Geography of Sindh : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में सार्वजनिक मंच से कहा है कि भविष्य में सिंध भारत का हिस्सा हो सकता है. भारत में इस संदर्भ में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर ज्यादा बात होती है. सिंध अपेक्षाकृत कम चर्चित रहा है. हो सकता है कि यह राजनाथ सिंह का निजी विचार हो. पर रक्षा मंत्री होने के कारण उनके शब्द ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं. राजनाथ सिंह के इस बयान को चौबीस साल पहले की राजनीतिक घटना से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. जुलाई, 2001 के दूसरे हफ्ते में राजधानी दिल्ली और आगरा में बड़ी हलचल थी. वजह थी, 15 जुलाई से शुरू हो रही परवेज मुशर्रफ की भारत यात्रा. वह तानाशाह राष्ट्रपति बन चुके थे. कारगिल का जख्म चूंकि हरा था, लिहाजा मुशर्रफ की यात्रा उत्सुकता, उम्मीद और आशंका के दायरे में थी.
उनकी यात्रा के ठीक पहले पाकिस्तान ने कश्मीरी आत्मनिर्णय को लेकर कूटनीतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया था. मुशर्रफ की यात्रा के एक या दो दिन पहले दिल्ली में सिंधी समाज ने एक कार्यक्रम रखा था. उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के सामने पाकिस्तान की उस कोशिश का जिक्र किया गया, तो भरे मंच से उन्होंने पाकिस्तान को चेता दिया था, ‘अगर पाकिस्तान कश्मीर का सवाल उठायेगा, तो भारत जवाबी रूप से सिंध के आत्मनिर्णय का सवाल उठायेगा’.
लालकृष्ण आडवाणी सिंध के वासी रहे हैं. उन्होंने लिखा है कि उनकी पीढ़ी के सिंध के लोग भारत के विभाजन को स्वीकार नहीं कर पाये. राजनाथ सिंह ने अपने व्याख्यान में इस लेख का भी जिक्र किया है. आडवाणी अपने राजनीतिक उत्कर्ष के दिनों में ‘सिंधु दर्शन यात्रा’ नाम से आयोजन करते रहे हैं, जिसका मकसद सिंधु के जरिये सिंध की माटी से बिछड़कर भारत आ गये लोगों को जोड़ना और उनकी स्मृतियों को जिंदा रखना रहा. बंटवारे से पहले सिंध की ज्यादातर आबादी हिंदू थी. गुजरात के कच्छ का रण और राजस्थान का थार रेगिस्तान इसके पूर्व में स्थित है, जबकि दक्षिण में इसका पांव अरब सागर पखार रहा है. अरब सागर के ही किनारे स्थित कराची पाकिस्तान का आर्थिक केंद्र है, जैसे भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई है.
हिंदू समाज अर्चना में जिस जल का उपयोग करता है, उसे वह एक मंत्र के जरिये पवित्र करता है. वह मंत्र है, ‘गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु’. भारतीय संस्कृति के लिए सदियों से गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती , नर्मदा, सिंधु और कावेरी पवित्रतम नदियां रही हैं. उनका जल हमारी सभ्यता का वाहक रहा है. भारत की सप्त पवित्र नदियों में से एक सिंधु इसी सिंध प्रांत से होकर गुजरती है. इस लिहाज से देखें, तो भारत भूमि के लिए सिंध का महत्व समझ में आता है. सिंध के भीतर से भी भारत में विलय के लिए क्षीण ही सही, आवाजें उठती रही हैं. एक दौर में सिंध में मुहाजिर कौमी मूवमेंट चलता रहा, जिसके प्रमुख अल्ताफ हुसैन रहे. पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, यानी पीपीपी का सबसे ज्यादा असर सिंध प्रांत में है, जिसकी प्रमुख कभी बेनजीर भुट्टो रही हैं. पीपीपी को भुट्टो परिवार की जागीर माना जाता है.
इन संदर्भों में देखें, तो राजनाथ सिंह का बयान इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि सिंध में विभाजन को लेकर मांग बढ़ रही है. पाकिस्तान की बदहाली और उर्दू भाषी मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार की वजह से सिंध प्रांत में रह रहे मुहाजिर लोगों में भारत के प्रति अनुराग बढ़ रहा है. बेशक भारत से सीधी जुड़ी रही पीढ़ी अब नहीं रही, लेकिन उसने अपना दर्द, अपने सुहाने सपने और गौरवशाली अतीत को नयी पीढ़ी के साथ साझा किया है. नयी पीढ़ी के पास सूचना के तमाम साधन हैं, इसलिए वह देख पा रही है कि सीमा के उस पार की हालत कैसी है. आजादी से पहले सिंध की गिनती समृद्ध राज्यों में होती थी. सिंध कभी हिंदू बहुल राज्य था और कराची शहर हिंदू प्रधान था. आज पाकिस्तान की जनसंख्या में सिर्फ 2.17 प्रतिशत हिंदू हैं, जो करीब 52 लाख हैं. इनमें से करीब 49 लाख सिंध में ही रहते हैं. वर्ष 2023 की जनगणना के अनुसार, सिंध की जनसंख्या करीब 5.57 करोड़ है. वहां की जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी करीब 8.8 प्रतिशत है. ग्रामीण जनसंख्या में करीब 13.3 प्रतिशत हिंदू हैं. ये लोग ज्यादातर सिंध के थारपारकर और उमरकोट जिलों में रहते हैं.
विभाजन से पहले सिंध के कई जिलों में हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 90 प्रतिशत थी. वर्ष 1941 की जनगणना के अनुसार, कराची में ही हिंदुओं की बड़ी जनसंख्या थी. आज भी उमरकोट जिले में मुस्लिम समुदाय की तुलना में हिंदुओं की संख्या ज्यादा है. इसकी दूरी भारतीय सीमा से सिर्फ 60 किलोमीटर है. राजनाथ सिंह के बयान ने वहां के हिंदू समुदाय के लोगों की उम्मीदें जगा दी होंगी. रक्षा मंत्री के बयान ने अतीत और इतिहास की एक धारणा को जिंदा तो कर ही दिया है, एक भूगोल की उम्मीदें भी जगा दी हैं. एक भूगोल कब हकीकत बन पायेगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

