21.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

सामाजिक कल्याण में बाधक बनना ठीक नहीं

Social Welfare : सर्वे में भाग लेने से इनकार करते हुए सुधा मूर्ति ने जो कुछ कहा, वह इस तरह है, 'हम पिछड़ी जाति से नहीं आते, इसलिए हम उन समूहों के हित में प्रस्तावित किसी सर्वे में भाग नहीं लेंगे'.

Social Welfare : कर्नाटक में राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा लाये गये सामाजिक-आर्थिक सर्वे के दौरान ऐसी बात हुई है, जो पिछड़ों के पक्ष में उठाये जाने वाले कदमों को रोक सकती है या उन्हें धीमा कर सकती है. दरअसल सुधा मूर्ति और उनके पति व इनफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने सर्वे में भाग लेने से यह कहते हुए इनकार किया है कि वे पिछड़े वर्ग से नहीं आते. इस इनकार से अहंकार की बू तो आती ही है, इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विज्ञान और इंजानियरिंग से जुड़े हमारे प्रतिभाशाली लोग न केवल इस देश की जमीन से कटे हुए हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक गैरबराबरी को बढ़ावा देने में भी उनका कमोबेश हाथ है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सुधा और नारायण मूर्ति द्वारा सर्वे में शामिल न होने के फैसले पर सख्त प्रतिक्रिया जतायी है.

उन्होंने कहा, ‘यह समझने की जरूरत है कि यह सर्वे सिर्फ पिछड़े समुदायों के लिए नहीं है….वे इन्फोसिस से हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि वे सब कुछ जानते हैं.’ सिद्धारमैया की यह टिप्पणी श्रेष्ठता बोध से ग्रस्त हर उस भारतीय के लिए प्रासंगिक हैं, जो मानते हैं कि कुछ खास संस्थाओं या कारोबार से जुड़े होना ही श्रेष्ठता की गारंटी है. यह सर्वविदित है कि जीवन मूल्यों से रहित वैज्ञानिक या तकनीकी ज्ञान लाभ के बजाय नुकसान ही ज्यादा करता है, क्योंकि यह अच्छाई, सामाजिक न्याय या नैतिकता से विहीन होता है. इस संदर्भ में एनरॉन का जिक्र किया जा सकता है, जिसने धोखाधड़ी की, और जिसे 2001 में अमेरिका में दीवालिया होने वाली सबसे बड़ी कंपनी के रूप में जाना जाता है. एनरॉन ने अपने यहां दर्जनों दिग्गज इंजीनियरों तथा पीएचडी डिग्रीधारकों तथा एमबीए की डिग्री वाले सैकड़ों होशियार अधिकारियों की नियुक्ति की थी. काबिल लोगों के उस बड़े समूह ने ही एनरॉन के तेजी से ध्वस्त होने में बड़ी भूमिका निभायी थी.


चूंकि कर्नाटक के प्रस्तावित सामाजिक-आर्थिक सर्वे में भागीदारी करना ऐच्छिक है, इस कारण मूर्ति दंपति अगर अपनी जाति या आर्थिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी न देना चाहे, तो इसके लिए वह स्वतंत्र हैं, तथा इस पर कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए. लेकिन आइटी सेवा के शुरुआती दौर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर भारी सफलता पाने के कारण दोनों निश्चित तौर पर यह अच्छी तरह से जानते होंगे कि पिछड़ी जातियों की बेहतरी के लिए नीति निर्माण और उसके त्वरित क्रियान्वयन में समय पर पेश किये गये ठोस और अद्यतन आंकड़े बेहद महत्वपूर्ण साबित होते हैं. मूर्ति दंपति ने सर्वे में भाग लेने से इनकार करते हुए जो कुछ कहा, और जिसका जिक्र कुछ रिपोर्टों में है भी, उनमें दूसरों के प्रति तिरस्कार या घृणा की भावना है, जबकि अपने बारे में गहन श्रेष्ठता बोध है कि वे कौन हैं, और जाति, वर्ग तथा दूसरे पदानुक्रमों में उनकी हैसियत क्या है.


