National Sports Day : पहले हमारे देश में स्वास्थ्य बनाने, अनुशासित करने और आपसी भाईचारा बढ़ाने के लिए स्कूलों, कॉलेजों में खेल को अनिवार्य बनाने की कोशिश होती थी. परंतु हमारी हालिया राष्ट्रीय खेल नीति में इसे सम्मान के साथ जोड़ने की पहल की गयी है. इस नीति के तहत नयी-नयी खेल प्रतिभाओं की खोज करने और उन्हें ऊपर लाने की कोशिश की जा रही है. वास्तव में, सरकार इस बात को समझने लगी है कि हमारे खिलाड़ी देश का सम्मान बढ़ाते हैं. इसलिए वह खेलों को देश में बढ़ावा देने की हर संभव कोशिश कर रही है. इसी कोशिश के अंतर्गत राष्ट्रीय खेल दिवस पर एक दिवसीय कार्यक्रम की जगह तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. एक तरह से देखें, तो खेलों को तवज्जो देने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खेल दिवस को एक माध्यम बनाया है. इस आयोजन का उद्देश्य खेलों को लेकर देश में जागरूकता लाने और एक अलग तरह का सिस्टम विकसित करना भी है.
सरकार की ओर से खेलों को बढ़ावा देना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में हमारा प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा है. पिछले ओलिंपिक खेलों (2024 में) की ही बात करें, तो उसमें हमारे 117 खिलाड़ी गये थे और हमने पदक जीते मात्र छह. यह बेहद निराशाजनक है कि एक सौ चालीस करोड़ के देश में एक भी स्वर्ण पदक नहीं आया. बड़ी मुश्किल से हम एक रजत पदक जीत पाये. इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. अगला ओलिंपिक 2028 में लॉस एंजिल्स में होगा और उसके बाद 2032 में ब्रिसबेन में. वर्ष 2026 में कॉमनवेल्थ गेम्स भी हैं. सरकार 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी के लिए भी बोली लगायेगी, इस बात की उसने अपनी तरफ से मंजूरी दे दी है. हमारी सरकार 2036 आलिंपिक खेलों की दावेदारी भी पेश करना चाहती है. और इन सबके लिए पुख्ता तैयारी की जरूरत है. राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर होने वाले तीन दिवसीय आयोजन उपरोक्त अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों की दावेदारी के लिए अपनी तैयारी को परखने का एक माध्यम भी है. पर यह सब इतना आसान नहीं है. क्योंकि हमारे देश में खेल संस्कृति है ही नहीं. न ही विश्व स्तरीय स्टेडियम और इंफ्रास्ट्रक्चर ही मौजूद हैं. हालांकि केंद्र सरकार इसे लेकर प्रयासरत है.
इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है कि हम खिलाड़ियों को तैयार कैसे करें. दूसरे देशों में स्कूली स्तर से ही बच्चों को खेलों के लिए तैयार किया जाता है, तब जाकर वे बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं. पर अपने देश में तो स्थिति यह है कि जो बच्चे स्कूल में खेलते हैं, वे कॉलेज में आने के बाद खेलना छोड़ देते हैं. यहां आकर उनका पूरा ध्यान पढ़ाई, नौकरी, अपने पारिवारिक व्यवसाय की तरफ हो जाता है. इस स्थिति में परिवर्तन की जरूरत है. अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में हमारे खिलाड़ी भी बेहतर करें, उसके लिए एक प्रॉपर पिरामिड सिस्टम लागू करने की जरूरत है, जहां नीचे से आ रही हमारी खिलाड़ियों की पौध आगे बढ़कर पुष्पित-पल्लवित हो सके, वह स्कूल के बाद अचानक गायब न हो जाए. हमारे खिलाड़ी स्कूल से कॉलेज, कॉलेज से राज्य, राज्य से राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करते हुए आगे बढ़ें, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलें और पदकों की दौड़ में आगे पहुंचे. ऐसे सिस्टम को तैयार करने के लिए देश में रोटरी क्लब, लायंस क्लब जैसे जो बड़े एनजीओ हैं, फीफा, इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन जैसे जो बड़े खेल संगठन हैं, उन्हें मिलकर स्कूली खेलों को एक नया आयाम देने की कोशिश करनी चाहिए. देश के कोने-कोने से खेल प्रतिभाओं की खोज, उन्हें प्रशिक्षित करने और फिर उन प्रतिभाओं को निखार कर सशक्त खिलाड़ी के रूप में तैयार करना चाहिए.
