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यूक्रेन में रूसी रणनीति के आयाम

रूस ने डोनबास को मुक्त कराने की घोषणा के साथ यह भी संकेत दिया था कि वह यूक्रेन के साथ भूमि और समुद्री सीमा पर बफर बनायेगा.

प्रो अजय पटनायक, पूर्व प्रोफेसर, जेएनयू

editor@thebillionpress.org

यह जगजाहिर है कि 1999 के बाद से नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) का पूर्वी यूरोप में विस्तार यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई का मुख्य कारण है. शीत युद्ध की समाप्ति के समय नाटो में 16 सदस्य थे, जिसमें 1999 के बाद 14 अन्य देशों को शामिल किया गया है. यूक्रेन के साथ रूस लगभग 2295 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. वर्ष 1949 में स्थापित नाटो शीत युद्ध की एक स्मृति है, जिसे सोवियत संघ और उसके सहयोगियों से पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका की रक्षा के लिए बनाया गया था. इसकी प्रतिक्रिया में सोवियत खेमे ने वारसा समझौता गठबंधन बनाया था, जिसे 1991 में भंग कर दिया गया.

नाटो के कायम रहने और उसके पूर्व की ओर विस्तार ने एक असंतुलन बना दिया, जिससे शीत युद्ध के बाद की वैश्विक शांति के लिए खतरा पैदा हो गया. यह बेलग्रेड (1999) पर बमबारी तथा अफगानिस्तान (2001) और इराक (2003) पर हमले से साफ हो गया. नाटो के विस्तार के साथ सोवियत संघ के बाद की स्थिति में अनेक जगह सत्ता परिवर्तन कराये गये, जिसमें 2014 में हुआ हिंसक सत्ता परिवर्तन भी शामिल है. इन घटनाओं से रूस की घेराबंदी की आशंका पैदा हुई. यह प्रक्रिया 2003 से चल रही है, जब जॉर्जिया में 2003 में पश्चिम के सहयोग व समर्थन से हुए बनावटी विरोधों के बाद पश्चिम समर्थक सरकार सत्ता में आयी.

कीव में 2014 में हुए हिंसक विरोधों से पहले यूक्रेन में 2004 में भी एक सत्ता परिवर्तन हो चुका था. वर्ष 2005 में सत्ता से हटाये गये तत्कालीन प्रधानमंत्री विक्टर यानुकोविच ने 2010 में राष्ट्रपति के रूप में वापसी की, पर उन्हें 2014 में फिर हटा दिया गया, क्योंकि उन्हें ठीक से पश्चिम परस्त नहीं माना जाता था और उनको रूस के प्रति नरम भी माना जाता था. अफगान हमले के शुरुआती दौर में किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान में अमेरिकी अड्डे बनाये गये, जिससे रूस के लिए असुरक्षा बढ़ी.

अपने पूर्ववर्ती बोरिस येल्त्सिन से उलट व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी पैंतरों का मुकाबला यूरेशिया (पूर्व सोवियत राज्यों) में जुड़ाव की प्रक्रिया से करने का निर्णय लिया. दो संगठनों- यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (2015) और कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (2002)- ने रूस के नेतृत्व को फिर स्थापित कर दिया है, भले ही कुछ ही देश इनमें शामिल हुए हैं. इस क्षेत्र में रूस के बाद सबसे विकसित यूक्रेन इस जुड़ाव की प्रक्रिया का एक मजबूत आधार हो सकता था. यानुकोविच को 2014 में हटाये जाने से यूक्रेन के पश्चिम से करीब होने तथा नाटो को रूसी सीमा पर लाने का रास्ता साफ हो गया.

