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तुर्किये व सीरिया के भूकंप के सबक

तुर्किये और सीरिया की तबाही या पहले की ऐसी आपदाएं हमें यही निर्दिष्ट करती हैं कि आपदा प्रबंधन से जुड़े निर्देशों का पालन कड़ाई से हो. इसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की भी है और लोगों की भी.

तुर्किये और सीरिया में सोमवार को आये भयावह भूकंप से हुए महाविनाश में मृतकों की संख्या 17 हजार से अधिक हो चुकी है. इस तरह के बड़े भूकंप से हुई तबाही का दुनिया के कई देशों के साथ भारत को भी अनुभव रहा है. भूकंप की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती है, लेकिन जान-माल की हानि को रोकने के उपाय हम अवश्य कर सकते हैं. इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशा-निर्देश का पालन सुनिश्चित करना चाहिए.

यह हमारे देश में आपदा प्रबंधन के लिए सबसे प्रमुख संस्था है. प्राधिकरण के दिशा-निर्देश का उद्देश्य है कि जब भूकंप आये, तो जोखिम और नुकसान कम-से-कम रहे. यह दिशा-निर्देश प्राधिकरण की वेबसाइट पर उपलब्ध है. निर्देशों में सबसे अहम है कि भूकंपरोधी इमारतों, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में, का निर्माण हो. तुर्किये से ऐसी कुछ खबरें आयी हैं कि कई इमारतों को भूकंपरोधी तो बताया गया था, पर वास्तव में उनके निर्माण में निर्धारित प्रक्रियाओं का ठीक से पालन नहीं किया गया था.

जापान में इस तरह की इमारतें हैं, जो भूकंप के झटके लगने पर मुड़ जाती हैं, ध्वस्त नहीं होतीं. उन्हें बाद में सीधा कर दिया जाता है. इससे जान-माल का नुकसान नहीं होता या बहुत ही कम होता है. भारत में भी उस तरह की तकनीक और डिजाइन का इस्तेमाल कर इमारतों को बनाने के नियम हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि उनका पालन सख्ती से नहीं किया जाता है.

ऐसे में अगर अधिक तीव्रता का भूकंप आ जाए, तो हमें भारी बर्बादी का सामना करना पड़ सकता है. इसीलिए विशेषज्ञ बार-बार यह कहते रहे हैं कि निर्देशों और मानकों के पालन में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए. उत्तर भारत से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक समूचा हिमालयी क्षेत्र भूकंप की आशंका के लिहाज से बेहद संवेदनशील है. हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि यह पूरा इलाका घनी आबादी का क्षेत्र भी है.

हिमालय दुनिया का सबसे युवा पहाड़ है और हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के झटके अक्सर आते भी रहते हैं. यह पहाड़ नरम पत्थरों से बना हुआ है. अगर इस इलाके में थोड़ी तीव्रता का भूकंप भी बड़े पैमाने पर भू-स्खलन का कारण बन सकता है. इस आशंका के निवारण के लिए वनों को लगाने का काम तेजी से हो रहा है.

अभी हमने जोशीमठ और उत्तराखंड के कुछ अन्य स्थानों पर जमीन दरकने और घरों में दरार पड़ने की घटनाओं को देखा है. जब हम जंगल काटेंगे और ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण करेंगे, तो ऐसे परिणाम तो हमें भुगतने ही पड़ेंगे. इस स्थिति में अगर भूकंप भी आ जाये, तो तबाही का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. यह सब तब हो रहा है, जब सभी को इस बात की जानकारी है कि पहाड़ बहुत संवेदनशील है और भूकंप के खतरे वाले क्षेत्र में अवस्थित है.

दिल्ली या अन्य शहरों में स्थिति कोई बेहतर नहीं है. शहरीकरण के विस्तार के साथ आवास की जरूरत बढ़ी है. लेकिन लोग घरों के निर्माण में बुनियादी कायदे-कानूनों के पालन से भी परहेज करते हैं. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि परिवार में लोगों की संख्या बढ़ी, तो एक मंजिल का और निर्माण कर लिया या कुछ कमरे बनवा दिये. इसके लिए किसी इंजीनियर से सलाह भी नहीं ली जाती. प्रशासन भी हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है.

