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बच्चे के लिए जरूरी खसरा-रूबेला का टीका

टीका एक सुरक्षा कवच की तरह है, जो परिवार एवं समाज को बीमारियों से बचाता है. यह बचपन में बच्चों को होने वाली जानलेवा बीमारियों से बचाने का सबसे कम लागत वाला बेहतरीन एवं प्रभावी उपाय है.

आस्था अलंग

कम्यूनिकेशन, एडवोकेसी

एवं पार्टनरशिप विशेषज्ञ

यूनिसेफ झारखंड

टीका एक सुरक्षा कवच की तरह है, जो परिवार एवं समाज को बीमारियों से बचाता है. यह बचपन में बच्चों को होने वाली जानलेवा बीमारियों से बचाने का सबसे कम लागत वाला बेहतरीन एवं प्रभावी उपाय है. नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लगातार चलाये गये टीकाकरण अभियान के कारण ही नियोनेटल टेटेनस, चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों को नियंत्रित कर बच्चों के जीवन को सुरक्षित एवं स्वास्थ्यपूर्ण बनाया जा सका है.

हालांकि टीके के माध्यम से रोकथाम की जाने वाली बीमारियों का अचानक से उभर आना कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे मामलों के सामने आने पर तुरंत उस पर ध्यान दिया जाए और कार्यवाही की जाए. हाल में वैश्विक स्तर पर और भारत के कई राज्यों के साथ-साथ झारखंड के कुछ जिलों में भी बड़ी संख्या में खसरे के मामले पाये गये हैं, जो इस बात का संकेत है कि खसरा-रूबेला का टीका सभी बच्चों को अभी भी नहीं लगा है.

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तथा भारत सरकार द्वारा ‘2023 तक खसरा-रूबेला उन्मूलन’ के लक्ष्य के मद्देनजर झारखंड सरकार ने टीकाकरण का विशेष अभियान शुरू किया है. यह अभियान 12 अप्रैल से नौ खसरा प्रभावित जिलों- दुमका, पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, जामताड़ा, देवघर, धनबाद, कोडरमा और गिरिडीह में प्रारंभ किया गया है. इसका उद्देश्य इन जिलों में नौ माह में 15 साल तक के 45 लाख बच्चों को खसरा-रूबेला का विशेष टीकाकरण करना है.

दुर्भाग्यपूर्ण है कि खसरा के प्रकोप के बावजूद लोग गंभीरता नहीं दिखाते. लोगों की धारणा होती है कि हर बच्चे को खसरा की बीमारी जरूर होती है, जिससे माता-पिता बीमारी की गंभीरता को अनदेखा कर देते हैं. खसरा और रूबेला एक संक्रामक रोग है, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने के साथ-साथ मृत्यु का खतरा भी पैदा करता है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, खसरा के कारण हर वर्ष भारत में 27 लाख बच्चे प्रभावित होते हैं.

रूबेला या जर्मन खसरा भी एक संक्रामक रोग है, जिसके हल्के लक्षण बच्चों में देखने में आ सकते हैं. लेकिन अगर गर्भवती महिलाएं रूबेला से प्रभावित होती हैं, तो गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं. खसरा संक्रमित व्यक्ति के खांसने एवं छींकने से हवा के माध्यम से फैलता है. इससे संक्रमित व्यक्ति के त्वचा पर चकत्ते, आंखों में दर्द, बुखार, मांसपेशियों में दर्द और गंभीर खांसी जैसे लक्षण दिखते है. खसरा होने पर कानों में संक्रमण, दस्त, निमोनिया, ब्रेन डैमेज और यहां तक कि मृत्यु का खतरा भी होता है.

खसरा और रूबेला बीमारी को टीकाकरण के माध्यम से रोका जा सकता है, जो लंबे समय के लिए बच्चों में प्रतिरक्षा प्रदान करता है. माता-पिता और देखभालकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को भविष्य में इस बीमारी के संकट से बचाने के लिए उनका टीकाकरण किया जाए. नियमित टीकाकरण के तहत पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खसरा-रूबेला टीका देने का प्रावधान है.

विशेष अभियान के तहत बच्चे को टीके की एक अतिरिक्त खुराक दी जायेगी, ताकि उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा कवच प्रदान किया जा सके. यह टीका सभी सार्वजनिक एवं निजी स्कूलों, आंगनबाड़ी केंद्रों तथा सरकार द्वारा चिह्नित स्थलों पर सभी बच्चों को निशुल्क दिया जायेगा. पांच सप्ताह तक चलने वाले इस अभियान की निगरानी संयुक्त रूप से सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं यूनिसेफ के द्वारा की जायेगी.

यूनिसेफ के अनुमान के मुताबिक, 2000 और 2018 के बीच खसरे के टीके के कारण विश्व स्तर पर 2.30 करोड़ से अधिक मृत्यु को रोकने में सफलता मिली. अन्य टीकों की तरह इस टीके के लगाने की जगह पर हल्का दर्द, चकत्ते और सामान्य बुखार के साथ मांसपेशियों में दर्द होने जैसे मामूली लक्षण देखने को मिलते हैं, जो अपने-आप ठीक हो जाते हैं. खसरे के टीके को लेकर कुछ निराधार और अवैज्ञानिक तथ्य भी फैलाये जाते हैं, जिससे अभियान के साथ-साथ टीके के प्रति लोगों की स्वीकृति भी प्रभावित होती है.

इस अभियान को सफल बनाने में बच्चे भी सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं. उदाहरण के लिए, खुशबू कुमारी, जिसे यूनिसेफ और एनएचएम द्वारा एमआर चैंपियन के रूप में नामित किया गया है, ने न केवल खुद एमआर का टीका लगवाया है, बल्कि खसरा-रूबेला टीकाकरण अभियान को सफल बनाने हेतु भी कार्य कर रही है. यूनिसेफ द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्डस् चिल्ड्रेन रिपोर्ट-2023’ में बताया गया है कि भारत उन देशों में से है, जहां सबसे अधिक टीके पर भरोसा किया जाता है.

फिर भी वैक्सीन को लेकर जागरूकता की कमी और व्याप्त गलत धारणाएं अभी भी टीकाकरण अभियान की राह में एक प्रमुख चुनौती हैं. इन मुद्दों के समाधान के लिए यूनिसेफ झारखंड के नौ जिलों में सामुदायिक एकजुटता तथा संचार माध्यमों के उपयोग के द्वारा लोगों को जागरूक कर रहा है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि टीकाकरण का यह व्यापक अभियान हर बच्चे तक पहुंचे, सभी हितधारकों को निरंतर प्रयास करने और मिलकर काम करने की जरूरत है.

(ये लेखिकाद्वय के निजी विचार हैं.)

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