचे को ढहा देना भारत गवारा नहीं कर सकता. पर मोदी और उनके सलाहकार वाशिंगटन के जरूरी संदेश को तो समझ ही सकते हैं. भारत को व्यापक प्रशासनिक सुधार की जरूरत है. प्रधानमंत्री लगातार ‘इज ऑफ डुइंग बिजनेस’ के लिए बेहतर माहौल का वादा करते रहे हैं. उनकी प्रशासनिक और विधायी पहलों के बावजूद हमारी कार्यपालिका अब भी त्वरित निर्णयों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है. आजादी के बाद भारत ने छोटे-से मंत्रिमंडल के साथ शुरुआत की थी. जवाहरलाल नेहरू का 14 सदस्यीय मंत्रिमंडल अब तक का सबसे छोटा मंत्रिमंडल था, जिसमें कोई राज्यमंत्री या उपमंत्री नहीं था. वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में 13 कैबिनेट मंत्री, 15 राज्यमंत्री और आठ उपमंत्री थे.


मोरारजी देसाई की गैरकांग्रेसी सरकार में 20 कैबिनेट मंत्री और 24 राज्यमंत्री थे. उनके प्रधानमंत्री काल में वाणिज्य, नागरिक आपूर्ति और सहकारिता जैसे कई मंत्रालयों को एक ही मंत्रालय के तहत रखा गया था. राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने पर सर्वाधिक 15 कैबिनेट मंत्री रखे और पृथक ऊर्जा मंत्रालय बनाया. मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करने पर उन्होंने मानव संसाधन नाम से नया मंत्रालय बनाया. उनके समय कांग्रेस के सांसदों की संख्या 400 थी, फिर भी उन्होंने कैबिनेट मंत्रियों की संख्या नहीं बढ़ायी, हालांकि उनके मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 49 हो गयी थी. पी वी नरसिंह राव ने भी कैबिनेट मंत्रियों की संख्या 16 रखी थी, पर उन्होंने स्वतंत्र प्रभार वाले 13 राज्यमंत्री रखे थे. कुल 59 मंत्रियों वाला उनका मंत्रिमंडल आजाद भारत का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल था. गठबंधन सरकार के दौर में अटल बिहारी वाजपेयी के कैबिनेट मंत्री 29 हो गये, जबकि स्वतंत्र प्रभार वाले सात राज्यमंत्री और 34 उपमंत्री थे. मनमोहन सिंह के समय 33 कैबिनेट मंत्री, सात स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 38 राज्यमंत्री थे. उनके मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 78 थी.


राजनीतिक प्रबंधन में निष्णात नरेंद्र मोदी ने इस परिपाटी को तोड़ा नहीं. वर्ष 2014 में उनके मंत्रिमंडल में 29 कैबिनेट मंत्री, पांच स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 36 राज्यमंत्री थे. न सिर्फ मोदी का मंत्रिमंडल बड़ा है, बल्कि अनेक मंत्री कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. जैसे, उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी तीन मंत्रियों के पास है-वाणिज्य देखने वाले एक कैबिनेट मंत्री, जबकि भारी उद्योग तथा लघु व मध्यम उद्यम के लिए दो कैबिनेट मंत्री. इन तीनों कैबिनेट मंत्रियों के अधीन कई राज्यमंत्री भी हैं. ऐसे ही, टेक्नोलॉजी से जुड़े मुद्दों की जिम्मेदारी भी तीन कैबिनेट मंत्रियों के पास है. अश्विनी वैष्णव कैबिनेट मंत्री हैं, जिनके पास रेलवे के अलावा सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स की जिम्मेदारी है. उनके अलावा दो और मंत्रियों के पास विज्ञान और टेक्नोलॉजी की जिम्मेदारी है. कृषि और ग्रामीण मामलों की जिम्मेदारी भी कई मंत्रालयों के कई मंत्रियों के पास है. पिछले 10 साल से एक राज्यमंत्री के पास चार विभागों और दो स्वतंत्र प्रभार वाली जिम्मेदारियां हैं. वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अपने कर्मचारियों और तमाम सुविधाओं के साथ एक मंत्री का सालाना खर्च तीन से चार करोड़ बैठता है.


बेशक भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. पर केंद्रीय स्तर पर 55 से अधिक मंत्रालय और सौ से अधिक विभाग रखना, जिनमें कई-कई मंत्रियों के पास एक ही विभाग हैं, क्या उसके लिए आर्थिक रूप से सही है? ट्रंप प्रशासन के विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों में कुल मिलाकर मात्र 15 मंत्री या सेक्रेटरी हैं. उन मंत्रियों के पास हमारे यहां की तरह आकर्षक विभाग भी नहीं हैं. ब्रिटेन में भी कुल 20 कैबिनेट मंत्री हैं. भारत में राजनेता अभी तक मात्रा और गुणवत्ता में फर्क करना नहीं सीख पाये हैं. जब केंद्र में मंत्रियों की भरमार है, तब राज्य सरकारों में भी मंत्रियों की संख्या ज्यादा है.

चूंकि मंत्रिमंडल का आकार संसद या राज्य विधानमंडलों में सत्तारूढ़ दलों के सांसदों/विधायकों की कुल संख्या का 10-15 फीसदी तक हो सकता है, ऐसे में, सभी राज्यों के कुल मंत्रियों की संख्या 500 से अधिक है. जबकि केंद्र सरकार के मंत्रियों का वेतन-भत्ता पिछले पांच साल में दोगुना हो चुका है. मस्क के मिशन से शायद मोदी को कोई विचार मिले. विशेषज्ञों के मुताबिक, 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए सीइओ मोदी के तहत भारत को 15 मंत्रियों और 25 विश्वसनीय प्रशासनिक अधिकारियों या पेशेवरों से अधिक की जरूरत नहीं है. सिर्फ रक्षा, गृह, कृषि, विदेशी मामले, शिक्षा, वित्त, ढांचागत विकास, परिवहन, पर्यटन, सामाजिक कल्याण, पर्यावरण और टेक्नोलॉजी जैसे मंत्रालय ही तय अवधि में भारत को सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनाने में सक्षम हैं. व्यापक क्षमता वाले मोदी छोटी सरकार के जरिये भी बेहतर प्रशासन का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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