-डॉ अमित कुमार-
(असिस्टेंट प्रोफेसर,
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात, वड़ोदरा)
Imran khan : लगभग छह सप्ताह से भी अधिक समय के बाद आखिरकार इमरान खान से उनकी बहन की मुलाकात करायी गयी है. लेकिन बहन ने बाहर आकर जो कुछ कहा है, उससे आशंकाएं ही पैदा होती हैं. उनका कहना है कि इमरान खान को अकेले रखा गया है, और उनके साथ अत्याचार किया जाता है. ध्यान रखना चाहिए कि इमरान खान की पार्टी द्वारा आंदोलन छेड़ने और देश-दुनिया में इस बारे में चिंता जताये जाने के बाद इस्लामाबाद ने इमरान खान से मिलने की अनुमति उनकी बहन को दी. इस छोटी-सी मुलाकात से इमरान खान की शारीरिक और मानसिक स्थिति के बारे में पूरा अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. दरअसल पिछले कुछ समय से इमरान खान की पार्टी के समर्थक रावलपिंडी के अदियाला जेल के बाहर भारी संख्या में एकत्रित हो रहे थे और अफवाहों के चलते पाकिस्तान में स्थिति बिगड़ने की आशंका है. राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के भंवर में फंसा पाकिस्तान एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है, जहां सैन्य प्रभुत्व और राजनीतिक दमन तथा दबदबे के बीच आम जनता पिस रही है.
यहां प्रश्न उठता है कि आखिर फील्ड मार्शल आसिम मुनीर, जिसे पाकिस्तानी संविधान के 27वें संशोधन ने पाकिस्तान का सबसे शक्तिशाली सेना प्रमुख और वास्तविक रूप से ‘पाकिस्तान का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति’ बना दिया है, क्या सोच रहे हैं और उनकी आगे की रणनीति क्या होगी? यहां कई संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं. हो सकता है कि इमरान खान को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न द्वारा राजनीतिक सौदेबाजी के लिए मजबूर किया जा रहा हो, या संभव है कि आसिम मुनीर इमरान खान के साथ व्यक्तिगत शत्रुता साध रहे हों. या यह मुनीर का सफल प्रयास है इमरान खान को जनता के बीच एक कमजोर और मजबूर नेता के रूप में पेश करने और धीरे-धीरे उनकी तथा उनकी पार्टी की लोकप्रियता को न्यूनतम स्तर पर लाने का.
इमरान खान को भ्रष्टाचार के आरोप में 2023 में उनके लाहौर स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था. भले ही आसिम मुनीर ने पिछले दरवाजे से अनियंत्रित कानूनी शक्तियां प्राप्त कर ली हैं, परंतु पाकिस्तान के कई विश्लेषकों का मानना है कि इसके बावजूद अभी भी मुनीर पर ‘इमरान फैक्टर’ हावी है. हालांकि कई विश्लेषक ऐसे भी हैं जो इमरान और मुनीर के बीच बढ़ती शत्रुता का मुख्य कारण व्यक्तिगत दुश्मनी ही मानते हैं. चाहे इमरान खान की गिरफ्तारी हो या पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या का मामला, मुनीर के विरुद्ध खान की प्रतिक्रिया काफी तीखी रही है. खान ने अपने एक वक्तव्य में आसिम मुनीर को ‘मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति’ तथा पाकिस्तान के इतिहास का ‘सबसे दमनकारी तानाशाह’ बताया था. इमरान खान ने यह भी दोहराया था कि उनकी पार्टी ‘कठपुतली सरकार’ या देश के ‘शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान’ के साथ कोई मोल-भाव या राजनीतिक सौदा नहीं करेगी.
इमरान खान की स्थिति के बारे में अस्पष्टता मानवाधिकार उल्लंघन का एक गंभीर मामला है. वास्तव में यह मामला पाकिस्तान में मानवाधिकार की सही स्थिति को प्रतिबिंबित कर रहा है. हालांकि संयुक्त राष्ट्र के अलावा किसी और महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ने अभी तक इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठायी है. यदि इमरान खान की सेहत से जुड़ी अस्पष्टता जारी रही, तो पाकिस्तान सरकार को विश्व के महत्वपूर्ण मानवधिकार संगठनों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. अभी तक इस मुद्दे पर अमेरिका की तरफ से भी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. वास्तव में, डोनाल्ड ट्रंप और आसिम मुनीर के बीच बना नया समीकरण और दोनों देशों के बीच विकसित नया वर्किंग मॉडल आसिम मुनीर के लिए ढाल बन रहा है. यहां प्रश्न उठता है कि क्या लोकतंत्र की कीमत पर अमेरिका पाकिस्तान सरकार का साथ दे रहा है? जहां तक भारत की बात है, तो उसकी सुरक्षा एजेंसियां पाकिस्तान की स्थिति पर नजर बनाये हुए हैं. पाकिस्तान में फैली अशांति ने भारत में इस बात की चिंता बढ़ा दी है.
यदि हम पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास को देखें, तो पायेंगे कि वहां न तो लोकतंत्र के साथ कुछ नया हो रहा है, न ही प्रजातांत्रिक ढंग से चुने हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ. राजनीतिक निर्वासन तथा सैन्य प्रभुता के साथ समझौता करना पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों की नियति रहा है. इस देश में प्रजातांत्रिक ढंग से चुने हुए प्रधानमंत्री का जेल जाना महज एक राजनीतिक औपचारिकता है. इमरान खान के पास विकल्प सीमित हैं. क्या वे इतिहास दोहराते हुए सैन्य प्रभुता के साथ समझौता करना पसंद करेंगे? निर्वासित होंगे और कुछ अन्य पिछले लोकतांत्रिक प्रधानमंत्रियों की तरह वापस सत्ता पाने के लिए सही समय का इंतजार करेंगे? खान की प्रकृति को देखकर ऐसा लग तो नहीं रहा है. तो क्या 73 वर्षीय इमरान खान की आगे की राजनीतिक जिंदगी जेल से ही चलने वाली है? पाकिस्तानी न्यायपालिका से आशा करना लगभग व्यर्थ है, और अभी की स्थिति देखकर इमरान खान बाह्य शक्तियों से भी आशा नहीं रख सकते. इन सब विकल्पों के आगे केवल ‘प्रजातंत्र की शक्ति’ है, जो पाकिस्तान में सामान्यतः सैन्य प्रभुता के सामने अभी तक असहाय दिखी है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