सर्वे में भाग लेने से इनकार करते हुए सुधा मूर्ति ने जो कुछ कहा, वह इस तरह है, ‘हम पिछड़ी जाति से नहीं आते, इसलिए हम उन समूहों के हित में प्रस्तावित किसी सर्वे में भाग नहीं लेंगे’. उन्होंने जिस हिकारत के साथ ‘उन समूहों’ का जिक्र किया, वह दरअसल ‘हम’ और ‘वे’ का वही विभाजन है, जिसके जरिये हाल के दौर में अपनी श्रेष्ठता और दूसरे की निकृष्टता को रेखांकित किया जाता रहा है. उनके कहने का अर्थ यह था कि ‘वे लोग’ सरकार से कुछ चाहते हैं, लेकिन हम नहीं चाहते, इसलिए हम इस सर्वेक्षण में हिस्सेदारी नहीं करेंगे. यह श्रेष्ठता ग्रंथि इतनी खतरनाक है कि इसमें सामाजिक न्याय भी भीख की तरह लगती है. मूर्ति दंपति को पता होना चाहिए कि होने वाली जनगणना में केंद्र सरकार ने भी जाति से संबंधित विस्तृत विवरणों का प्रावधान रखा है. यह बतायेगा कि ‘केंद्र सरकार देश और समाज के पवित्रतम जीवन मूल्यों और हितों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है’. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पूछा है कि क्या मूर्ति दंपति उसके साथ भी असहयोग करेंगे.


जाति सर्वेक्षण की आलोचना में कहा जाता है कि यह तुष्टिकरण या रेवड़ियों को कल्याणकारी उपायों के तौर पर पेश करता है. लेकिन इस मामले में अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि केंद्र सरकार ने ही अनकंडीशनल कैश ट्रांसफर (यूटीसी)-यानी बिना किसी शर्त के नकदी हस्तांतरण की नीति अपनायी है. हाल ही में प्रोजेक्ट डीप की एक रिपोर्ट-‘अनकंडीशनल कैश ट्रांसफर्स इन इंडिया : ट्रेसिंग द जर्नी, शेपिंग द फ्यूचर’ में यह रेखांकित किया गया है कि किस तरह यूटीसी महिलाओं की वित्तीय भागीदारी बढ़ाने और उनके समावेशन में एक प्रभावी औजार सिद्ध हुआ है. यह सामाजिक बाधाएं हटाकर महिलाओं को अर्थव्यवस्था तक सीधी पहुंच प्रदान कर रहा है.

वर्ष 2015-16 में केंद्र सरकार ने यूटीसी के तहत 8,560 करोड़ रुपये खर्च किये थे, जो 2023-24 में लगभग आठ गुना बढ़ कर 70,860 करोड़ रुपये हो गये. वर्ष 2015-16 में केंद्र और राज्य सरकारों ने मिल कर यूटीसी के तहत 12,190 करोड़ रुपये खर्च किये थे, जो 2024-25 (बजट अनुमान) में 23 गुना बढ़ कर 2,80,780 करोड़ रुपये हो गये. राज्य सरकारों द्वारा यूसीटी के तहत योगदान तेज किये जाने के कारण यह आंकड़ा इतना बड़ा हो गया. रिपोर्ट के मुताबिक, इस पर सर्वसम्मति थी कि ‘यूटीसी के कारण राज्यों द्वारा किये जाने वाले आवश्यक खर्चों को बंद नहीं किया जायेगा. इसके बजाय समानता लाने, अनिश्चतता खत्म करने और कल्याणकारी पहुंच को सुधारने के लिए यूसीटी का इस्तेमाल रणनीतिक औजार के रूप में किया जायेगा’. इस कारण सरकारों को बेहतर सड़क निर्माण तथा गुणवत्ता वाले स्कूल और अस्पताल खोलने का काम जारी रखना चाहिए, जिससे कि नागरिकों का जीवन स्तर सुधरे. रिपोर्ट में इस बारे में चेताया भी गया कि ध्वस्त व्यवस्था में यूटीसी का उपयोग बैंड-एड समाधान की तरह नहीं किया जाना चाहिए.


यह विकास के जटिल स्वरूप को ही रेखांकित करता है. चुनाव गरीबों की मदद करने और सेवाओं के निर्माण के बीच कतई नहीं है. दोनों न सिर्फ जरूरी हैं, बल्कि दोनों में तालमेल भी आवश्यक है. जहां जरूरी है, वहां हमें लक्षित कल्याणकारी योजनाएं चलानी होंगी, और आंकड़े बताते हैं कि इनका असर होता है. इसी के साथ हमें योजनाओं पर कड़ी नजर रखनी होगी, ताकि पाई-पाई का सदुपयोग हो. लेकिन जब ताकतवर लोग और विशेषाधिकार प्राप्त समूह ऐसी राय बनाते हैं, जिनमें सिद्धांतों के बजाय पूर्वाग्रह हावी होता है, तो माहौल खराब हो जाता है, जैसा कि फिलहाल मूर्ति दंपति द्वारा सर्वे में भागीदारी से इनकार करने के कारण हुआ है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel