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महान क्रिकेटर थे लाला अमरनाथ

साल 1960 में प्रथम ईरानी कप क्रिकेट मैच में लाला अमरनाथ ने रेस्ट आॅफ इंडिया टीम की तरफ से रणजी चैंपियन बंबई के खिलाफ ‘12वें खिलाड़ी’ दिल्ली के क्रिकेटर प्रेम भाटिया से बल्लेबाजी करवा दी थी.

राकेश थपलियाल, वरिष्ठ खेल पत्रकार

sports.rakesh@gmail.com

आज टेस्ट क्रिकेट में 12वां खिलाड़ी बल्लेबाजी कर सकता है. क्रिकेट की शीर्षस्थ नियामक एवं संचालन संस्था इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) ने वैश्विक स्तर पर फैले कोविड-19 महामारी के कारण अंतरिम तौर पर इसकी अनुमति दी है. कुछ वर्ष पूर्व प्रयोग के तौर पर एकदिवसीय क्रिकेट में भी 12वें खिलाड़ी को बल्लेबाजी करने की छूट दी गयी थी. वैसे इस परंपरा की शुरुआत करने का श्रेय दिल्लीवासी भारत के पूर्व कप्तान और अपने समय के सबसे विवादास्पद क्रिकेटर लाला अमरनाथ को जाता है.

उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी के पहाड़गंज इलाके में अपने घर से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित करनैल सिंह स्टेडियम में 1960 में खेले गये प्रथम ईरानी कप मैच में 12वें खिलाड़ी से बल्लेबाजी करा दी थी. प्रथम श्रेणी के क्रिकेट में ऐसा पहली बार हुआ था.

आज लाला अमरनाथ की 20वीं पुण्यतिथि है. दिल्ली में पांच अगस्त, 2000 को 88 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ था. पंजाब के कपूरथला में 11 सितंबर, 1911 को जन्मे तथा लाहौर में पले-बढ़े नानिक अमरनाथ भरद्वाज क्रिकेट में लाला अमरनाथ के नाम से मशहूर हुए. भारत की ओर से टेस्ट क्रिकेट में पहला शतक बनानेवाले इस महान खिलाड़ी ने स्वतंत्र भारत की पहली टेस्ट क्रिकेट टीम की कप्तानी भी संभाली थी और 1952 के पहले टेस्ट सीरीज में पाकिस्तान के विरुद्ध जीत भी हासिल की थी.

साल 1960 में 18 से 20 मार्च तक खेले गये प्रथम ईरानी कप क्रिकेट मैच में लाला ने रेस्ट आॅफ इंडिया टीम की तरफ से रणजी चैंपियन बंबई के खिलाफ ‘12वें खिलाड़ी’ दिल्ली के क्रिकेटर प्रेम भाटिया से बल्लेबाजी करवा दी थी. तब बंबई के कप्तान पॉली उमरीगर थे और रेस्ट आॅफ इंडिया के कप्तान लाला अमरनाथ थे. लाला जी तब राष्ट्रीय चयन समिति के अध्यक्ष भी थे. साठ वर्ष पुरानी यह घटना प्रथम श्रेणी के क्रिकेट का अनूठा इतिहास है.

इस घटना के साक्षात गवाह रहे जाने-माने खेल पत्रकार स्वर्गीय कमलेश थपलियाल ने बताया था, ‘जब प्रेम भाटिया बल्लेबाजी के लिए उतरे, तो सभी हैरान रह गये और पॉली उमरीगर उन्हें पिच से पवेलियन की तरफवाली बाउंड्री तक लेकर गये और उन्होंने लाला जी से पूछा, ‘स्कीपर, डू यू वांट हिम टू बैट?’ (कप्तान, क्या आप इस खिलाड़ी से बल्लेबाजी कराना चाहते हैं?) इस पर लाला जी ने कहा, ‘यस, ही विल बैट इन माइ प्लेस’ (हां, वह मेरी जगह पर बल्लेबाजी करेगा). इस ‘आदेश’ के बाद उमरीगर और मैच के अंपायर भी कुछ नहीं बोल सके.

इस दिलचस्प घटना से जुड़े अहम किरदार दिल्ली के पूर्व रणजी खिलाड़ी लगभग 80 वर्ष के प्रेम भाटिया ने बताया, ‘ईरानी कप का नाम सुनते ही मेरी आंखों के आगे वह मंजर घूम जाता है. हालांकि इतनी पुरानी घटना को याद रखना आसान नहीं होता है. लोग कुछ भी कहें, मैं इसे लाला जी की दूरंदेशी ही मानता हूं. उन्होंने जो प्रयोग उस समय किया था, उसे कुछ वर्ष पूर्व एक दिवसीय मैचों में आइसीसी ने भी प्रयोग के तौर पर अपनाया था।’

क्या यह सब पहले से तय था? इस पर प्रेम भाटिया ने कहा, ‘नहीं, मैच के दौरान लाला जी के पैर में चोट लग गयी थी और उन्होंने अचानक ही मुझे बल्लेबाजी करने का फरमान सुनाया था. इससे मैं भी आश्चर्यचकित रह गया था. मैं उस समय 20 वर्ष का कॉलेज का छात्र था और मेरे लिए यह एक अद्भुत क्षण था.’ इस मैच में भाटिया ने पहली पारी में नौवें पायदान पर उतर कर 22 और दूसरी पारी में तीसरे पायदान पर उतर कर 50 रन बनाये थे.

लाला अमरनाथ ने 1933-34 में भारत दौरे पर आयी इंग्लैंड की टीम के खिलाफ बंबई में खेले गये भारत की धरती के इस पहले टेस्ट में पदार्पण कर दूसरी पारी में 118 रन बना कर भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट में पहला शतक ठोकने का अनूठा गौरव हासिल किया था. कुछ समय बाद 1936 में महाराज कुमार ऑफ विजयनगरम ‘विज्जी’ की कप्तानी में भारतीय टीम इंग्लैंड के दौरे पर गयी थी.

वहां पर लाला और विज्जी के बीच इस कदर ठनी कि लाला को दौरे के बीच से ही स्वदेश वापस भेज दिया गया था. इसी के साथ उनके ऊपर ‘बैड ब्वॉय ऑफ इंडियन क्रिकेट’ का ठप्पा भी लग गया था. उनका और अन्य कई लोगों का कहना था कि टीम से हटा कर वापस भेजने का फैसला अनुशासन से जुड़ा मसला न होकर, टीम की राजनीति का नतीजा था.

लाला जी ने 1933 से 1952 के बीच 24 टेस्ट खेले और 878 रन बनाये, जिसमें एक शतक और चार अर्धशतक शामिल हैं. उनके खाते में 45 विकेट भी हैं. उनके नाम एक दिलचस्प रिकॉर्ड यह भी दर्ज है कि वे महानतम क्रिकेट खिलाड़ी माने जानेवाले डॉन ब्रैडमैन को हिट विकेट आउट करनेवाले एकमात्र गेंदबाज रहे.

द्वितीय विश्व युद्ध से पहले लाला अमरनाथ केवल तीन ही टेस्ट खेल पाये थे और युद्ध के दौरान टेस्ट मैचों का आयोजन बंद हो गया था. उस समय प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उन्होंने दस हजार रन और 30 शतक बनाये थे. लड़ाई समाप्त होने के बाद उन्होंने भारत की ओर से 21 टेस्ट मैचों में हिस्सा लिया. उनके दो बेटे सुरिंदर और मोहिंदर अमरनाथ टेस्ट क्रिकेटर रहे और तीसरे बेटे राजिंदर रणजी ट्रॉफी तक सीमित रहे.

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