GST : जीएसटी में शुरू हो रहे सुधार कारोबारियों, कारखानेदारों और जनता को खुश करने वाले हैं. प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा करते हुए कहा था कि देशवासियों को इस साल दिवाली में दोहरा तोहफा मिलेगा. उन्होंने याद दिलाया कि 2017 में लागू की गयी जीएसटी व्यवस्था एक बड़ा बदलाव थी और अब नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी की बारी है. इसके तहत ढांचागत सुधार और टैक्स दरों में कमी करने के साथ जीएसटी को और सरल बनाने की बात है. अब जीएसटी के दो ही स्लैब-पांच फीसदी और 12 फीसदी के होंगे. हालांकि विलासिता की वस्तुओं पर 40 प्रतिशत टैक्स देना पड़ सकता है. दो मुख्य स्लैब रखने से टैक्सों में निश्चित रूप से कमी आयेगी और जनता को राहत मिलेगी. यह भी बताया जा रहा है कि जीएसटी सुधार छोटे व्यवसायों और डिजिटल लेन-देन को आसान बनाने की कोशिश है.
इसमें बिना किसी रुकावट वाली तकनीक बनाना, गलतियों और मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिए पहले से भरे गये जीएसटी रिटर्न के जल्दी रिफंड करने पर जोर है. यह कारोबारियों की बड़ी मांग रही है. इसके अलावा जनता की मांग थी कि स्वास्थ्य बीमा पर लगने वाले 18 फीसदी जीएसटी को कम करके पांच फीसदी कर दिया जाये, जिससे सीनियर सिटीजंस को राहत मिले और बीमा उद्योग को बढ़ावा. इसके अलावा कई ऐसे सामान हैं जो आम घरों के लिए जरूरी हैं और जिन पर 12 फीसदी टैक्स है. इनमें साबुन, तेल, छाते, इलेक्ट्रिक आयरन, रेडीमेड गारमेंट, सिलाई मशीन, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं, जूते वगैरह हैं. इन पर टैक्स घटकर पांच प्रतिशत होने से मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग को निश्चित रूप से राहत मिलेगी. ऐसे कई सामान और सेवाएं हैं, जिन पर टैक्स की दरें काफी ज्यादा हैं. अब इनके कम होने की उम्मीद है.
अब सरकार कह भी रही है कि आगे चलकर टैक्स की सिर्फ एक ही दर रहेगी, ताकि सभी को सुविधा हो. यह तय है कि नयी टैक्स व्यवस्था में पारदर्शिता होगी और कारोबारियों तथा अन्य लोगों को टैक्स रिटर्न भरने में आसानी होगी. वित्त मंत्री की बहुत इच्छा रही है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में शामिल किया जाये, ताकि इनके दाम भी पूरे देश में लगभग एक समान हों. लेकिन कई सदस्य इसके लिए राजी नहीं हैं. वे अपने राज्य के हित में ऐसा नहीं होने देते. जब भी किसी राज्य को अपना राजस्व बढ़ाना होता है, वह तुरंत पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा देता है. अगर ये भी जीएसटी के दायरे में होते, तो ऐसा संभव नहीं था.
बीती सदी के नौवें दशक में जब देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई, तो व्यापार-कारोबार तेजी से बढ़ा. वैसे में इस बात की जरूरत महसूस की गयी कि देशभर में टैक्स की एक ही दर हो.
माना गया कि इससे देशभर में उत्पादित सामान की कीमतें कमोबेश एक जैसी रहेंगी. लेकिन इस सोच को मूर्त होने में कई साल लग गये. जब 2017 में जीएसटी लागू हुआ था, तो इसमें बहुत तरह की अड़चनें आयीं. वेबसाइट के हैंग करने के अलावा जीएसटी भरने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ा. धीरे-धीरे इन समस्याओं पर काबू पा लिया गया. लेकिन अब भी कई विसंगतियां हैं. जैसे, दो तरह के सामान जो मिलकर एक उत्पाद होते हैं, उन पर अलग-अलग टैक्स दरें हैं. जैसे, ‘बन मस्का’ हमारे देश का लोकप्रिय नाश्ता है. लेकिन बन पर टैक्स की दर अलग है और मस्का यानी मक्खन पर अलग. ऐसे में, कारोबारी किस दर से टैक्स लेगा? रेस्तरां में रोटी पर कम टैक्स है, तो परांठे पर ज्यादा.
खुले सामान पर कोई टैक्स नहीं है, लेकिन पैकेट में आते ही उस पर टैक्स लगेगा. ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं. व्यापारियों की अपेक्षा है कि टैक्स दरों में विसंगति न हो और उन्हें तार्किक बनाया जाये. उनकी यह भी शिकायत है कि वे पूरे महीने जीएसटी रिटर्न भरने में लगे रहते हैं, नहीं तो लाखों की देनदारी का नोटिस आ जाता है. रेस्तरां के एसी या नॉन एसी होने से जीएसटी कैसे घट-बढ़ सकता है, जबकि आज देश में निम्न आय वर्ग के लोग भी भीषण गर्मी की मार से बचने के लिए अपने घरों में एसी लगाते हैं? फिलहाल टैक्स के चार स्लैबों को घटाकर दो स्लैब रखेंगे, तो वैधानिक मामले कम हो जायेंगे. साथ ही, जीएसटी की रिटर्न प्रणाली और इनपुट टैक्स क्रेडिट नीति में भी बदलाव की जरूरत है. जीएसटी लागू हुए आठ साल हो गये, लेकिन इसके नियमों में हर महीने बदलाव होते रहते हैं, जिससे व्यापारियों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है.
जीएसटी के जरिये कर संग्रह का जो लक्ष्य रखा गया था, वह काफी हद तक पूरा हो गया है. पिछले पांच साल में जीएसटी वसूली दोगनी हो चुकी है. वर्ष 2024-25 में कुल जीएसटी वसूली 22.08 लाख करोड़ रुपये हो गयी, जो 9.4 फीसदी की दर से बढ़ी है. यह भी एक कारण है कि सरकार टैक्स में कमी करने को तैयार हो गयी है. उसे अनुमान है कि आने वाले समय में यह अप्रत्यक्ष कर सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी करता ही जायेगा. इसलिए जनता में इसके प्रति विश्वास पैदा करना होगा, जो टैक्सों को सरल बनाकर ही किया जा सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