हम ओलिंपिक या दूसरे अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में पदक इसलिए भी नहीं जीत पाते हैं, क्योंकि हमारे यहां पैसों की, सुविधाओं की कमी है. इन सब कमियों को पार करके यदि कोई खिलाड़ी आगे बढ़ता भी है, तब भी उसकी कोई खास पहचान नहीं बन पाती है, न ही उसके पास कोई काम होता है. यहां हमें ईमानदारी से सोचने की आवश्यकता है. हमारा स्पोर्ट्स साइंस डिपार्टमेंट, फिजियोथेरेपी, मेंटल कंडीशनिंग, रिकवरी सिस्टम, ये सब अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर से बहुत पीछे हैं. इस ओर भी ध्यान देना होगा. हमारे खिलाड़ियों में भरपूर क्षमता है, वे मेहनती भी हैं, उन्हें बस अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के अनुरूप तैयार करने की जरूरत है. और ऐसा स्कूली स्तर से ही होना चाहिए. स्कूली स्तर से ही यदि बच्चों की फिजिकल फिटनेस, फिजियोथेरेपी, मेंटल कंडीशनिंग आदि पर पूरी तरह ध्यान दिया जाये, तो वे बड़े होकर निश्चित तौर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में अपना बेस्ट देंगे और देश का मान बढ़ायेंगे. एक रास्ता यह भी है कि स्कूली स्तर पर जब प्रतिभा की पहचान हो, तभी खेलों से जुड़े एनजीओ, संगठन, कंपनियां, खेल संघ आदि उन प्रतिभाओं को गोद ले लें और उसी समय से अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उनकी तैयारी शुरू कर दें.
अब बात अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन की. देश में ओलिंपिक या कॉमनवेल्थ गेम्स जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के आयोजन के लिए हमें कुछ मूलभूत चीजों की आवश्यकता है. इनमें सबसे पहली और जरूरी चीज है अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम के साथ-साथ अन्य आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, जहां हमारे खिलाड़ियों को प्रशिक्षण तो मिले ही, वहां खेलों के आयोजन भी हों. दूसरी जरूरी बात है सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का चाक-चौबंद होना. चाहे खेल आयोजन देश के किसी भी कोने में क्यों न हों, वहां कनेक्टिविटी और ट्रांसपोर्टेशन की बेहतरीन व्यवस्था हो. लोगों के ठहरने की उचित व्यवस्था हो. होना तो यह चाहिए कि जैसे ओलिंपिक में, एशियन गेम्स में विलेज बनते हैं, जहां एथलीटों के रहने, खाने की पूरी व्यवस्था होती है, वैसी ही व्यवस्था अपने यहां भी बने. अंतिम जरूरी चीज सुरक्षा है. खिलाड़ियों के साथ-साथ जो लोग खेल देखने आयेंगे, उनकी सुरक्षा की भी कड़ी व्यवस्था होनी चाहिए. सुरक्षा में जरा-सी चूक पूरे आयोजन को बर्बाद कर सकती है. इससे देश की साख प्रभावित होगी सो अलग. अंतिम पर अत्यंत महत्वपूर्ण बात, जब तक खेल संघों, संगठनों में ऐसे खिलाड़ियों की नियुक्ति नहीं होती है, जिन्होंने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया है, तब तक खिलाड़ियों के प्रदर्शन में बहुत अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं है. एक खिलाड़ी की जरूरत दूसरा खिलाड़ी ही समझ सकता है. कोई अन्य नहीं. उपरोक्त सभी कमियों को दूर करने के बाद ही हम खेल में एक शक्ति बन पायेंगे.
(बातचीत पर आधारित) (फिल्म ‘चक दे इंडिया’ लेखक के जीवन पर आधारित है.)

