India Pakistan War : जब भारत और पाकिस्तान के बीच शनिवार को संघर्षविराम की घोषणा हुई, तो यह माना गया कि पाकिस्तान ने अंततः समझदारी दिखायी है और यह महसूस किया है कि जब उसकी अर्थव्यवस्था बदहाल स्थिति में है और आम लोग अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जूझ रहे हैं, तब युद्ध छेड़ना किसी भी तरह से उचित नहीं है. लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान फिर से आक्रामक रुख में लौट आया और शाम तक भारतीय रक्षा प्रतिष्ठानों पर उसने ड्रोन हमले शुरू कर दिये. भारत के पास इसका जवाब देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी तत्व फिर भारत के खिलाफ दुश्मनी भड़काने के पुराने खेल में लग गये हैं. इससे यह भी समझ में आया कि अपनी आंतरिक मुश्किलों के बावजूद पाकिस्तान भारत-विरोधी भावनाओं से बाज नहीं आ सकता.
दिलचस्प बात यह है कि ठीक एक दिन पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने पाकिस्तान को उसकी आर्थिक समस्याओं से उबारने और अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिए एक अरब डॉलर की किस्त को मंजूरी दी थी. लेकिन पाकिस्तान द्वारा 10 मई की शाम को ही संघर्षविराम का उल्लंघन कर फिर से हिंसा की राह अपनाना इस बात का प्रमाण था कि भारत जो पहले से कहता रहा है, वह बिल्कुल सही था—कि पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व को अपनी अर्थव्यवस्था की बहाली में कोई दिलचस्पी नहीं है. वे तो केवल आइएमएफ से कुछ और नकद सहायता चाहते थे, ताकि अस्थायी रूप से अपने आर्थिक संकट को टाल सकें.
भारत ने कई कारणों से इस ऋण का कड़ा विरोध किया था. एक कारण यह था कि पाकिस्तान बार-बार आइएमएफ के पास मदद के लिए जाता रहा है. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि पाकिस्तान का बार-बार ऋण लेना ही उसके पक्ष में गया है, क्योंकि वह आइएमएफ का इतना बड़ा उधारकर्ता है कि उसे विफल नहीं होने दिया जा सकता. हालांकि यह गलत तर्क है. जब तक पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने पर ध्यान नहीं देता और आतंकवाद को समर्थन देना तथा भारत के प्रति शत्रुता जारी रखता है, तब तक उसके आर्थिक संकट से बाहर निकलने की संभावना कम है. दुर्भाग्यवश, आइएमएफ ने भी पाकिस्तान के आर्थिक संकट पर अल्पकालिक दृष्टिकोण अपनाया और यह मान कर ऋण मंजूर कर दिया कि शायद अब वह अपनी नीति बदलेगा. पर पाकिस्तान ने जता दिया कि वह बदल नहीं सकता.
आइएमएफ ने पाकिस्तान को सात अरब डॉलर के विस्तारित कोष सुविधा कार्यक्रम के अंतर्गत एक अरब डॉलर की किस्त स्वीकृत की. इस कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक पाकिस्तान को करीब दो अरब डॉलर की राशि मिल चुकी है, जिसमें यह ताजा किस्त भी शामिल है. यदि पाकिस्तान समीक्षा प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक पूरा करता है, तो आगे चलकर कई और किस्तों में उसे ऋण की राशि मिलती चली जायेगी. भारत ने आइएमएफ के कार्यकारी बोर्ड की बैठक में इस पर आपत्ति जतायी और मतदान में हिस्सा नहीं लिया. भारत ने यह भी कहा कि आइएमएफ के कार्यक्रमों के प्रति पाकिस्तान का पिछला रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है, जिससे वैश्विक वित्तीय संस्थानों की साख को नुकसान पहुंच सकता है.
भारत का आरोप है कि आइएमएफ की मदद से पाकिस्तान को जो राजकोषीय छूट मिलती है, उसका लाभ वह अपने रक्षा खर्च और संभवतः आतंकवाद को समर्थन देने के लिए उठाता है. भारत ने इसीलिए पाकिस्तान को दी गयी राशि के उपयोग की कड़ी निगरानी करने का आग्रह आइएमएफ से किया है. वहीं पाकिस्तान ने भारत की आपत्तियों को ‘दादागीरी’ और ‘एकतरफा आक्रामकता’ बताते हुए आरोप लगाया कि भारत उसका ध्यान आर्थिक प्रगति से भटकाने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 2023 में भी आइएमएफ की मदद से दिवालिया होने से बचाया गया था. पाकिस्तान का रक्षा बजट उसके कुल राष्ट्रीय बजट का 14.5 प्रतिशत है, जो अगले वित्तीय वर्ष में 7.5 प्रतिशत प्रस्तावित है. आलोचकों का मानना है कि आइएमएफ की मदद से जो संसाधन प्राप्त होते हैं, उनका उपयोग सैन्य और गुप्त अभियानों, जैसे कि पहलगाम जैसे हमलों में, हो सकता है. इससे पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहायता का दुरुपयोग होता है.
पाकिस्तान 1984 से अब तक 20 से अधिक बार आइएमएफ की मदद ले चुका है. इसके बावजूद समस्याएं बनी हुई हैं. मूडीज ने चेतावनी दी है कि भारत के साथ बढ़ता हुआ तनाव पाकिस्तान की नाजुक अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार सकता है. भारत के पास करीब 688 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, वहीं पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 15 अरब डॉलर का ही है. इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है : क्या आइएमएफ द्वारा दी गयी निधियां पाकिस्तान में सैन्यीकरण को सक्षम बना रही हैं? कागज पर तो ये आर्थिक स्थिरता लाने में सहायक दिखती हैं, लेकिन व्यवहार में ये पाकिस्तान के आंतरिक संसाधनों को सैन्य या आतंकी गतिविधियों की ओर मोड़ने का अवसर देती हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)