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स्वदेशी मैसेजिंग एप अरट्टै की बढ़ती लोकप्रियता

Arattai : 'अरट्टै' को समझने से पहले जोहो को समझना जरूरी है. यह कोई नया स्टार्टअप नहीं, बल्कि एक स्थापित भारतीय टेक्नोलॉजी दिग्गज कंपनी है, जो दुनियाभर में कारोबार करती है. जोहो का इकोसिस्टम सिर्फ एक एप तक सीमित नहीं है.

Arattai : पिछले दिनों देश के डिजिटल मैसेजिंग इकोसिस्टम में एक ऐसा बवंडर मचा, जिसने सारी दुनिया में मशहूर हो चुके व्हाट्सएप के नीति नियंताओं के माथे पर पसीने की बूंदें ला दीं. यह है भारत का देसी मैसेजिंग एप ‘अरट्टै’. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘स्वदेशी तकनीक’ अपनाने की अपीलों तथा मंत्रियों व उद्योगपतियों के अभियान की वजह से इस महीने के शुरुआती तीन दिनों में अरट्टै 75 लाख डाउनलोड के आंकड़े तक पहुंच गया, जहां रोजाना साइन-अप्स 3,000 से बढ़कर 3,50,000 तक जा पहुंचे.

वर्तमान में अरट्टै के 10 लाख से अधिक मासिक सक्रिय प्रयोगकर्ता हैं, जबकि व्हाट्सएप के भारत में मासिक सक्रिय प्रयोगकर्ताओं की संख्या 53.58 करोड़ से अधिक है. ऐसी घटनाएं भी कुछ लोगों ने फेसबुक पर साझा कीं, जब उन्होंने अरट्टै की खूबियां गिनाते हुए पोस्ट लिखी, तो उनका अकाउंट कुछ घंटों के लिए सस्पेंड कर दिया गया. हालंकि इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पायी, फिर भी अरट्टै ने एक चुनौती तो पेश कर ही दी है.


‘अरट्टै’ को समझने से पहले जोहो को समझना जरूरी है. यह कोई नया स्टार्टअप नहीं, बल्कि एक स्थापित भारतीय टेक्नोलॉजी दिग्गज कंपनी है, जो दुनियाभर में कारोबार करती है. जोहो का इकोसिस्टम सिर्फ एक एप तक सीमित नहीं है. यह जोहो मेल (ई-मेल सेवा), जोहो राइटर (डॉक्यूमेंट), जोहो शीट (स्प्रेडशीट) और जोहो शो (प्रेजेंटेशन) जैसे दर्जनों सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन का एक मजबूत सूट प्रदान करता है. इसे हम गूगल सूट जैसा भी समझ सकते हैं, पर कंपनी की प्रसिद्धि उसकी गोपनीयता-केंद्रित और विज्ञापन-मुक्त नीतियों पर बनी है. जहां गूगल और मेटा (फेसबुक) जैसी टेक कंपनियां प्रयोगकर्ताओं के आंकड़ों और उनको दिखाये जाने वाले विज्ञापनों पर केंद्रित हैं, वहीं जोहो प्रयोगकर्ताओं के डाटा का ऐसा इस्तेमाल नहीं कर रही.

इसी दुनिया का नया सदस्य है ‘अरट्टै’, जिसका तमिल में अर्थ है ‘गपशप’. यह एप उन सभी बुनियादी फीचर्स के साथ है, जिनकी एक मैसेजिंग एप से उम्मीद की जाती हैं-यानी टेक्स्ट मैसेज, वॉयस व वीडियो कॉल, 1,000 सदस्यों तक के ग्रुप चैट और मल्टीमीडिया शेयरिंग. भारत की एप इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है, जबकि चीन राजस्व व उपभोग के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है. वहीं अमेरिकी कंपनियां एप निर्माण के मामले में शायद सबसे ज्यादा इनोवेटिव (नवोन्मेषी) हैं. भारत प्रति माह एप इंस्टॉल करने व उसका प्रयोग करने के मामले में अव्वल है. भारतीय एप परिदृश्य का नेतृत्व टेलीकॉम दिग्गज एयरटेल और जिओ करते हैं, यद्यपि स्ट्रीमिंग कंपनियां, जैसे नोवी डिजिटल, जिओ सावन और पेटीएम, फोन पे और फ्लिप्कार्ट जैसी ई-कॉमर्स साइट्स ने खुद को वैश्विक परिदृश्य पर भी स्थापित किया है. फोर्टी टू मैटर्स डॉट कॉम के अनुसार, गूगल प्ले स्टोर पर अक्तूबर तक कुल 20,83,249 एप्स उपलब्ध हैं, जिनमें भारतीय एप्स की संख्या 89,083 बनी हुई है, जो कुल एप्स का करीब 4.3 फीसदी है. कुल एप पब्लिशर्स की संख्या 6,11,857 है, जिनमें 15,541 भारतीय एप पब्लिशर्स हैं-यह सभी पब्लिशर्स का करीब 2.5 फीसदी है.


देश में उपभोक्ताओं की उपलब्धता के हिसाब से भारतीय एप की संख्या अब भी बहुत कम है. एप बाजार में भारत के पिछड़े होने का एक बड़ा कारण कोडिंग की पढ़ाई देर से शुरू होना भी है. हालांकि नयी शिक्षा नीति, 2020 ने इस अंतर को पाटने की कोशिश की है, पर इसका परिणाम 2030 के बाद दिखेगा. ऐसे में ‘अरट्टै’ व्हाट्सएप को कितनी कड़ी टक्कर दे पायेगा, यह कहना अभी मुश्किल है. व्हाट्सएप का एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन हर मैसेज, कॉल, फोटो और वीडियो को इतना सुरक्षित बनाता है कि कोई तीसरा इन्हें पढ़ या सुन नहीं सकता. वहीं अरट्टै में यह सुरक्षा सिर्फ वॉयस और वीडियो कॉल तक सीमित है, टेक्स्ट मैसेज के लिए नहीं, यानी जिनके लिए डिजिटल गोपनीयता सबसे जरूरी है, उन लोगों का भरोसा ‘अरट्टै’ को अभी जीतना होगा. दूसरे, मैसेजिंग एप्स की सबसे बड़ी ताकत होता है उनका यूजर नेटवर्क.


हर कोई व्हाट्सएप पर है, ऐसे में कोई यूजर उस एप पर जाने का जोखिम क्यों उठाये, जहां उसके दोस्त-परिवार, रिश्तेदार कोई है ही नहीं? करोड़ों भारतीय व्हाट्सएप के डिजाइन और फीचर्स के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि उन्हें किसी नये प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल काम है. एक बार जो डिजिटल आदतें बन जाती हैं, तो उनको बदलना बेहद जटिल है. जैसे कू व हाइक जैसे स्वदेशी एप्स को शुरुआती उत्साह, सरकारी समर्थन और ट्विटर विवादों के चलते खूब डाउनलोड तो मिले, पर टिकाऊ सफलता हासिल नहीं हो सकी. अरट्टै के पास जोहो की तकनीकी क्षमता, भारत केंद्रित सर्विस और प्रमोटर्स का समर्थन तो है, पर प्रयोगकर्ताओं को प्लेटफॉर्म बदलने के लिए ठोस कारण देना, लोगों की निजता की गारंटी देना और लगातार नवाचार ही अरट्टै जैसे एप के भविष्य का निर्धारण करेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

प्रो मुकुल
प्रो मुकुल
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग लखनऊ, विश्वविद्यालय

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