कहीं भी किसी कालोनी में जाकर आप देख सकते हैं कि घर बेतरतीब ढंग से बने हुए हैं. किसी को नहीं पता कि निर्माण में इस्तेमाल सामग्री की गुणवत्ता क्या है. ऐसे में मामूली झटका भी अगर कुछ देर ठहर जाए, तो ऐसे घरों को गिरते देर नहीं लगेगी. उस स्थिति में स्वाभाविक रूप से बड़ी तादाद में मौतें हो सकती हैं क्योंकि ऐसी जगहों पर लोगों की संख्या भी बहुत अधिक होती है.

तुर्किये में लगातार तीन बड़े झटके आये थे. यह जानना जरूरी है कि कहीं भी अगर सात से अधिक तीव्रता का पहला झटका आता है, तो उसके कुछ समय बाद इससे कुछ ही कम तीव्रता का दूसरा झटका भी जरूर आता है. इसे भू-संतुलन कहते हैं. पहले झटके में दरारें पड़ जाती हैं और दूसरा झटका उन पर और चोट कर इमारत को ढाह देता है.

तर्किये में तीन बड़े झटकों के अलावा दो सौ से अधिक हल्के झटके, जिन्हें हम आफ्टरशॉक कहते हैं, आ चुके हैं. जाहिर है कि अगर इमारतें कमजोर होंगी, उनमें निम्नस्तरीय सामग्री का इस्तेमाल होगा तथा नियमों और निर्देशों की अनदेखी की जायेगी, तो बड़े पैमाने पर तबाही होगी ही.

भूकंप से जान-माल की हानि कम-से-कम हो, इसके लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने निर्देशों और अन्य अभियानों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पहल की है. इस विशेष कार्यक्रम के तहत देशभर में ‘आपदा मित्र’ तैयार किये जा रहे हैं. अगर मैं हरियाणा की बात करूं, तो यहां आठ जिलों में यह कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है.

जब भी कोई आपदा आयेगी, तो प्रशिक्षित आपदा मित्र तुरंत उस स्थान पर पहुंचेंगे और प्रारंभिक बचाव का प्रयास करेंगे तथा राहत एवं बचाव के लिए विशिष्ट दलों के आने तक क्षेत्र को खाली करायेंगे और उसका विवरण तैयार करेंगे. जब विशेष राहत दल पहुंचेंगे, तो उन्हें मुआयना नहीं करना पड़ेगा और हर चीज नियंत्रित रहेगी. इसमें समय की बहुत बचत होगी.

आपदा मित्र इस बात के लिए भी प्रशिक्षित किये जा रहे हैं कि हादसे की जगह भीड़ न हो और आपात वाहनों एवं साजो-सामान के लिए रास्ता खाली रहे. इससे रेस्पांस टाइम घटेगा. यह टाइम जितना छोटा होगा, जान का नुकसान उतना ही कम होगा और हम अधिक से अधिक लोगों को बचा सकेंगे.

कुल मिलाकर, तुर्किये और सीरिया की तबाही या पहले की ऐसी आपदाएं हमें यही निर्दिष्ट करती हैं कि आपदा प्रबंधन से जुड़े निर्देशों का पालन कड़ाई से हो. इसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की भी है और लोगों की भी. हालांकि इस संबंध में जागरूकता का प्रसार हो रहा है और प्रशिक्षण कार्यों में तेजी आयी है, लेकिन हमें बहुत सजगता से अभी काम करना है. यदि हम इमारतों के निर्माण को लेकर सचेत हो जाएं तथा आपदा हो जाने पर धीरज के साथ उसका सामना करें, तो तबाही को निश्चित ही कम किया जा सकेगा. ध्यान रहे, भूकंप की भविष्यवाणी संभव नहीं है, इसलिए हमारा ध्यान तैयारी पर होना चाहिए.

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