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संयुक्त सैन्य स्टेशन से बढ़ेगी कार्यकुशलता, पढ़ें हर्ष कक्कड़ का लेख

Joint Military Station : गुवाहाटी की बात करें, तो यहां के सैन्य स्टेशन में थल सेना और वायु सेना दोनों ही सेवाएं हैं. पर थल सेना की व्यवस्थाएं, सुविधाएं वायु सेना से अधिक बड़ी हैं, ऐसी स्थिति में यहां की सारी व्यवस्थाएं, सुविधाएं थल सेना के मुख्यालय के अधीन होंगी.

-हर्ष कक्कड़, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त)-

Joint Military Station : हाल ही में कोलकाता में संपन्न संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन में तीन संयुक्त सैन्य स्टेशन के गठन की घोषणा की गयी. इस पहल के तहत उन सैन्य स्टेशनों पर संयुक्त स्टेशन बनाये जायेंगे जहां इस समय एक से अधिक सैन्य सेवाएं मौजूद हैं. हालांकि ये तीनों स्टेशन कहां बनाये जायेंगे, इसके बारे में अभी कोई जानकारी नहीं दी गयी है, पर उम्मीद है कि इसके लिए तीन ऐसे स्टेशन चुने जायेंगे, जहां एक सेवा (चाहे वह थल सेना हो, नौसेना हो, या फिर वायु सेना) के पास सभी सुविधाओं, संसाधनों और व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी होगी. उदाहरण के लिए मुंबई और गुवाहाटी को लेते हैं. संयुक्त सैन्य स्टेशन बनने की शुरुआत इन्हीं दोनों शहरों के सैन्य स्टेशनों से होने की संभावना है. तीसरी जगह कौन सी होगी, उसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता.


अभी तक सेना के तीनों अंग सैन्य स्टेशन पर अपनी-अपनी सुविधाओं, संसाधनों और व्यवस्थाओं को अलग-अलग देख रहे हैं, उन स्टेशनों पर भी जहां सेना की एक से अधिक सेवाएं मौजूद हैं. पर जब संयुक्त सैन्य स्टेशन बन जायेंगे, तो सेना के अलग-अलग अंगों की सभी सुविधाएं और व्यवस्थाएं एक ही छतरी के नीचे आ जायेंगी और उनकी देखभाल का दायित्व किसी एक ही सेवा के पास होगा. इसका लाभ यह होगा कि सभी को एक समान सुविधाएं मिलेंगी, सभी के लिए एक समान संसाधन और व्यवस्थाएं होंगी. वास्तव में, ऐसा करने का उद्देश्य सेना के तीनों अंगों के बीच संयुक्तता और एकीकरण को बढ़ावा देना है.

एक बात और, संयुक्त सैन्य स्टेशन बनाने के निर्णय को सामरिक महत्व से देखने की जरूरत नहीं है, केवल प्रशासनिक सहूलियत के लिए ऐसा किया जा रहा है. अब जब संयुक्त स्टेशन की सुविधाओं और व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी एक ही सेवा देखेगी, तो जाहिर सी बात है कि दूसरी सेवा, जो अब तक अपनी सभी व्यवस्था संभाल रही थी, उससे वह मुक्त हो जायेगी. सचमुच यह एक बहुत महत्वपूर्ण व अच्छी पहल है.


अब बात मुंबई की, क्योंकि यहां एक संयुक्त स्टेशन बनने की संभावना है. मुंबई के कोलाबा में इस समय थल सेना के अपने मुख्यालय हैं, जैसे एमएमजी एरिया मुख्यालय, सब-एरिया मुख्यालय, इंफेंट्री बटालियन के साथ ही यहां कुछ प्रशासनिक व्यवस्थाएं भी हैं. जबकि नौसेना की अपनी अलग व्यवस्थाएं हैं, क्योंकि यहां वेस्टर्न नेवल कमांड है, जो नेवी का प्रमुख बेस है. तो सेना के इन दोनों ही अंगों की अपनी-अपनी व्यवस्थाएं, सुविधाएं और संसाधन हैं. यहां कुछ भवन थल सेना के हैं, तो कुछ नौसेना के हैं.

थल सेना अपनी व्यवस्थाएं बनाती है, उसे देखती है. नौसेना अपने तरीके और अपनी सुविधाओं, संसाधनों के अनुसार अपनी व्यवस्थाएं बनाती हैं और उसे देखती है. कुल मिलाकर, मुंबई स्टेशन में नौसेना की व्यवस्था, सुविधा, संसाधन थल सेना की तुलना में अधिक बड़े हैं. ऐसे में जाहिर-सी बात है कि वहां नौसेना के पास ही दोनों सेवाओं की व्यवस्था को देखने की जिम्मेदारी होगी.


