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Thursday, March 28, 2024

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एमएसपी में वृद्धि

खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि इस साल घोषित कीमतों से किसानों को फायदा होगा क्योंकि अभी खुदरा मुद्रास्फीति घट रही है. मगर कई किसान संगठनों ने इससे असहमति जतायी है.

केंद्र सरकार ने खरीफ और मानसून के मौसम में उगायी जाने वाली फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा कर दी है. सरकार ने कहा है कि इस वर्ष के लिये घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले सालों के मुकाबले सबसे ज्यादा है. वर्ष 2023-24 केे लिये 17 खरीफ फसलों की एमएसपी को मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति में स्वीकृति दी गयी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की. इन फसलों में सबसे महत्वपूर्ण धान है, जिसकी अधिकतर राज्यों में बुवाई शुरू हो चुकी है. धान की एमएसपी 2,183 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की गयी है. पिछले साल की तुलना में यह 143 रुपये ज्यादा है.

प्रमुख दालों के न्यूूनतम समर्थन मूल्य में भी वृद्धि की गयी है. मूंग के न्यूनतम समर्थन मूल्य में सबसे ज्यादा 10.4 प्रतिशत वृद्धि की गयी है. बाजरा की खेती की एमएसपी उत्पादन की लागत से 82 प्रतिशत अधिक घोषित की गयी है जो सबसे ज्यादा है. अरहर के लिये 58, सोयाबीन के लिये 52 और उड़द के लिये लागत की तुलना में 51 प्रतिशत ज्यादा एमएसपी घोषित की गयी है. बाकी फसलों के लिये भी यह कम-से-कम 50 प्रतिशत ज्यादा रखी गयी है, जो केंद्र के एमएसपी को लागत के कम-से-कम डेढ़ गुना रखने के वायदे के अनुरूप है.

खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि इस साल जो कीमतें तय की गयी हैं उससे किसानों को फायदा होगा क्योंकि अभी खुदरा मुद्रास्फीति की दर, यानी महंगाई घट रही है. मगर कई किसान संगठनों ने इससे असहमति जताते हुए कहा है कि लागत की तुलना में वृद्धि नहीं की गयी है. लगभग 500 किसान संगठनों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि नये न्यूनतम समर्थन मूल्य खेती पर हो रहे वास्तविक खर्च के हिसाब से तय नहीं किये गये हैं.

मोर्चा नेताओं का दावा है कि सरकार द्वारा किसानों की लागत का अनुमान लगाने का तरीका त्रुटिपूर्ण है, इसलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के आंकड़े भी सही नहीं हैं. केंद्र ने लागत का हिसाब लगाते वक्त सिंचाई और उर्वरकों पर बढ़े खर्च को ध्यान में नहीं रखा. एमएसपी की व्यवस्था किसानों को बाजार में कीमतें गिरने की स्थिति में सुरक्षा देने के लिहाज से अपनायी जाती है. इसका मतलब है कि यदि किसानों को बाजार में फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलती है, तो सरकार उस वर्ष के लिए घोषित कीमत पर किसानों से उनकी पैदावार खरीद लेगी.

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