फरवरी, 2007 में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में पुतिन ने कड़े शब्दों में वैश्विक संबंधों में अमेरिका के एकाधिकारवादी वर्चस्व तथा उसके द्वारा ताकत के निर्बाध इस्तेमाल की आलोचना की थी. इसके बावजूद नाटो ने समूह में आने के लिए जॉर्जिया को उत्साहित किया और इसके लिए वहां 2008 में जनमत संग्रह भी कराया गया. साल 2014 से यूक्रेन भी यही राह अपना रहा था और फरवरी, 2019 में वहां की संसद ने नाटो व यूरोपीय संघ में शामिल होने में आसानी के लिए संविधान में बदलाव पर मुहर लगा दी तथा जून, 2020 में यूक्रेन नाटो के एक कार्यक्रम में शामिल भी हो गया. नाटो ने यूक्रेन के योगदान की खूब प्रशंसा भी की. जून, 2021 के ब्रसेल्स सम्मेलन में नाटो नेताओं ने 2008 के बुखारेस्ट सम्मेलन के निर्णय को दोहराया कि यूक्रेन इस गठबंधन का सदस्य बनेगा.

अनेक पूर्व सोवियत राज्यों में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में जातीय अल्पसंख्यकों, उनकी भाषाओं और संस्कृतियों को बहिष्कृत रखा गया है. जॉर्जिया में अलग हुए दो क्षेत्रों- साउथ ओसेशिया और अबखाजिया- को 2008 में जबरन मिलाने की कोशिश हुई. इसका नतीजा रूस के साथ लड़ाई के रूप में सामने आया और फिर ये क्षेत्र स्वतंत्र हो गये. यूक्रेन ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहा है. पश्चिमी हिस्सा अधिक यूरोपोन्मुख है और लोग मुख्य रूप से रोमन कैथोलिक आस्था के हैं. दूसरी ओर, पश्चिमी यूक्रेन में रूसी भाषी या रूसी जातीयता के लोग हैं और वे ऑर्थोडॉक्स ईसाईयत को मानते हैं. राष्ट्रवादियों के सत्ता पर काबिज होने से रूसी भाषी आबादी और इलाके यूक्रेनी सेना के बड़े हमलों की जद में आ गये तथा अजोव बटालियन (तटीय इलाके मारियोपोल में केंद्रित दक्षिणपंथी, नव नाजी अर्द्धसैन्य समूह) जैसे दक्षिणपंथी गुट 2014 से ही यूक्रेन के नेशनल गार्ड के हिस्से बन गये. इन कार्रवाइयों में लगभग 15 हजार लोग मारे गये.

यूक्रेन में सैनिक कार्रवाई की घोषणा के समय रूस ने दो लक्ष्य बताया था- यूक्रेन को डिमिलिटराइज और ‘डि-नाजीफाइ’ करना. यूक्रेन की सैन्य क्षमता को बहुत हद तक नष्ट कर देने तथा यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की को तटस्थ रहने की घोषणा करने पर मजबूर कर देने के बाद अब रूस बहुत सधे हुए ढंग से अपने दूसरे लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है. यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में मुख्य रूप से रूसी भाषी आबादी केंद्रित है. डोनबास क्षेत्र के हिस्से डोनेस्क और लुहांस्क प्रांतों का अधिकांश भाग यूक्रेनी सैनिकों से ले लिया गया है. इन इलाकों के साथ मारियोपोल और ओडेसा जैसे दक्षिणी शहरों में ही 2014 से यूक्रेनी सेनाओं और उग्र-राष्ट्रवादी समूहों ने सबसे अधिक उत्पीड़न और नुकसान किया है. इन क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कारने की प्रक्रिया में रूस उन समूहों का भारी नुकसान करेगा, जिन्हें वह ‘नव नाजी’ मानता है.

जब बीते एक अप्रैल को रूस ने डोनबास क्षेत्र को मुक्त कराने का अपना एक उद्देश्य घोषित किया, उसने यह भी संकेत दे दिया था कि वह यूक्रेन के साथ भूमि और समुद्री सीमा पर बफर बनाने जा रहा है. यूक्रेन का दक्षिणी भाग, विशेष रूप से काला सागर में स्थित इसके दो मुख्य बंदरगाहों- ओडेसा और मारियोपोल- रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं. चूंकि रूस की मुख्य नौसेना काला सागर में सेवस्तापोल में स्थिति है, तो मारियोपोल के साथ क्रीमिया और डोनबास के बीच एक विस्तृत जमीनी गलियारा बन जायेगा. बफर क्षेत्र रूस के दीर्घकालिक सुरक्षा हितों का एक समाधान है, भले ही बाद में यूक्रेन तटस्थता के अपने वादे से मुकर जाए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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