गुवाहाटी की बात करें, तो यहां के सैन्य स्टेशन में थल सेना और वायु सेना दोनों ही सेवाएं हैं. पर थल सेना की व्यवस्थाएं, सुविधाएं वायु सेना से अधिक बड़ी हैं, ऐसी स्थिति में यहां की सारी व्यवस्थाएं, सुविधाएं थल सेना के मुख्यालय के अधीन होंगी. संयुक्त स्टेशन बनने के बाद थल सेना और वायु सेना को एक ही तरह की व्यवस्था और सुविधाएं मिलेंगी. उम्मीद है कि वायु सेना का भी कोई ऐसा स्टेशन चुना जायेगा, जहां वायु सेना की सुविधा और व्यवस्था दूसरी सेवाओं से अधिक बड़ी हैं.

ऐसे में वहां वायु सेना ही सारी व्यवस्था देखेगी. हालांकि वह स्टेशन कौन-सा होगा, इस बारे में भी अभी कुछ स्पष्ट नहीं है. तो सेना के जिन-जिन स्टेशन पर एक से अधिक सेवाएं हैं, उन स्टेशनों पर यह कोशिश होगी कि उन्हें एक साथ जोड़कर एक संयुक्त सैन्य स्टेशन बना दिया जाये और सभी सुविधाओं के लिए कोई एक ही सेवा जिम्मेदार हो. असल में यह सारी कवायद सेना के तीनों अंगों के बीच निचले स्तर से एकजुटता और एकीकरण को बढ़ावा देकर उसे धीरे-धीरे ऊपर की ओर लाना है और ऐसा हर स्तर पर किया जाना है. हालांकि देश का एकमात्र संयुक्त सैन्य स्टेशन अंडमान और निकोबार कमान के तहत पोर्ट ब्लेयर में स्थित है.


यहां इस प्रश्न का उठना भी स्वाभाविक है कि आखिर संयुक्त सैन्य स्टेशन बनाने की जरूरत अभी ही क्यों महसूस हुई, पहले ही इस काम को क्यों नहीं किया गया. इसका उत्तर यह है कि यदि हमें थिएटर कमानों को बनाना है, तो सेवाओं का एकीकरण जरूरी है. इसी के मद्देनजर हर स्तर पर ऐसे कदम उठाये जा रहे हैं. उदाहरण के लिए अभी स्टाफ कॉलेज के अंदर जो प्रशिक्षण पाठ्यक्रम हैं, वहां पूरी एकजुटता के साथ संयुक्त अभ्यास हो रहे हैं. कोशिश यही है कि हर स्तर पर सेना के सभी सेवाओं के बीच एकजुटता और एकीकरण बढ़े. संयुक्त सैन्य स्टेशन बनाने की पहल भी उसी कोशिश का एक हिस्सा है.

दूसरे शब्दों में कहें, तो थिएटर कमान बनाने की दिशा में कई अलग-अलग सीढ़ियां साथ-साथ चल रही हैं, उन्हीं में से एक सीढ़ी संयुक्त सैन्य स्टेशन भी है. इससे पहले देश में साइबर कमांड बनाया जा चुका है, स्पेशल फोर्सेज कमांड बनाया गया है. भले ही ये कमांड एक सेवा के अधीन काम करते हैं, पर इनमें सेना के तीनों अंगों की देखरेख शामिल हैं. संयुक्त सैन्य स्टेशन बनाने की पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे एक-दूसरे के प्रति समझ बढ़ेगी, प्रशासनिक स्तर पर कार्यकुशलता बेहतर होगी, संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और आर्थिक बचत भी होगी. इतना ही नहीं, आज के दौर में जिस तरह से युद्ध लड़ा जा रहा है, इस एकीकरण से भारतीय सेना की क्षमता और शक्ति दोनों ही बढ़ेगी. कुल मिलाकर, इससे सेना को ही लाभ मिलेगा.


जहां तक थिएटर कमान की बात है, तो थल सेना और नौसेना अध्यक्षों ने तो इसके गठन की इच्छा जतायी है, कहा है कि उन्हें थिएटर कमान चाहिए. पर वायु सेना अध्यक्ष अभी इससे सहमत नहीं हैं. वायु सेना अध्यक्ष का कहना है कि चूंकि उनके पास फाइटर स्क्वाड्रन की कमी है, और जब तक इसकी कमी पूरी नहीं हो जाती है, तब तक वह थिएटर कमान बनाने की सिफारिश नहीं करेंगे. ऐसे में देखना है कि आगे क्या होता है. हालांकि सीडीएस ने बार-बार यही कहा है कि जब थिएटर कमान बनेगा, तो सेना के तीनों अंग उसमें एक साथ होंगे. यह कहना सही होगा कि थिएटर कमान बनने के बाद भारत की सामरिक स्थिति और मजबूत हो जायेगी, क्योंकि सभी सशस्त्र बल एक साथ मिलकर काम करेंगे.
(बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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